अपनी संस्कृति मत छोड़ो: पं. कमल किशोर नागर

मौसम खुल जाने से बढ़ा श्रद्धालुओं का सैलाब – कथा के चैथे दिन कृष्ण जन्मोत्सव मनाया – भाया ने कथा का आयोजन कर ‘धर्मपैथी’ का कार्य किया

02बारां, 07 दिसम्बर। श्री बड़ां बालाजी धाम पर आयोजित श्रीमद् भागवत कथा ज्ञान यज्ञ महोत्सव एवं गौरक्षा सम्मेलन में चैथे दिन का प्रसंग जीवन तथा चरित्र निर्माण पर केन्द्रीत करते हुए गौसेवक एवं सरस्वती पुत्र संत श्री कमलकिशोर जी नागर ने कहा कि समाज का एक बड़ा वर्ग सनातन संस्कृति से दूर होता जा रहा है, जबकि अन्य कई समाज अपनी परम्परा एवं संस्कृति को नहीं छोड़ रहे। यदि हम सब इस प्रकार अपनी सनातन संस्कृति से दूर होते चले गये, तो देश में अराजकता का वातावरण बनता चला जायेगा। संत श्री ने कहा कि हमारे ऋषियों व मुनियों ने जो कुछ शास्त्रों तथा ग्रंथों में खोजा, उसेे पथ प्रदर्शन के लिए सबके सामने रखकर गये, लेकिन हम उस पर चलने के बजाय माया-मोह में उलझते जा रहे है। यदि माया में आवश्यकता से ज्यादा रहोगे, तो यह खतरनाक होगा। उन्होंने कहा कि धार्मिक स्थान, कथा श्रवण अथवा नित्य कर्म में बाधा या अड़चन आये, तो समझो आपकी डोर परमात्मा के हाथ से छूट रही है। हर मनुष्य को चाहिये कि वह संकल्प पर दृढ रहना सीख जाये। इससे उसके अपने मन और मस्तिष्क में बंधी हुई ग्रंथियां स्वतः ही खुलती चली जायेगी और आप भवसागर से निकल सकेंगे। गुरूजी ने कथा को आगे बढ़ाते हुए कहा कि व्यक्ति धार्मिक स्थान, भजन संध्या, अखण्ड कीर्तन या कथा श्रवण के लिए भले ही नहीं जाये, लेकिन वह अपने घर मंे प्रतिदिन अलसुबह साढे तीन से साढे छह बजे तक परमात्मा का स्मरण अवश्य करे। इससे उसका निजी एवं पारिवारिक जीवन निश्चित रूप से खुशहाल होगा। गुरूजी ने बताया कि सोने में भी आज का व्यक्ति शास्त्रीय एवं आयुर्वेदिक परम्परा नहीं अपना रहा। जहां बिस्तर को प्रभु चरण मानकर उसकी गोद में सिर रखने से पूर्व प्रार्थना करने की जरूरत है। इसके विपरित आज का मनुष्य सोने में जानवरों जैसा व्यवहार करने लगा है। सर्व-धर्म सद्भाव की सनातन परम्परा से इतर समाज को अलग-अलग श्रृंखला में बांटने की प्रचलित वर्तमान ‘कथित कारगुजारी’ पर तीखा प्रहार करते हुए संत श्री कमल किशोर जी ने कहा कि जब मनुष्य अपने शरीर में उत्पन्न बीमारी का इलाज करवाने के लिए सभी प्रकार की पैथियों का इस्तेमाल करने से परहेज नहीं रखता, तो फिर धर्म के अनुसरण में हम प्रतिबंध अथवा दबाव क्यों बना रहे है। यह सब कारगुजारी मनुष्यता को भवसागर से पार लगाने में अड़चने पैदा कर रही है, जिनसे प्रत्येक मनुष्य को छूटकारा पाने का प्रयास करना चाहिये। हम किसी भी धर्म अथवा आस्था के मार्ग से सत्य का मार्ग खोज सकते है। ऐसे में हमें मनुष्य जीवन को सत्य से जोड़ने के लिए ही प्रयास करना होगा। धर्म की अलग-अलग पैथी का भेद भवसागर से पार निकालने में अड़चन उत्पन्न नहीं करे, यही कोशिश मनुष्य जीवन की साधना है। उन्होंने समाज से चरित्रवान बनकर सनातन जीवन परम्परा अपनाने का आह्रवान किया। साथ ही स्पष्टता से कहा कि सब धर्मों की पौथी का सार एक है, इसमे भेदभाव नहीं होना चाहिये। गुरूजी ने हाथ मिलाने की लोक प्रचलित परम्परा को