क्या शिव और शंकर अलग-अलग हैं?

हमारी जनचेतना में यह बात गहरे बैठी है कि शिव और शंकर एक ही हैं। इन दोनों में कोई भेद नहीं समझा जाता। जब भी शिव लिंग पर जल चढ़ाते हैं तो मन में त्रिशूलधारी, त्रिनेत्र व नील कंठ की प्रतिमा होती है, जिनकी जटा से गंगा निकलती है। शंकर भगवान का वाहन नंदी को माना जाता है और शिव लिंग के सामने भी नंदी बैल की प्रतिमा स्थापित की जाती है। दोनों के नाम का उच्चारण भी एक साथ किया जाता है, यथा शिव शंकर, शिव शंभू, शिव भोलेनाथ। शिव लिंग पर भी वैसा ही त्रिनेत्र बनाया जाता है, जैसा शंकर के है। दूसरी ओर ऐसे भी लोग हैं, जो कि इन दोनों को अलग-अलग मानते हैं। उनके अपने तर्क हैं। हाल ही शिव रात्री बीती है, तो ये ख्याल आया कि इस पर चर्चा की जाए।
जो लोग दोनों को अलग मानते हैं, हो सकता है कि उन्हें मतिभ्रम हो या फिर यह एक गूढ़ रहस्य हो, मगर उनके इस तर्क में जरूर दम है कि भगवान शंकर तो खुद ही शिव लिंग के आगे ध्यान करते हैं। ऐसी तस्वीरें मौजूद हैं। यहां तक अवतारी मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान राम भी शिव लिंग की आराधना करते हैं। अर्थात जिस परम सत्ता का प्रतीक शिव लिंग है, वह महादेव व राम से भी ऊपर हैं। वे ही सृष्टि की रचना, पालना व विनाश करने के लिए क्रमश: त्रिदेव ब्रह्मा, विष्णु, महेश की रचना करते हैं। अर्थात महेश परमात्मा शिव की रचना हैं तो फिर दोनों एक कैसे हो सकते हैं।
एक और तर्क में भी दम है। वो ये कि शंकर तो सृष्टि का संहार करते हैं, उसकी रचना व पालन का भार ब्रह्मा व विष्णु पर है, तो फिर ऐसा कैसा हो सकता है कि सृष्टि का संहार करने वाले व त्रिदेव से ऊपर जो परम सत्ता है, वह और शंकर एक ही हों? इसे यूं भी कहा जा सकता है कि जिस पर केवल संहार का दायित्व है, रचना व पालन का अन्य पर तो वे परम सत्ता कैसे हो सकते हैं?
सवाल ये भी उठता है कि हम जो शिव रात्री मनाते हैं, वह परमात्मा शिव की स्मृति में है या फिर महादेव शंकर की याद में? शिव रात्रि पर शिव लिंग की ही उपासना की जाती है, इससे लगता है कि शिव लिंग परमात्मा शिव का प्रतीक है। यदि भगवान शंकर ही शिव हैं तो उनका अलग प्रतीक बनाने की क्या जरूरत है। शंकर के ही समकक्ष ब्रह्मा व विष्णु के तो प्रतीक चिन्ह नहीं हैं। ऐसे में शंकर को शिव इसलिए नहीं माना जा सकता, क्यों वे तो साकारी देवता हैं, जिनकी लीलाओं का पुराणों व शास्त्रों में वर्णन है।
वेदों में भी यही लिखा है कि शिव निरंकारी है, उनका कोई आकार नहीं है, शिव लिंग तो एक प्रतीक मात्र है। बावजूद इसके यदि शिव व शंकर को एक ही मान लिया गया है तो जरूर कोई कारण होगा या फिर कोई गंभीर त्रुटि हो गई है।

-तेजवानी गिरधर
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