लिट्टी बेचकर कटाया सिंगापुर का टिकट

son-of-small-food-seller-go-to-singapurपटना। कहते हैं कि कठिनाइयों से लड़ने का हौसला हो, तो मंजिल खुद रास्ता बताती है। गांधी मैदान के पास 15 वर्षो से लोगों को लिट्टी खिलाने वाले खुसरूपुर थाना के खुसकी ग्राम निवासी अशोक कुमार चौधरी की जिंदगी भी कुछ ऐसा ही वाकया बयां करती है। दो महीने पहले ‘नासवी’ (नेशनल एसोसिएशन आफ स्ट्रीट वेन्डर्स आफ इंडिया) की मदद से हिम्मत जुटाकर बेटे को दिल्ली फूड फेस्टिवल में भाग लेने क्या भेजा, जिंदगी ने सफलता के दरवाजे खोल दिए।

दिल्ली में बिक्री के आधार पर बिहार के दो वेन्डर्स को सिंगापुर फूड फेस्टिवल में भाग लेने का मौका मिला है। उनमें एक विजय भी है। विजय अगले महीने सिंगापुर वालों को लिट्टी खिलाने के बारे में सोचकर फूले नहीं समा रहा।

आसान नहीं था सफर

अशोक बताते हैं कि 1988 में गांधी मैदान के पास जमीन पर बैठकर लिट्टी बेचना शुरू किया था। तब विजय का जन्म भी नहीं हुआ था। तब से लेकर आज तक कुछ नहीं बदला। गांधी मैदान के पास ही यत्र-तत्र छोटी सी दुकान लेकर भटकते रहे। यहां का स्थायी पता न होने के कारण किसी बैंक ने भी कभी कोई मदद नहीं की। सरकारी मदद के बारे में सोचा भी नहीं क्योंकि उतनी पहुंच नहीं थी। परिवार बढ़ने के साथ खर्च भी बढ़ता गया। झंझावातों से जूझते परिवार के बड़े बेटे विजय की पढ़ाई आठवीं तक ही हो पाई। एक दशक पहले देश के करोड़ों ठेले-खोमचे वालों की आर्थिक व कानूनी मदद करने के उद्देश्य से गठित हुई ‘निदान’, अब ‘नासवी’ संस्था से जुड़कर हौंसला मिला। दो महीने पहले संस्था ने ही विजय को दिल्ली फूड फेस्टिवल में भाग लेने भेजा था।

मौका मिला तो पढ़ेगा विजय

विजय बताता है कि आर्थिक परेशानी से उसकी पढ़ाई छूट गई। लेकिन छोटे भाई को अफसर बनाएगा। अभी वह संत जेवियर्स में नौंवी में पढ़ रहा है। सिंगापुर फूड फेस्टिवल से लौटकर वह खुद आगे पढ़ाई करेगा। उसे एक सफल बिजनेसमैन बनने की चाह है।

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