एक देश, एक चुनाव : सत्ता पर दुबारा काबिज होने की कवायद

-तेजवानी गिरधर-
भाजपा की एक देश एक चुनाव की कवायद भले ही चुनाव सुधार की दिशा में बढ़ती नजर आती है, मगर राजनीतिक जानकारों की दृष्टि में उसका साइलेंट एजेंडा एक बार फिर सत्ता पर काबिज होने की मंशा है। ज्ञातव्य है कि हाल ही यह खबर सुर्खियों में रही कि भाजपा लोकसभा चुनाव के साथ 11 राज्यों के विधानसभा चुनाव भी करवा लेना चाहती है। इस आशय की खबरें पूर्व में आती रहीं, मगर उस पर मंथन मात्र ही हुआ। हालांकि इस पर अभी सर्वसम्मति नहीं हो पाई है और न ही कोई ठोस प्रस्ताव तैयार हो पाया है, मगर भाजपा की कोशिश है कि किसी न किसी तरह इसे अमल में लाया जाए।

तेजवानी गिरधर
पार्टी सूत्रों का कहना है कि कम से कम सैद्धांतिक रूप से अगले साल लोकसभा चुनावों के साथ 11 राज्यों के विधानसभा चुनाव कराने का प्रयास किया जा सकता है। लोकसभा चुनावों के साथ 11 राज्यों के चुनाव कराने पर भाजपा शासित तीन राज्यों के चुनाव देर से कराया जा सकते हैं और 2019 में बाद में होने वाले कुछ राज्यों के चुनाव पहले कराए जा सकते हैं। ऐसे 11 राज्यों की पहचान की गई है। रहा सवाल ओडिशा, आंध्र प्रदेश, तेलंगाना और सिक्किम का तो वहां मतदान सामान्य तौर पर लोकसभा चुनावों के साथ होते हैं। झारखंड़, हरियाणा और महाराष्ट्र में भी चुनाव 2019 में अक्टूबर में होने हैं, ऐसे में वहां कुछ महीने पहले चुनाव कराए जा सकते हैं। जम्मू-कश्मीर में पहले से ही राज्यपाल शासन लगा हुआ है। ऐसे में वहां भी चुनाव लोकसभा चुनावों के साथ हो सकते हैं। मध्यप्रदेश, राजस्थान और छत्तीसगढ विधानसभाओं का कार्यकाल जनवरी 2019 में समाप्त हो रहा है। भाजपा की सोच है कि वहां कुछ समय के लिए राज्यपाल शासन लगाया जा सकता है ताकि वहां विधानसभा चुनाव अगले साल लोकसभा चुनाव के साथ हों। कांग्रेस शासित मिजोरम विधानसभा का कार्यकाल भी इस साल दिसंबर में समाप्त हो रहा है। ऐसे में इन 11 राज्यों- मध्य प्रदेश, राजस्थान, छत्तीसगढ़, मिजोरम, तेलंगाना, आंध्र प्रदेश, ओडिशा, झारखंड, हरियाणा, सिक्किम और अरुणाचल में एक साथ चुनाव कराए जा सकते हैं।
जहां तक चुनाव आयोग का सवाल है वह स्पष्ट कर चुका है कि वह दिसम्बर में लोकसभा चुनाव के साथ चार राज्यों में एक साथ चुनाव कराने में सक्षम है। यह बात उन्होंने मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, मिजोरम और राजस्थान में एक साथ चुनाव कराने के सवाल पर कही। आयोग के अनुसार लोकसभा चुनाव अप्रैल-मई 2019 में होने हैं, लेकिन स्थिति बन रही है कि इन्हें नवम्बर-दिसम्बर 2018 में कराया जा सकता है। ऐसे में ये चुनाव मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, मिजोरम और राजस्थान के विधानसभा चुनाव के साथ हो सकते हैं। फिलहाल, मिजोरम विधानसभा का कार्यकाल 15 दिसंबर को पूरा हो रहा है। वहीं, छत्तीसगढ़, मध्य प्रदेश और राजस्थान विधानसभा क्रमश: 5 जनवरी, 7 जनवरी और 20 जनवरी को अपना कार्यकाल पूरा कर लेंगी।
