विश्वास बहाली पर चीन से समझौते की उम्मीद धुंधली

india-china-flagनई दिल्ली । सीमा पर भारत और चीन का तनाव तो टल गया लेकिन सैन्य विश्वास बढ़ाने के उपायों को लेकर रस्साकसी जारी है। चीन की ओर से भेजे गए सीमा रक्षा सहयोग पर प्रस्तावित समझौते के कई प्रस्तावों पर भारतीय खेमे की आपत्तियां है। वहीं, सैन्य तालमेल बनाने के लिए रखे अपने कई प्रस्तावों पर भारतीय खेमे को चीनी जवाब का इंतजार है।

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ऐसे में रविवार शाम भारत आ रहे चीनी प्रधानमंत्री ली कछयांग के तीन दिवसीय दौरे में सीमा व सैन्य विश्वास बहाली के नए उपायों पर किसी नए समझौते की उम्मीद धुंधली है। चीन की ओर से सीमा पर रक्षा सहयोग के लिए भेजे गए प्रस्तावित समझौते की प्रगति के बारे में पूछे जाने पर विदेश मंत्रालय में चीन मामलों के प्रभारी संयुक्त सचिव गौतम बंबावाले ने इतना ही कहा कि इस संबंध में काम अभी चल रहा है। दोनों पक्ष बात कर रहे हैं, लिहाजा फिलहाल किसी नतीजे की बात करना मुनासिब नहीं है।

समझा जाता है कि चीन की ओर से भेजे गए प्रस्तावों में सीमा पर गश्ती दलों के संबंध में पूर्व सूचना देना, सैन्य ढांचे को मौजूदा स्थिति तक सीमित रखना और एक दूसरे को अहम सैन्य तैनातियों की जानकारी देने जैसी बातें हैं। चीन की ओर से कुछ माह पहले सीमा मामले पर नए समझौते का प्रस्तावित प्रारूप भारत को भेजा गया था। चीन इस समझौते पर जल्द से जल्द दस्तखत के लिए काफी लालायित भी है। भारत आ रहे चीनी प्रधानमंत्री की अपने भारतीय समकक्ष से रविवार शाम सीधी मुलाकात होनी है, वहीं सोमवार को दोनों नेताओं के बीच प्रतिनिधिमंडल स्तरीय वार्ता भी होगी।

सीमा मामले पर चीन के प्रस्तावों पर भारत के कुछ एतराज हैं तो सैन्य स्तर पर विश्वास बढ़ाने के उपायों पर कई भारतीय प्रस्ताव चीन के पास अटके हैं। सूत्रों के मुताबिक दोनों देशों के बीच वरिष्ठ सैन्य अधिकारियों के बीच हॉटलाइन स्थापित करने का प्रस्ताव काफी समय से लटका है। इसके अलावा सीमा पर वरिष्ठ सैन्य अधिकारियों के एक-दूसरे के यहां शिष्टाचार मुलाकातों व आवाजाही के दरवाजे खोलने का प्रस्ताव भी अनुत्तरित है। इसके अलावा भारत की ओर वास्तविक नियंत्रण रेखा के सीमांकन के लिए पूर्वी व पश्चिमी सेक्टर में नक्शों की अदला-बदली के प्रस्ताव पर भी चीन ने कोई जवाब नहीं दिया है।

गौरतलब है कि गत 15 अप्रैल को अचानक चीनी सेना के एक गश्ती दस्ते ने वास्तविक नियंत्रण रेखा पर भारतीय हद में अपने तंबू गाड़ दिए थे। इसने दोनों देशों की सेनाओं के बीच आमने-सामने के मोर्चे की स्थिति खड़ी कर दी थी। साथ ही लद्दाख के दिपसांग इलाके में तीन हफ्तों तक चली इस मोर्चेबंदी में सैन्य स्तर पर विश्वास बहाली के लिए 2005 में आमना-सामना टालने के लिए हुए समझौते का भी पालन नहीं हो पाया। इसके तहत आमना-सामना होने पर दोनों ओर के गश्ती दलों के लिए बैनर दिखाकर लौट जाने की व्यवस्था है।

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