लाश की भी जाति होती है

Dead body, cast, accident, funeralखैर। सांसों की डोर थमने के बाद माटी का चोला, माटी में ही मिल जाना है। ये अंतिम सत्य है। ये जानते हुए भी कुछ लोगों ने एक लाश के अंतिम संस्कार के आगे अड़ंगा लगा दिया। ये अड़ंगा था जाति को लेकर। हालात तनावपूर्ण हो गए। पुलिस के हाथ-पांव फूल गए। कब्रिस्तान का ताला तोड़ा गया और तब कहीं शव दफनाया जा सका।

हादसे में खैर के मोहल्ला जामा मस्जिद निवासी वहीद सैफी के 35 वर्षीय बेटे शहीद करीब 10 साल से आगरा के बोदला क्षेत्र में सपरिवार रहते थे। शहीद वहां किसी कारखाने में काम करते थे। मंगलवार सुबह ड्यूटी पर जाते वक्त ट्रक की चपेट में आ गए और किसी दूसरे वाहन ने उन्हें कुचल दिया। मौके पर ही शहीद की मौत हो गई। पोस्टमार्टम के बाद शव लेकर परिजन अलीगढ़ चल दिए।

खैर में मंगलवार रात करीब नौ बजे शहीद के शव को खैर लाया गया। रात में ही दफनाने की तैयारी होने लगी। परिवार के लोग कब्रिस्तान पहुंचे तो गेट पर ताला लगा था। चाबी मंगवाई तो वहां दफनाने से इन्कार कर दिया गया। कहा गया कि ये कब्रिस्तान सिर्फ भुर्जी मुसलमानों के लिए है, न कि लुहार मुसलमानों के लिए। दलील ये कि कब्रिस्तान का उनके पक्ष में बैनामा भी हो गया है। इतना सुनते ही परिजनों का गम गुस्से में बदल गया।

छाया गुस्सा

बात बढ़ी तो दोनों पक्ष जुट आए और अपनी-अपनी दलीलें देने लगे। मामला बढ़ने की खबर पहुंची तो खैर कोतवाल आरएन सिंह भी पहुंच गए। पुलिस ने भी ताला खोलने को कहा, लेकिन दूसरा पक्ष राजी न हुआ।

तोड़ा ताला

बात नहीं बनी तो सैफी पक्ष के लोग ताला तोड़ने पर आमादा हो गए। बात बढ़ते देख पुलिस के हाथ-पांव फूले। हालांकि, पुलिस की मौजूदगी में ही ताला टूट गया और कब्र भी खुद गई। दूसरे पक्ष ने विरोध नहीं किया।

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