जानकारों का मानना है कि भाजपा की कोशिश है कि केन्द्र में उसकी सत्ता बरकरार रहे। उधर राजस्थान, मध्यप्रदेश व छत्तीसगढ़ के हालात ऐसे हैं कि अगर वहां नवंबर में चुनाव होते हैं तो एंटी इन्कंबेंसी फैक्टर के चलते भाजपा सत्ता से दूर रह सकती है। अगर ऐसा हुआ तो आगामी लोकसभा चुनाव में उसे दिक्कत आ सकती है। ये ऐसे राज्य हैं, जहां योजनाबद्ध कोशिश की जाए तो परिणाम भाजपा के अनुकूल आने की संभावना बनती है। भाजपा सोचती है कि अगर इन विधानसभाओं के चुनाव लोकसभा के साथ कराए जा सके तो राज्य स्तरीय फैक्टर कम हो जाएगा और मोदी की ब्रांडिंग काम आ जाएगी। हालांकि यह सही है कि केन्द्र सरकार की परफोरमेंस अच्छी नहीं रही है, इस कारण दुबारा सत्ता में आना आसान नहीं रहा, कम से कम पहले जैसी मोदी लहर तो नहीं चलने वाली, मगर अब भी मोदी का ब्रांड तो चल ही रहा है। भाजपा उसका लाभ लेना चाहती है।
जानकार सूत्रों के अनुसार मोदी एक-दो ऐसी जनकल्याणकारी योजनाएं लागू करने में मूड में हैं, जिनका बड़े पैमाने पर सीधे आम जनता को लाभ मिलेगा और उनकी नॉन परफोरमेंस की स्मृति धुंधली पड़ जाएगी। आशंका इस बात की भी है कि वोटों के धु्रवीकरण के लिए पाकिस्तान के साथ छेडख़ानी की भी जा सकती है।
स्वाधीनता दिवस पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की ओर से दिए गए संबोधन में यदि केंद्र सरकार की ओर से अब तक किए गए काम विस्तार से रेखांकित हुए तो इसीलिए, क्योंकि यह लाल किले के प्राचीर से उनके वर्तमान कार्यकाल का आखिरी भाषण था। ऐसे भाषण में आम चुनाव निगाह में होना स्वाभाविक है और शायद इसीलिए उन्होंने अपनी सरकार की अब तक की उपलब्धियों का जिक्र करने के साथ ही खुद को देश को आगे ले जाने के लिए व्यग्र बताया। उन्होंने अपनी सरकार की भावी योजनाओं पर भी प्रकाश डाला। इनमें सबसे महत्वाकांक्षी योजना आयुष्मान भारत है। प्रधानमंत्री ने 25 सितंबर से इस योजना को लागू करने की करने की घोषणा करते हुए यह भी स्पष्ट किया कि प्रारंभ में तो यह योजना निम्न वर्ग के दस करोड़ परिवारों के लिए होगी, लेकिन बाद में निम्न-मध्यम, मध्यम और उच्च वर्ग भी इसके दायरे में आएंगे।
कुल मिला कर यही संकेत मिला कि प्रधानमंत्री खास तौर पर गरीबों, महिलाओं और किसानों यानी एक बड़े वोट बैंक को यह भरोसा दिलाना चाह रहे हैं कि वे सब उनकी सरकार की विशेष प्राथमिकता में हैं। साफ है कि एक तरह से प्रधानमंत्री लाल किले की प्राचीर से यह आग्रह भी कर गए कि उन्हें इस ऐतिहासिक स्थल पर तिरंगा फहराने का अवसर फिर से मिलना चाहिए।

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