प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने कहा है कि दंगा प्रभावित कोकराझाड़ के नागिरकों के भीतर सुरक्षा की भावना पैदा किए जाने की जरूरत है ताकि वो खुद को महफूज महसूस कर सकें.
मनमोहन सिंह का कहना था कि इसके लिए केंद्र और राज्य सरकारों को मिलकर काम करना होगा.
प्रधानमंत्री ने ये बयान एक सवाल के जवाब में दिया जो राज्य के मुख्य मंत्री तरूण गोगोई के उस आरोप के हवाले से पूछा गया था जिसमें उन्होंने कहा था कि केंद्र ने राज्य को पूरी सुरक्षा नहीं प्रदान की थी.
प्रेस कांफ्रेस में प्रधानमंत्री के साथ मौजूद तरूण गोगोई ने हालांकि हकलाते हुए कहा कि उन्होंने ऐसा कोई बयान नहीं दिया था.
शुक्रवार को स्थानीय मीडिया में ये खबर गर्म थी कि राज्य सरकार ने दंगा शुरू होने के साथ ही केंद्र से फौज भेजे जाने की मांग की थी लेकिन वहां सेना दो दिनों के बाद पहुंची जबतक काफी खून-खराबा हो चुका था.
मनमोहन सिंह ने ये भी कहा है कि कोकराझाड़ दंगों की जांच की जाएगी.
अपने शुरूआती बयान में उन्होंने कहा कि दंगों की जांच की जानी चाहिए और अगर ये बात सामने आती है कि किसी ने जानबूझकर इसे भड़काया था तो उसे कड़ी से कड़ी सजा मिलनी चाहिए.
प्रधानमंत्री ने असम को 300 करोड़ रूपए की आर्थिक मदद देने की भी घोषणा की है. साथ ही प्रधानमंत्री राहत कोष से भी मृत्कों के परिवार वालों, घायलों और जिनके घर दंगों में नष्ट हुए हैं, उन्हें आर्थिक राहत की घोषणा की गई है.
नियंत्रण
असम में सरकार का कहना है कि चार जिलों में फैली सांप्रदायिक हिंसा पर फिलहाल नियंत्रण पा लिया गया है. कोकराझाड़ जैसे इलाकों में कर्फ्यू में ढील दी गई है और आसपास के जिलों में जिंदगी समान्य हो रही है.
असम में लगभग आठ दिन तक चली हिंसा में 45 लोगों की मौत हो गई और तीन लाख से ज़्यादा लोग बेघर हुए हैं.
हिंसा पर नियंत्रण के बाद अब राज्य में सरकारी दौरों का समय शुरु हो गया है. गुरुवार को मुख्यमंत्री तरुण गोगोई ने हिंसा प्रभावित जिलों का दौरा किया और स्थिति को संभालने में हुई देरी के लिए उलटे केंद्र सरकार पर आरोप लगाया.
शनिवार को प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह असम के हिंसा प्रभावित ज़िलों के दौरे पर हैं. हालांकि असम से आ रही खबरों के मुताबिक खराब मौसम की वजह से पहले उनका हेलिकॉप्टर कोकराझाड़ में नहीं उतर सका था और उन्हें गुवाहाटी लौटना पड़ा था.
प्रधानमंत्री दंगा प्रभावित अल्पसंख्यकों और बोडो आदिवासियों के राहत शिविरों का दौरा कर रहे हैं और दंगा पीड़ितों के लिए राहत पैकेज की घोषणा भी कर सकते हैं. इस दौरान वो दोनों पक्षों के प्रतिनिधियों से भी मिलेंगे. इनमें अखिल असम अल्पसंख्यक छात्र संघ और बोडोलैंड क्षेत्रीय परिषद के नेता शामिल हैं.
प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह असम से राज्यसभा सांसद भी हैं.
राहत कार्य सुस्त
इस बीच बीबीसी संवाददाता सुवोजीत बागची ने गुरुवार को एक अल्पसंख्यक राहत कैंप का दौरा किया और बताया कि राहत कार्य जहां एक ओर सुस्त हैं वहीं लोगों की ज़रूरतों के अनुपात में नाकाफी भी हैं.
समाचार एजेंसी एसोसिएटड प्रेस के मुताबिक हिंसा से सबसे अधिक प्रभावित कोकराझाड़ जिले में बिजनी गांव के एक राहत शिविर में जब सरकारी अधिकारी मुआयने के लिए पहुंचे तो लोगों ने नाराज़ होते हुए उन्हें खदेड़ दिया.
माना जा रहा है कि सोमवार को गृहमंत्री पी चिदंबरम भी असम जाएंगे और सुरक्षा इंतजामों का जायजा लेंगे. दंगों के दौरान विस्थापिक हुए तीन साख से ज्यादा लोगों का पुनर्वास अब राज्य और केंद्र सरकार के सामने सबसे बड़ी चुनौती है.
असम के मौजूदा जातीय संघर्ष में एक ओर बोडो आदिवासी हैं, तो दूसरी ओर सीमापार से आकर बसे गैर-बोडो प्रवासी.
दंगा पीड़ितों का कहना है कि सरकार को हालात बिगड़ने का अंदेशा था, फिर भी कार्रवाई में देरी हुई. वहीं हालात खराब होने की वजह से जब मुख्यमंत्री तरुण गोगोई निशाने पर आए, तो उन्होंने केंद्र सरकार पर उल्टा निशाना साधा.