अजमेर के पत्रकारों-साहित्यकारों की लेखन विधाएं

भाग पंद्रह
श्री सुरेश कासलीवाल
ग्रामीण पृष्ठभूमि के वरिष्ठ पत्रकार श्री सुरेश कासलीवाल ने जब पत्रकारिता के क्षेत्र में प्रवेश किया तो उन्होंने यह कल्पना भी नहीं की होगी कि यही उनका केरियर हो जाएगा। असल में वे निकटवर्ती मांगलियावास गांव के सरपंच थे। सन् 1989 में पहली बार उपसरपंच चुने गए। उसके बाद सन् 1995 से 2000 तक व सन् 2005 से 2010 तक सरपंच रहे। उनकी लोकप्रियता का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि पूरी पंचायत में जैन समाज का मात्र एक ही परिवार है, अर्थात जनता ने उनका व्यवहार देख कर बिना किसी जात-पांत के वोट दिए। सरपंच रहते बंजर भूमि को उपजाऊ बनाने के लिए जलग्रहण के क्षेत्र में राजस्थान में अव्वल दर्ज का काम किया। इसके उपलक्ष में उन्हें राष्ट्रीय स्तर पर पुरस्कृत किया गया। मुंबई के पांच सितारा ग्रांड हयात होटल में आयोजित समारोह में न्यायाधिपति ए. एम. अहमदी से पुरस्कार लेते हुए उन्होंने राजस्थान का प्रतिनिधित्व किया। दिल्ली दूसरे स्थान पर रहा।
वे पीसांगन पंचायत समिति की 45 ग्राम पंचायतों के सरपंच संघ के अध्यक्ष भी रहे। हालांकि वे किसी राजनीतिक दल से जुड़े हुए नहीं थे और न ही किसी पार्टी के सदस्य रहे, लेकिन तत्कालीन पुष्कर विधायक स्वर्गीय श्री रमजान खान से गहरी दोस्ती थी। तब नसीराबाद विधानसभा सीट के लिए भाजपा में दो दावेदारों के बीच टिकट को लेकर घमासान चल रहा था। स्वर्गीय श्री रमजान खान को लगा कि दोनों को छोड़ किसी तीसरे बेदाग व दबंग युवा पर दांव खेला जाए। उन्होंने ही तत्कालीन मुख्यमंत्री स्वर्गीय श्री भैरोंसिंह शेखावत से यह कह कर नसीराबाद से विधानसभा चुनाव का टिकट देने की सिफारिश की कि ये बंदा तेज-तर्रार व जनता को समर्पित होने के कारण लोकप्रिय है और जीत जाएगा। उनसे चुनाव की तैयारी करने को भी कह दिया गया, लेकिन भाजपा ने ऐन वक्त पर समझौते के तहत नसीराबाद सीट जनता दल को दे दी और स्वर्गीय श्रीकरण चौधरी ने चुनाव लड़ा। वे हार गए।
जहां तक पत्रकारिता का सवाल है, यह उन्होंने महज शौक के लिए शुरू की। सबसे पहले मांगलियावास टाइम्स के नाम से पाक्षिक समाचार पत्र आरंभ किया। समाचार पत्र को छपवाने और ग्राम पंचायत के कामों के सिलसिले में अजमेर आना-जाना होता था। जनप्रतिनिधि की भूमिका निभाते-निभाते यकायक दैनिक न्याय से जुड़े और एक रिपोर्टर के रूप में बैटिंग शुरू की। आरंभ से आक्रामक तेवर था। संयोग से दैनिक न्याय जैसे दबंग अखबार का प्लेटफार्म मिला। उन्होंने वहां वर्ष 1994 में लगातार 15 दिन तक भीलों के चंगुल में अजमेर वाले ख्वाजा के नाम से एक सीरीज दी, जिससे रातों-रात निडर पत्रकार के रूप में लोकप्रिय हो गए। पूरा खादिम समुदाय नाराज हो गया। तब आगे खबर नहीं लिखने पर उन्हें एक लाख की रिश्वत पेश की, नहीं माने तो सीरीज रोकने के लिए उनके खिलाफ कलेक्ट्रेट तक जुलूस भी निकाला गया। बहुत रिस्क थी, मगर वे बेधड़क लिखते गए। न्याय ही वह मंच था, जहां उन्होंने हर दिशा, अर्थात हर फील्ड में चौके-छक्के लगाने की योग्यता को साबित किया। उसके बाद कुछ समय तक दैनिक आधुनिक राजस्थान के संपादकीय प्रभारी रहे और समाचार जगत के लिए भी काम किया। सन् 1997 में दैनिक भास्कर से जुड़े। राजनीति व प्रशासन की बीट के साथ-साथ शायद ही ऐसा कोई महकमा हो, जिसकी उन्होंने रिपोर्टिंग नहीं की हो। दरगाह क्षेत्र की रिपोर्टिंग के तो मास्टर रहे। ग्रामीण पृष्ठभूमि से होने के