रिक्त पदों की मार झेल रहा है पॉलिटेक्निक कॉलेज

jaisalmer newsगोपालसिंह रावतपुरा
अजमेरनामा जैसलमेर बेहतर शिक्षा का दावा करने वाली सरकार के दावें जैसलमेर में तकनीकी शिक्षा में खोखले नजर आ रहे है। जिले का एकमात्र राजकीय पॉलिटेक्निक कॉलेज रिक्त पदों से जूझ रहा है। वर्तमान में कॉलेज में तीन बैच में केवल मात्र 4 विशेषज्ञ ही कार्यरत है। जिससे कॉलेज के अध्ययनरत विद्यार्थियों की अध्ययन व्यवस्था चरमराई हुई है। जानकारों का कहना है कि जब तक शिक्षण व्यवस्था में स्थाई शिक्षक नहीं आएंगे तब तक शिक्षण व्यवस्था में यहीं दिक्कत रहेगी। जब तक पद के विरूद्ध स्थाई विशेषज्ञों की नियुक्त नहीं की जाएगी तब तक विद्यार्थियों के भविष्य पर तलवार लटकी रहेगी।

4 शिक्षकों पर है दरोमदार
राजकीय पॉलिटेक्निक कॉलेज में 56 पदों में से केवल मात्र 9 पदों ही भरे हुए है शेष रिक्त है। इसमें से भी केवल मात्र 4 पदों पर ही शिक्षक कार्यरत है शेष चार पदों पर मंत्रालयिक कर्मचारी कार्यरत है। इस स्थिति में केवल 4 शिक्षकों पर ही पॉलिटेक्निक कॉलेज की शिक्षा का दरोमदार है।

विद्यार्थियों की है मजबूरी
कॉलेज में अध्ययनरत विद्यार्थियों के लिए अन्य कोई विकल्प नहीं होना मजबूरी का कारण है। विद्यार्थियों के पास पॉलिटेक्निक की शिक्षा के लिए अन्य जिलों में जाने के अलावा अन्य कोई विकल्प नहीं है। बाहरी जिलों में अध्ययन करना गरीब तबके के विद्यार्थियों के लिए असंभव सी बात है। कॉलेज में कार्यरत शिक्षकों की कमी के कारण विद्यार्थियों को अपना भविष्य अंधकारमय नजर आ रहा है।

यह है कार्यरत
पॉलिटेक्निक कॉलेज में फिजिक्स, मैथामेटिक्स, कम्प्यूटर सांइस व केमिस्ट्री के 6 पदों विरुद्ध पर एक-एक शिक्षक ही कार्यरत है। केमिस्ट्री के शिक्षक को प्रधानाचार्य का अतिरक्त चार्ज भी दिया गया है। इसके साथ ही 2 टेक्निशियन तथा 3 मंत्रालयिक कर्मचारियों में लिपिक ग्रेड प्रथम, कनिष्ठ लिपिक व चपरासी कार्यरत है। बाकि स्वीकृत सभी पद रिक्त है।

तीन बैच में अध्ययनरत विद्यार्थी
वर्ष अध्ययनरत विद्यार्थी
प्रथम वर्ष 52
द्वितीय वर्ष 35
तृतीय वर्ष 30

समस्याओं के कारण नहीं आना चाहते शिक्षक
पॉलिटेक्निक कॉलेज में शिक्षकों के लगभग सभी पद रिक्त है। जैसलमेर पॉलिटेक्निक कॉलेज में शिक्षक आने के इच्छुक नहीं है उसके विभिन्न कारण भी है। इसका सबसे बड़ा कारण है कि शिक्षकों को पॉलिटेक्निक कॉलेज के आस पास रहने की कोई व्यवस्था नहीं है। उसके बाद यहां कार्यरत शिक्षकों को शहर में कमरे भी आसानी से नहीं मिलते है। सीमावर्ती जिलें में कार्यरत शिक्षकों ने इस संबंध में कई बार एचआरए बढ़ाने की मांग भी की है।

error: Content is protected !!