बेवक्त और बेमौके क्यों हो गई एक जन आंदोलन की मौत?

भारत की जनता के दिल में उतरने वाले एक और जन आंदोलन की बेवक्त और बेमौके मौत हो गई। जन लोकपाल कानून बनने से पहले ही अन्ना हजारे ने टीम अन्ना और कोर कमेटी के खत्म होने की औपचारिक घोषणा करके हलचल मचा दी है। एक तरफ सरकार चुप है तो दूसरी ओर उन लाखों आंदोलनकारियों को दुख है जिन्होंने अपने बेशकीमती दिन इस आंदोलन को समर्पित किए। सवाल उठ रहे हैं कि अपने लक्ष्य (जन लोकपाल बिल) को पाए बिना कोर कमेटी क्यों भंग कर दी गई। क्यों अन्ना ने एकाएक अनशन खत्म किया और क्यों टीम अन्ना को समाप्त करने की घोषणा की गई। आखिर ऐसी क्या वजहें रही जो एक लोकप्रिय जन आंदोलन ने चरम पर आने से पहले ही दम तोड़ दिया।

‌बीच राह में तोड़ा दम
अगर जनलोकपाल कानून बन गया होता या फिर सरकार की तरफ से इस संबंध में कोई आधिकारिक और सकारात्मक आश्वासन ही मिला होता तो इस आंदोलन की मौत इतना दुख न देती। लेकिन बगैर किसी कारण के कोर कमेटी भंग करने की घोषणा उन आंदोलनकारियों के दिलों को जरूर दुखा रही है जिन्होंने अपने दिन रात इस आंदोलन के लिए एक कर दिए। टीम अन्ना के सभी सदस्य राजनीति में उतरने की तैयारी कर रहे हैं और इसके लिए 2014 की चुनाव डायरी खोल ली गई है। दूसरी तरफ वो कार्यकर्ता जो अन्ना के साथ हर समय, हर मौके पर खड़े रहे, अब ठगा सा महसूस कर रहे हैं। उनकी जंग का अंजाम कुछ नहीं निकला और अन्ना गांव लौट रहे हैं।

क्या अपनी टीम से उकता गए अन्ना?
सवाल उठता है कि क्या अन्ना अपनी कोर कमेटी से तंग आ गए थे। ये इसलिए संभव है कि एक सदाचारी और बुद्धिमान टीम का निर्माण करने वाले टीम अन्ना पिछले दिनों टीम के रवैये से तंग आ गए थे। टीम की आपसी फूट, राजनीतिक ललक, और खुद कई भ्रष्टाचार के मामलों में फंसे कोर कमेटी के कई सदस्य अन्ना को दिमागी तौर पर परेशान कर रहे थे। अरविंद केजरीवाल, प्रशांत भूषण, मनीष‌ सिसौदिया और किरण बेदी आदोंलन की शुरूआत में अन्ना की हर बात को पत्थर की लकीर की तरह मानते थे लेकिन समय आते आते इनके आपसी मतभेद और इनकी रायशुमारी के बीच अन्ना अलग थलग पड़ने लगे थे। याद है आपको जब अन्ना एक समय मौन व्रत लेकर गांव चले गए थे। तब भी अन्ना ने टीम भंग करने की सोची थी लेकिन टीम के सदस्यों ने अन्ना को मना लिया था। लेकिन काठ की हांडी बार बार नहीं चढ़ती। टीम के मनमाने रवैये से परेशान होकर आखिरकार अन्ना ने आंदोलन खत्म करने का मन बना ही लिया। परिणाम सबके सामने है, टीम अन्ना चुनाव लड़ेगी और अन्ना चुनाव नहीं लड़ेंगे।

क्या राजनीति में उतरना ही ध्येय था?
अन्ना के आंदोलन की बेवक्त मौत से उन लोगों को झटका लगा है जो यह समझते हैं कि राजनीति में उतरे बिना समाज सेवा हो सकती है। दरअसल अन्ना के आंदोलन को इतनी सफलता भी महज इसलिए मिली क्योंकि यहां राजनीति के लिए कोई विकल्प नहीं था। अन्ना राजनीति से अलग रहकर लोकतंत्र के लिए लड़ना चाहते थे लेकिन राजनीति में उतरने की घोषणा के साथ उन्होंने टीम अन्ना की समाप्ति की घोषणा की तो जनता को आश्चर्य होना स्वाभाविक है। लोगों को लग रहा है कि क्या राजनीति में उतरना ही आंदोलन का लक्ष्य था। अगर राजनीति में ही उतरना था तो इतने दिनों तक अनशन, आंदोलन और जनता जुड़ाव का उपक्रम क्यों किया।

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