कारण जिला परिषद व ग्राम पंचायतों पर जबरदस्त पकड़ रही है। क्या मजाल कि कोई खबर छूट जाए। खबर छूटना तो दूर, सदैव लीड रोल में रहे हैं। उनकी पत्रकारिता की सबसे बड़ी विशेषता ये है कि रूटीन की खबर के अतिरिक्त सदैव इस पर नजर रखते हैं कि स्पेशल रिपोर्ट तलाश की लाई जाए। उन्होंने अनेक ऐसी स्टोरीज की हैं, जिस पर आम तौर पर अन्य पत्रकारों की नजर तक नहीं जा पाती। उनकी उस स्टोरी को बड़ी तारीफ मिली, जिसमें उन्होंने बताया कि बाल विवाह रोकने के लिए बने शारदा एक्ट को बनाने वाले हरविलास शारदा ने खुद बाल विवाह किया था। वे अजमेर के ही रहने वाले थे। महिला सरपंचों पर केन्द्रित एक एक्सक्लूसिव स्टोरी, जिसका शीर्षक था- महिला सरपंच नहीं जानतीं कि मुख्यमंत्री का नाम क्या है?, पर उन्हें भास्कर के अजमेर संस्करण में पहला पुरस्कार मिला। उनकी कई स्टोरीज दैनिक भास्कर में ऑल एडीशन छप चुकी हैं। यह उनकी योग्यता का ही प्रतिफल है कि भास्कर जैसे अखबार में चीफ रिपोर्टर जैसे महत्वपूर्ण पद पर पहुंचे हैं। लोकसभा चुनाव हो या विधानसभा चुनाव उनका विश्लेषण बिल्कुल सटीक गया है। मतगणना के 3 दिन पहले ही किसके खाते में सीट जाएगी, इसका खुलासा कर देना, उनके राजनीतिक पंडित होने को साबित करता है। प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष श्री सचिन पायलट भी जब अजमेर से चुनाव हारे तब उन्होंने पहले ही व्यक्तिगत चर्चा में बता दिया कि वे चुनाव बड़े अंतर से हारेंगे। हाल ही में रिजु झुनझुनवाला के चुनाव में भी खुलकर बताया कि वे हार में सचिन पायलट का रिकॉर्ड तोड़ेंगे यानी 1 लाख 71 हजार से अधिक मतों से हारेंगे। उन्हें उत्कृष्ठ पत्रकारिता के लिए जिला स्तर पर सम्मानित किया जा चुका है। अंदर की बात ये है कि इसके लिए उन्होंने आवेदन नहीं किया था, जिला कलेक्टर आरुषि मलिक की अध्यक्षता वाली कमेटी ने अपने स्तर पर ही उनका नाम पुरस्कार के लिए चयनित किया।
एक पत्रकार के लिए सामाजिक सरोकारों से जुडऩे और निष्पक्ष पत्रकारिता भी करने के बीच सामंजस्य बैठाना बेहद कठिन होता है। श्री कासलीवाल की कई कलेक्टरों व अन्य अधिकारियों से दोस्ती रही, लेकिन प्रशासन की खामी संबंधित खबरें लिखने को लेकर कभी समझौता नहीं किया।
श्री कासलीवाल वर्तमान में अजयमेरू प्रेस क्लब के अध्यक्ष हैं और क्लब भवन के लिए जनप्रतिनिधियों के कोष से धन जुटाने में कसर नहीं छोड़ी। हाल ही में काफी समय से लंबित तकरीबन 45 लाख रुपए की स्वीकृति राज्य सरकार से खुद लेकर आये, जिससे दूसरी मंजिल पर कमरों का निर्माण होगा। वैशाली नगर स्थित नए भवन में साधन सुविधाएं जुटाने में कोई कसर नहीं छोड़ रहे। राजनीतिज्ञों व प्रशासनिक अधिकारियों से काम कैसे करवाया जाता है, यह बखूबी जानते हैं। अपनी इसी कलाकारी के दम पर कोटड़ा स्थित पत्रकार कॉलोनी विकास समिति के अध्यक्ष के नाते जम कर विकास कार्य करवा रहे हैं। अजमेर की शायद ये इकलौती कॉलोनी होगी, जिसमें सड़क के दोनों और कलर ब्लॉक तक लगे हुए हैं। पत्रकारिता के अलावा सामाजिक सरोकार में भी वे काफी सक्रिय है। लॉयन्स क्लब समेत अन्य संस्थाओं के जरिये अलग-अलग गांवों में हर साल जरूरतमंदों को 300 कंबल, स्वेटर, कपड़े और अब तक कई जरूरतमंद कन्याओं के विवाह में घर गृहस्थी के सामान दिलवा चुके हैं। क्लब अध्यक्ष रहते हुए क्लब के जरिये दो कन्याओं के विवाह में सहयोग कर नई शुरुआत कर चुके हैं।
-तेजवानी गिरधर
7742067000

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