भी दोषपूर्ण करार दिया। उन्होंने बताया कि यह एक काफी बड़ी बुराई हो गयी। आज समाज में जय श्रीकृष्ण अथवा राम-रामसा बोलने की परम्परा काफी पीछे छूट गयी। हर व्यक्ति परस्पर मुलाकात में हाथ मिलाने पर जोर देने लगा है, जबकि इससे हमारी पुण्य रेखा एक-दूसरे व्यक्ति की दुष्ट रेखा से मिलकर हमारा अर्जित पुण्य समाप्त कर देती है। साथ ही कहा कि हम सब को सिर झुकाना आना चाहिये। मंदिर हो या किसी प्रकार का देवस्थान अथवा परस्पर मुलाकात में भी मथ्ये वंदना करने की आदत बनाये। इससे आपके जीवन में धीरे-धीरे विलक्षणता आने लगेगी, तभी तो जैनियों में मथ्ये वंदना करने एवं कहने का चलन है। उन्होंने कहा कि आज समाज में सब प्रकार की मशीनें आ गयी, परन्तु पाप नाश अथवा पाप काटने की कोई मशीन नहीं बनी। इसके लिए हर व्यक्ति को निजी स्तर से ही संकल्पबद्ध होकर प्रयास करना पड़ेगा, तभी उसे जीवन का उत्कर्ष प्राप्त होगा। समाज में तिलक एवं सिंदूर लगाने की छूट रही परम्परा को इंगित करते हुए गुरूजी ने कहा कि इससे परहेज नहीं होना चाहिये। सिंदूर का दर्शन पुरूषार्थ को प्रबल एवं परिणाम देने वाला बनाता है। इसकी व्याख्या करते हुए गुरूवर ने कहा कि गौमाता का दर्शन, साधु का दर्शन, ब्राह्रमण का दर्शन तथा प्रभु दर्शन जिस प्रकार अपना खास महत्व रखता है। ठीक उसी प्रकार पतिव्रता स्त्री का मुखदर्शन प्रभुदर्शन के समान है। यदि किसी भी शुभ या मांगलिक कार्य के लिए जा रहे हैं, तो पतिव्रता स्त्री का मुख दर्शन करके ही घर से निकले। संस्कृति से विमुख स्त्री या पुरूष का दर्शन कभी नहीं करना चाहिये। लगातार 03 घंटे चली कथा के अंन्तिम पड़ाव में गुरूजी ने कहा कि हर व्यक्ति को खासकर युवाओं को धार्मिक तथा सनातन परम्परा से जुड़ना होगा। हमें जहां धर्म घटे, वो कार्य नहीं करना है, बल्कि धर्म को बढ़ाने का प्रयास होना चाहिये। कथा को बीच में छोड़कर निकल जाने का आशय है, कि हमारा धर्म घट गया ओर हमने प्रभु को पीठ दिखा दी, जबकि मंदिर, कथा स्थल, युद्ध स्थल एवं सभा स्थल से कभी पीठ दिखाकर नहंी निकलना चाहिये। इन स्थानों से बीच में निकलकर गये, तो मानों आप मैथी की भाजी के समान हो गये और यदि इन सभी स्थानों में आपकी भागीदारी अन्तिम पड़ाव तक कायम रही, तो आप चावल के समान जीवन का सृजन करने में कामयाब रहोगे। मौसम खुलने से उमड़ा जनसैलाब: श्री बड़ां बालाजी धाम पर श्रीमद् भागवत कथा में बीते तीन दिनों के मुकाबले गुरूवार को मौसम खुल जाने से श्रद्धालुओं की संख्या काफी अधिक रही। ग्रामीण नाचते-गाते कथा स्थल पहुंचते देखे गये। कथा के दौरान प्रभु भक्ति में लीन श्रद्धालु देर तक नृत्य करते रहे। श्री महावीर गौशाला कल्याण संस्थान के मुख्य मार्गदर्शक एवं प्रेरणास्रोत प्रमोद भाया भी अपनी जीवनसंगिनी उर्मिला तथा पुत्र यश सहित प्रभु भक्ति के दौरान भाव-विभोर होकर नाचने लगे। उनके साथ बड़ी संख्या में बाहर से अतिथिगण एवं परिजन भी उपस्थित रहे। बताया गया कि शुक्रवार को प्रमोद भाया का जन्मदिन कथास्थल पर श्रद्धालुओं के बीच मनाया जायेगा, जिसकी उद्घोषणा स्वयं गुरूवर श्री कमलकिशोर जी नागर ने व्यासपीठ से की। –

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