नई दिल्ली/ कॉरपोरेट जगत से राजनीति में आने वाले पूर्व केन्द्रीय मंत्री अरुण नेहरु अपने चचेरे भाई दिवंगत प्रधानमंत्री राजीव गांधी के सिद्धहस्त रणनीतिकार थे। उनका कल रात गुडगांव के एक अस्पताल में निधन हो गया। श्रीमती इंदिरा गांधी के कहने पर वह राजनीति में आए और रायबरेली से 1984-89 में भी सांसद रहे और राजीव गांधी के मंत्रिमंडल में मंत्री भी रहे। लेकिन बाद में कांग्रेस से अलग होकर उन्होंने विश्वनाथ प्रताप सिंह के साथ जनमोर्चा का गठन किया और बाद में जनता दल के गठन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। उसके बाद भी वह दिसम्बर 1989 से नवंबर 1990 तक केन्द्रीय वाणिज्य और पर्यटन मंत्री रहे। अरुण नेहरु जब राजीव गांधी से अलग हुए, तो परिवारों के बीच भी दूरियां बढती गई। लेकिन आखिरी क्षणों में यह कडवाहट दूर हो गई, क्योंकि कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी उन्हें अस्पताल में देखने गई थी। अरुण नेहरु जब गृहमंत्री थे, तो उनके कार्यकाल में चेकोस्लोवाकियाकी मर्कुरिया फारेन ट्रेड कापरे से पिस्तौलों की खरीद हुई थी, जिसमें सरकार को 25 लाख रुपये का नुकसान हुआ था। उस समय इस सौदे में उनकी कथित लिप्तता बताई गई।
इस मामले में केन्द्रीय जांच ब्यूरो ने 20 वर्ष तक जांच के बाद 2007 में रिपोर्ट दी और कहा कि उसे कोई आपत्तिजनक सुबूत नहीं मिला। लेकिन ट्रायल कोर्ट ने सीबीआई की रिपोर्ट को अस्वीकार करते हुए कहा कि सौदे में शामिल होने के बारे में नेहरु के खिलाफ पर्याप्त सुबूत है, लेकिन उच्चतम न्यायालय ने मार्च 2013 में अगले आदेश तक कार्यवाही पर रोक लगा दी। राजनीति से अलग होने के बाद भी अरुण नेहरु की राजनीति में गहरी पैठ थी और उनके विचारों को काफी अहमियत दी जाती थी।