अजमेर के पत्रकारों-साहित्यकारों की लेखन विधाएं

भाग सात
अजमेर के पत्रकारों व साहित्यकारों की कथा इस यात्रा में कोई कमी न रह जाए, लिहाजा मैने अपने पत्रकार मित्र श्री अमित टंडन से, जो कि उम्दा दर्जे के गजलकार होने के साथ-साथ टीवी एंकर भी हैं, से दैनिक भास्कर में मेरे और उनके साथ काम कर चुके कुछ साथियों के बारे में तनिक चर्चा की। कुछ उनका भी नजरिया जाना।
अजमेर के कुछ पत्रकार साथी, जिन्होंने पत्रकारिता में बदलाव के दौर में अपनी अलग पहचान बनाई, उनमें स्व. श्री प्रदीप शेखावत का नाम याद आता है। 21वीं सदी शुरू हो चुकी थी और भास्कर के आने के बाद पत्रकारिता के साथ में मीडिया का एक विशुद्ध व्यावसायिक रूप सामने आने लगा था। उस व्यावसायिक दौड़ में हालांकि लेखन व पत्रकारिता को रनिंग ट्रेक पर कायम रखना मुश्किल सा होने लगा था, लेकिन तब पत्रकारिता में नौजवानों की एक ऐसी खेप आई थी, जो भाषायी ज्ञान की संपदा साथ लेकर आई। उनमें एक रोचक व्यक्तित्व स्व. श्री शेखावत भी थे।
यायावर की जिंदगी जीता एक फितरती इंसान। गहरी दार्शनिक सोच, मगर साथ ही मसखरी प्रवृत्ति। शेखावत की खासियत थीं उनकी त्वरित टिप्पणियां और उस पर कटाक्ष वाली भाषा शैली। एक मनमौजी लेखक का लापरवाह अंदाज था, मगर उस लापरवाही में से जो शब्द और तथ्य निकल कर आते थे, वो सीधे दिल पर असर करते थे। हालांकि स्व. श्री शेखावत ने रेपोर्टिंग कभी नहीं की थी, मगर डेस्क के उनके अनुभव व खबरों की समझ के कारण वे विशेष टिप्पणियां बहुत सटीक करते थे। उनके लेखन की मारक क्षमता प्रभावी थी, जो मुद्दे को तुरंत हिट करती थी। हालांकि खुद अपने प्रति लापरवाही व व्यवहारिकता में कमी के कारण उनका सामाजिक जीवन वीरान सा रहा और अल्प आयु में ही निधन हो गया, मगर श्री अमित टंडन व वरिष्ठ पत्रकार श्री यशवंत भटनागर के साथ बनी उनकी तिकड़ी आज भी याद की जाती है।

स्व. श्री रविन्द्र सिंह
इसी क्रम में याद आते हैं स्वर्गीय श्री रविन्द्र सिंह। अलमस्त शब्द शायद ऐसे ही लोगों के लिए गढ़ा गया होगा। हालांकि वे लेखक नहीं थे, मगर अखबारों में उप संपादक के रूप में काम करते हुए उनके भाषा ज्ञान को सबने बखूबी पकड़ा था। हिंदी साहित्य का विद्यार्थी होने के कारण उनका शब्द ज्ञान उत्तम था। वे एक कवि हृदय इंसान थे और खुद भी अच्छी गज़लें कहते थे। अनेक मुद्दों पर उनसे विमर्श के दौरान कई नए साहित्यिक विचार निकल कर आते थे। वे भी बहुत जल्द इस संसार को अलविदा कह गए। एक प्रतिभा, जिसे अभी और खिलना था, तिरोहित हो गई।
श्री बलजीत सिंह
उन्हीं के जोड़ीदार श्री बलजीत सिंह आज राजस्थान पत्रिका के अजमेर संस्करण में संपादकीय डेस्क पर कार्यरत हैं। उन्होंने कैरियर के शुरुआती दौर में रिपोर्टिंग से खुद को प्रमाणित किया और लंबे समय तक भास्कर में डेस्क पर कार्य करते हुए भी अनेक लेख व समाचार वे देते रहे। साधारण वा आम जन को समझ में आने वाली भाषा शैली में भी उनके हिंदी साहित्य का ज्ञान साफ परिलक्षित होता है। उनकी उर्दू शब्दों पर भी अच्छी पकड़ है। लेखों या खबरों में तो हिंदी-उर्दू मिक्स भाषा का प्रयोग करते हैं, लेकिन एक गज़़लकार के रूप में उर्दू के वजनी लफ्जों का उचित प्रयोग जहां उनकी गहरी सोच को दर्शाता है, वहीं एक विचारक के रूप में उनके फलसफे को उजागर करता है। शायद ड्यूटी की मजबूरी के चलते आज उनका गद्य लेखन न के बराबर ही देखने को मिलता है, मगर सोशल साइट्स पर उनकी नई-नई गज़लें सुकून देती है कि नीरस संपादकीय दिनचर्या के बीच गजल महक रही है।
श्री संतोष खाचरियावास
श्री रवींद्र और श्री बलजीत सिंह के साथ एक नाम लेना और यहां अनिवार्य है, और वो हैं श्री संतोष खाचरियावास। श्री संतोष भी उसी बेच से हैं, जब श्री प्रदीप, श्री रवींद्र और श्री बलजीत ने पत्रकारिता में कदम रखा था। भास्कर के उन तमाम साप्ताहिक पृष्ठों यथा महानगर प्लस, विविधा आदि में रूटीन की खबरों से हट कर समाज के छोटे छोटे मगर अहम मुद्दों से जुड़ी खबरों के संकलन में श्री संतोष का भी योगदान रहा। हालांकि उनकी भी पहचान बाद में एडिटिंग डेस्क पर समाचार संपादक व पेज लेआउट के लिए बनी, मगर विभिन्न संस्करणों में भिन्न भिन्न प्रकार की खबरों के संपादन व पृष्ठ सज्जा में उनका अपना मुकाम रहा। आज संतोष दैनिक नवज्योति समाचार पत्र के अजमेर संस्करण में डेस्क पर कार्यरत हैं। साथ ही वह एक न्यूज़ पोर्टल का संचालन कर ऑनलाइन पत्रकारिता में भी पूरी तरह सक्रिय रह कर अपनी पहचान को कायम रखे हुए हैं।
-तेजवानी गिरधर
7742067000

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