ग्रहस्थ जीवन में मनुष्य को प्रेम से रहना चाहिए

01105बाडमेर 31.12.2016
गुलेच्छा ग्राउण्ड में चल रही देवी भागवत के चौथे दिवस लक्ष्मणदास महाराज ने कहा ग्रहस्थ जीवन में मनुष्य को प्रेम से रहना चाहिए। सदा वाणी पर संयम रखना चाहिये। क्योंकि वाणी से ही झगड़े होते हैं ओर वाणी से घर स्वर्ग बन जाता है। आज के युग में सास-बहु के झगड़े पति-पत्नि के झगडे़ सिर्फ वाणी के द्वारा ही होते है। अतः हमे प्रेम से रहने हेतु एक दुजे का मान रखना चाहिए। देवी भागवत के पावन प्रसंग में आज कौरव पांडव के वृतान्त को विस्तार से कहा। देवी भागवत एक ऐसा ग्रन्थ है जिसमें सब ग्रन्थों का सार है। इसे निर्मल भाव से अगर पढे, सुने व मनन करें तो हमारा कल्याण निष्चय है। आठ वसुओं की पावन कथा में उनके द्वारा गुरू का अपमान करने पर धरती पर जन्म लेना पड़ा। संसार में हर कोई रूठे पर गुरू नहीं रूठने चाहिये।
पुत्र भिष्म की तरहा होना चाहिए जिसने अपने पिता की प्रसन्नता हेतु आजीवन शादी न करने का प्रण लिया जो भिष्म प्रतिज्ञा नाम से विख्यात हुई। पर आज का बालक अपना सुख चाहता है। उसे अपने सुख की खातिर पिता को कितना ही कष्ट हो। उसे परवाह नहीं।
आज महाराज का माल्यार्पण पूर्व जज मांगीलाल शर्मा व कथा संयोजक दुर्गाषंकर ने महाराज से आर्षिवाद लिया। प्रसादी का लाभ मांगीलाल शर्मा पूर्व न्यायाधीष एवं लेखराज खत्री और जगदीष प्रसाद जोषी ने लिया।

दुर्गाषंकर शर्मा
कथा आयोजक

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