शरीर मात्र विलीन हुआ है, आनंदपाल अब भी जिंदा है

तेजवानी गिरधर
तेजवानी गिरधर
हालांकि भारी जद्दोजहद के बाद भड़की हिंसा के बीच पुलिस के हस्तक्षेप से कुख्यात आनंदपाल की अंत्येष्टि हो गई और उसका शरीर पंच तत्त्व में विलीन हो गया, मगर आनंदपाल अब भी जिंदा है। पूरे राजपूत समाज के समर्थन में खड़े होने से उसकी आत्मा का साया अब भी मंडरा रहा है। बेशक अंत्येष्टि से सरकार ने राहत की सांस ली है, मगर एनकाउंटर की सीबीआई जांच पर अड़ा राजपूत समाज शांत होता नहीं दिख रहा।
विशेष रूप से सोशल मीडिया में समाज को और लामबंद करने और सरकार के खिलाफ मोर्चा खोले रखने की मुहिम जारी है। क्राइम के दायरे को लांघ कर पूरी तरह से राजनीतिक हो गई इस समस्या से सरकार कैसे निपटेगी, ये तो आने वाला समय ही बताएगा, मगर चुनाव से तकरीबन डेढ़ साल पहले उपजे इस जिन्न को शांत करने के लिए कई जतन करने होंगे।
वस्तुत: आंदोलन के चलते हुए हिंसा के कारण यह मामला और पेचीदा हो गया है। अनेक नेताओं की धरपकड़ की गई है तो कई पर मुकदमे दर्ज किए जा रहे हैं। अब जो लोग फंसे हैं, उन्हें बचाने के लिए समाज का दबाव नेताओं पर होगा। एनकाउंटर की सीबीआई जांच की मांग तो अपनी जगह है ही, मगर आंदोलन के चलते मुकदमों में फंसे लोगों का साथ देने के के लिए एक और मुहिम शुरू होगी। सच तो ये है कि मुहिम शुरू हो ही गई है। सोशल मीडिया पर मुख्यमंत्री को राजपूत विरोधी करार देकर आने वाले चुनाव में निपटाने की कसमें खाई जा रही हैं। बीजेपी के झंडे वाले चिन्ह पर क्रॉस बना कर बहिष्कार की अपील की जा रही है। राजस्थान के हर राजपूत परिवार के पास मोबाइल में यह सब पहुंच रहा है। समाज के हित में निर्णय लेने की कसम खिलाई जा रही है।
वाट्स ऐप पर एक अपील चल रही है कि अगर आप आनन्दपाल को न्याय दिलवाना चाहते हो तो प्रधानमन्त्री कार्यालय के टोल फ्री नंबर 18001204411 पर कॉल करके पीएम मोदीजी को अपनी आवाज में वॉइस सन्देश दें कि इस फर्जी एनकाउंटर की सीबीआई जांच करवा कर वसुंधरा को हटायें नहीं तो आगामी चुनाव में परिणाम भुगतना होगा। ध्यान रहे 1 मिनट होते ही आपकी काल कट जायेगी और आपका सन्देश पहुंचते ही आपको वापस मेसेज मिलेगा। अब एक कॉल तो घुमा दो राजपूत होने के नाते। अभी नही तो कभी नहीं। इतने कॉल करो कि मोदीजी सोचने पर मजबूर हो जाएं।
इसी प्रकार लोकेन्द्र सिंह कालवी, गिरिराज सिंह लाटवाड़ा, महिपाल सिंह मकराना व सुखदेव सिंह गोगामेड़ी के नाम से एक अपील जारी की गई है, जिसके तहत 21 जुलाई को राजस्थान चक्का जाम, 22 जुलाई को जयपुर बंद का अह्वान किया गया है।
इतना जरूर है कि सरकार अपनी पावर का उपयोग कर इस आंदोलन से निपट ही लेगी, मगर सत्तारूढ़ भाजपा के लिए बड़ी समस्या ये है कि जो समाज वर्षों तक उसका वोट बैंक रहा है, उसे छिटकने से कैसे बचाया जाए? हालांकि जातीय मुहिमों में दरार डालने के कई उपाय सरकार के पास होते हैं, मगर जिस तरह से इस आंदोलन ने रूप अख्तियार किया है, उसे देखते हुए लगता है कि सरकार भले ही समाज को संतुष्ट करने के अनेक जतन कर ले, मगर जो एक बड़ा तबका छिटकेगा, उसका रुख फिर भाजपा की ओर करना बेहद कठिन होगा।
-तेजवानी गिरधर
7742067000

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