झगड़ा मां-बाप का, पिस रहे मासूम

children gets effectedनई दिल्ली । शादी को सात जन्मों का बंधन माना जाता है, लेकिन वर्तमान समय में यह पवित्र बंधन इसी जन्म में टूटने लगा है। पति-पत्नी के बीच वैचारिक मतभेद व अन्य कारणों से तलाक के मामले लगातार बढ़ रहे हैं, जिसका खामियाजा उनके मासूम बच्चों को भुगतना पड़ रहा है। तलाक की मांग करने वाले दंपती यह समझने को तैयार नहीं कि इसका उनकेबच्चों पर क्या प्रभाव पड़ेगा।

राजधानी की जिला अदालतों में 612 मामले केवल बच्चों की कस्टडी को लेकर ही चल रहे हैं। मां-बाप ने बच्चों की कस्टडी के लिए अदालत की शरण ले रखी है, लेकिन पिस मासूम रहे हैं। इनका बचपन अदालती फैसले पर निर्भर है कि भविष्य में वे किसके साथ रहेंगे और किसके प्यार से महरूम हो जाएंगे। पति-पत्नी के बीच तलाक के मुकदमे का बच्चों पर काफी गहरा प्रभाव पड़ता है। इसका बड़ा उदाहरण कुछ माह पूर्व तीसहजारी कोर्ट में पेश आए कस्टडी के एक मामले में देखने को मिला था। मामले में दो बच्चों ने मां-बाप की लड़ाई से परेशान होकर दोनों के साथ ही जाने से इन्कार कर दिया था।

बच्चों का कहना था कि मां-बाप को उनका साथ चाहिए तो उन्हें साथ में रहना होगा। लेकिन कानून के सामने उनकी एक न चली और अदालत ने दोनों बच्चों की कस्टडी कानून के अनुसार मां को दे दी।

बच्चों की भावना समझते हैं पर जिंदगी नर्क नहीं कर सकते

अदालत में तलाक होने के बाद बेटा व बेटी की कस्टडी का मुकदमा लड़ रहे सुधा और रमन (दोनों काल्पनिक नाम) से भी बात की गई। उनका कहना था कि वे बच्चों की भावनाओं को समझते हैं। लेकिन बच्चों के लिए अपनी जिंदगी नर्क नहीं कर सकते। वे एक साथ नहीं रह सकते थे, इसलिए तलाक ले लिया। रमन ने कहा कि वह नहीं चाहता कि उसके बच्चे बड़े होकर उसकी पत्नी की तरह बनें। कुछ ऐसा ही कहना सुधा का भी था। सुधा ने यह भी कहा कि वह बच्चों को मां-बाप दोनों का प्यार देने की कोशिश करेंगी।

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