आडवाणी हुए ‘लाल’: रूठने-मनाने की कला में माहिर रहे हैं ये

lk advaniनई दिल्ली। रामराज को साकार करने की मंशा रखने वाली पार्टी में पूरी तरह रामायण का एपिसोड चल रहा है। अपनी मांगें मनवाने के लिए कैकेयी का कोपभवन जाना आपको याद ही होगा। इस बार राम के सहारे राजनीति करने वाली पार्टी में दशरथ ही कोप भवन में चले गए हैं। मोदी को चुनाव प्रचार समिति की कमान सौंपी गई तो आडवाणी ‘बीमार’ हो गए। उनके बीमार पड़ते ही उनकी टीम उनकी भावनाओं के अनुरूप संगीत देने लगी। जसवंत सिंह, उमा भारती, यशवंत सिन्हा, शत्रुघ्न सिन्हा ने अपनी भूमिका पूरी तरह से निभाई। कांग्रेस की तरह बीजेपी में किसी एक बांसुरी पर सभी ता ता थैया नहीं करते हैं। यही वजह है कि यहां प्रेशर टेक्टिस की खूब झलक दिखती है। वैसे आडवाणी कोई पहली बार कोपभवन में नहीं गए हैं। ऐसा वह पहले भी कई बार कर चुके हैं।

आडवाणी को मनाने के लिए कितनी गंभीर है बीजेपी?

आपको बता दें कि 2002 में इसी गोवा में हुए पार्टी के सम्मेलन में आडवाणी ने अपनी इज्जत दांव पर लगा कर अपने शिष्य की मुख्यमंत्री की कुर्सी बचाई थी। अटल बिहारी वाजपेई हटाने के पक्ष में थे तो आडवाणी उस वक्त भी अड़ गए थे। एक बार फिर इतिहास खुद को दुहरा रहा है। आडवाणी गोवा में मोदी को प्रचार कमेटी का अध्यक्ष बनाने के फैसले पर इतने नाराज हुए कि बीजेपी के महत्वपूर्ण पदों से इस्तीफे की पेशकश कर दी।

आठ साल में तीसरी बार आडवाणी का इस्तीफा

उपप्रधानमंत्री बनने के लिए भी आडवाणी ने खुद को सरकार के कामकाज से अलग कर लिया था। इस कदर कोपभवन में चले गए थे कि अटल जी को इन्हें उपप्रधानमंत्री बनाना पड़ा।

भाजपा के लिए मुसीबत बनते रहे हैं उम्रदराज नेता

जिन्ना प्रकरण के दौरान भी संघ का लगातार दबाव बना रहा, तब जाकर इस्तीफा दिए। महीनों तक इनके रूठने और मनाने का दौर चला।

2009 में पार्टी को मिली करारी हार के बाद जबरदस्त दबाव बना और आडवाणी को विपक्ष के नेता पद से इस्तीफा देना पड़ा। लेकिन दल में इतना दबाव बनाया कि बीजेपी को संसदीय दल का नेता बनाना पड़ा।

2009 के बाद से लगातार संघ चाहता है कि आडवाणी नई पीढ़ी को मौका दें लेकिन कभी जन यात्रा निकाल कर तो कभी रूठकर पीएम पद की उम्मीदवारी के लिए लगातार दबाव बनाए हुए हैं।

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