फूलडोल महोत्सव का दूसरा दिन, अर्जियों का वाचन हुआ प्रांरभ

विरक्तवाद आज भी प्रासंगिक, ज्ञान से भी प्रभु भक्ति सर्वोत्तमः आचार्यश्री
शाहपुरा जिला भीलवाड़ा
रामस्नेही संप्रदाय के आद्य संस्थापक महाप्रभु स्वामीश्री रामचरणजी महाप्रभु ने विरक्तवाद का जो नारा दिया था, वो आज भी प्रांसगिक है। उनसे हम सभी को मार्गदर्शन मिलता है। किसी ज्ञानी पुरुष या व्यक्ति से बढ़कर भी उसकी प्रभु भक्ति सर्वोत्तम है। महापुरूषों ने ही मानव की विचारधारा व चिंतन को बदला है।
यह बात रामस्नेही संप्रदाय के पीठाधीश्वर जगतगुरू आचार्य श्री रामदयालजी महाराज ने महाप्रभु स्वामी रामचरणजी महाराज के त्रिशताब्दी प्राकट्य महोत्सव के अंर्तगत फूलडोल महोत्सव के तहत आयोजित धर्मसभा में कही है। आचार्यश्री रामदयालजी महाराज यहां अंर्तराष्ट्रीय फुलडोल महोत्सव के दौरान आयोजित धर्मसभा में संबोधित कर रहे थे। आज प्रवचन के दौरान रामस्नेही संप्रदाय की पंरपरा के मुताबिक चार्तुमास की अर्जियों का भी संतों द्वारा वाचन प्रांरभ किया गया। आज बारादरी में अहमदाबाद व निंबाहेड़ा के रामस्नेही अनुरागियों की ओर से संतों ने अर्जियों का वाचन किया तथा भक्तों ने आचार्यश्री को अर्जियां भेंट की। अब चार्तुमास का निर्णय पंचमी को समापन मौके पर होगा।
रामदयालजी महाराज ने कहा कि ज्ञानी भक्त बन गया तो ज्ञान सार्थक हो जायेगा। उन्होंने कहा कि राम अविनाशी है। राम तत्व के बोध को समझना होगा। उन्होंने कहा कि मानव जीवन का उद्देश्य केवल पेट भरना नहीं है, बल्कि संतो व गुरुओं की शिक्षाओं पर चलकर परमात्मा से मिलने की राह तलाशना ही मानव जीवन का सही उद्देश्य है। परमात्मा की प्राप्ति गुरु कृपा से संभव है। उन्होंने जोर देकर कहा कि आराध्य की भक्ति में भक्त का भाव जाता है, व्यक्ति नहीं। त्याग में जो सुख की समता है वह कहीं और नहीं, लेकिन त्याग दुष्प्रवृत्तियों, मोह, लोभ और दंभ का होना चाहिए। उन्होने कहा कि कलियुग में परमात्मा की प्राप्ति का एक मात्र मार्ग गुरु भक्ति है, क्योंकि गुरु ही ज्ञान का प्रकाश देकर परमात्मा से मिलने की राह बताते हैं। क्षण भर के लिए भी यदि संतो की वाणी सुनने को मिले तो भी यह नारायण की बड़ी कृपा है। कलियुग में मानव धर्म की राह छोड़कर धन की राह पर आगे बढ़ रहा है। बड़ा परिवार व बड़ी दौलत दोनों ही आज की सबसे बड़ी चिंता है। उन्होंने कहा कि सदाचार व सादगी की पूंजी ही सही मायने में सबसे बड़ी दौलत है, लेकिन कलियुग में इसका उल्टा हो रहा है। अंहकार के बोझ ने मानव प्रपंची बना दिया है। यदि त्यागी को त्याग का अहंकार आ गया तो वह त्याग शुभ और मंगलकारी होने के स्थान पर दुख का मूल बन जाएगा। अहंकारी कभी सुखी, समृद्व और सफल नहीं हो सकता है। उन्होंने सत्कर्म में आने वाली बाधाओं का उल्लेख किया तथा कहा कि उसमें भी सात्विक बाधा उत्पन्न होती है। राम काज के लिए लंका जाते समय हनुमान के मार्ग में भी सुरसा जैसी प्रायोजित सात्विक बाधा आई थी। ऐसी विषम परिस्थिति में हनुमान जैसा एक निष्ठ भक्त अपने आराध्य के लक्ष्य पूर्ति के लिए समाधान खोज लेता है। इसके लिए आवश्यकता है भरोसा, बल एवं विश्वास की।
आचार्यश्री ने बताया कि अगले वर्ष 2 फरवरी से 8 फरवरी तक सोड़ा में महाप्रभु स्वामी रामचरणजी महाराज के त्रिशताब्दी प्राकट्य महोत्सव की तैयारियां भी प्रांरभ कर दी है।
महोत्सव में दिन भर क्या होगा
25 मार्च तक चलने वाले फुलडोल महोत्सव में सुबह 5 से 7 बजे तक रामधुनी, प्रवचन, प्रात 9 से 12 बजे तक बारादरी में आचार्यश्री व संतों के प्रवचन, प्रात 10.30 से थाल की शोभायात्रा राममेडिया से, आचार्यश्री द्वारा प्रसादी वितरण, अपरान्ह में 3 से 5 बजे तक बारादरी में प्रवचन, रात्रि में 8 से 10 बजे तक रामद्वारा में आचार्यश्री व संतो ंके प्रवचन होंगे।

मूलचन्द पेसवानी

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