एक के बाद एक नवाचार से मण्डावर सुर्खियों में, अब अजोला घास से चर्चा में

राजसमन्द जिले के भीम क्षेत्र का बहुचर्चित गांव अपने नवाचारों के प्रयोग से हर बार सुर्खियों में रहा है। मण्डावर गांव देश प्रदेश में शराबबंदी को लेकर चर्चित रह चुका है, वही स्वच्छ भारत मिशन के माध्यम से राष्ट्रीय पहचान कायम की है। वही पर्यावरण जागरूकता का निम्बू अभियान अपने ढंग का अनूठा अभियान भी सुर्खियों में है। मण्डावर सरपंच प्यारी रावत अपने विभिन्न नवाचारों के तहत कई बार राष्ट्रीय व प्रदेश स्तर पर सम्मानित हो चुकी है। वर्तमान में सरपंच का अजोला घास अभियान ने पशुपालकों के चहरो पर मुस्कान लाई है। पशुयों को हरा चारा भी सुलभ हुआ है तो दुधारू पशुयों से दुग्ध उत्पादन बढ़ा और दुग्ध में वसा भी। इसके अलावा जैविक खाद का बेहतर विकल्प तैयार हुआ है।
मण्डावर ग्राम पंचायत क्षेत्र के परिवेश को देखते हुए पशुपालकों के लाभ के लिये छह माह पूर्व सरपंच प्यारी रावत ने इसे प्रयोग के तौर पर अजोला घास का अभियान चलाया ।कुछ पशुपालक नए प्रयोग को समझ नही पाए और कुछ पशुपालक इस अभियान से जुड़े तो उनके चेहरे की मुस्कान अजोला घास के सफल अभियान के सार्थक की कहानी बन गई। पशुपालकों को हरा चारा का विकल्प मिल गया है वही इस घास से दुधारू पशुयों में दुग्ध उत्पादन भी बढ़ा है। दुग्ध में वसा की मात्रा में अप्रत्याशित वृद्धि देखी गई। गाय, भैंस, बकरी को पौष्टिक आहार सर्वसुलभ हुआ है वही इससे पशुयों के बेहतर स्वास्थ्य के साथ प्रजजन क्षमता बढ़ती है।

क्या है अजोला घास पोषक तत्वों से भरपूर छोटे आकार का जलीय पौधा अजोला एक जलीय पौधा है, जो पानी पर तैरता हुआ (कुमुदनी की तरह) बढ़ता हैं। शैवाल से मिलती जुलती एक तैरती हुई फर्न है। दुधारू पशु को खिलाने से दुग्ध उत्पादन 15-25% तक बढ़ जाता है वही वसा में 25% से अधिक बढ़ोतरी होती है। इसे मुर्गी पालन और मछली पालन में भी इसका प्रयोग कर सकते है। इस पौध को जैविक खाद के रूप में फसल उत्पादन 25 % तक बढ़ा देता है।

क्षेत्र के लिये वरदान राजस्थान प्रदेश के अधिकांश इलाकों में वर्ष में कम से कम सात माह हरे चारे की कमी रहती है। दुधारू पशुओं को प्रतिदिन दो किलो तक पौष्टिक आहार की आवश्यकता होती है, लेकिन पशुपालक सूखा चारा, गेहूं का भूसा, मक्का की कड़बी आदि पशुओं को खिलाते हैं। कई पशुपालक महंगा पशुआहार नहीं खिला पाते हैं। ऎसे में पशु कुपोषण के शिकार हो जाते हैं और दूध देने की क्षमता भी घट जाती है। पशुपालक चाहें तो पशुओं को सालभर हरा आहार अजोला खिलाकर स्वस्थ रखने के साथ ही 20 से 25 प्रतिशत अधिक दूध भी ले सकते है।

अजोला घास में क्या
इसमें प्रोटीन, एमिनो एसिड, विटामिन व खनिज लवण की मात्रा अधिक होती है। आवश्यक अमीनो एसिड, विटामिन (विटामिन ए, विटामिन बी-12 तथा बीटा-कैरोटीन), विकासवर्धक सहायक तत्वों एवं कैल्शियम, फॉस्फोरस, पोटैशियम, फैरस, कॉपर, मैगनेशियम से भरपूर
शुष्क वज़न के आधार पर, उसमें 25-35 प्रतिशत प्रोटीन, 10-15 प्रतिशत खनिज एवं 7-10 प्रतिशत अमीनो एसिड, बायो-एक्टिव पदार्थ तथा बायो-पॉलीमर होते हैं।

अजोला का उत्पादन की विधि 1.पशु संख्या के आधार पर आवश्यकतानुसार जमीन में खड्डा खोद कर पक्का निर्माण के लिए सीमेंट कंकरी से निर्माण करे या कच्चे निर्माण में खड्डा खोदकर प्लास्टिक शीट ( स्थायीकृत सिल्पोलिन शीट) को खड्डे में एक समान तरीके से इस तरह से फैलाया जाता है कि पानी खड्डे से बाहर व अंदर न जाये। खड्डे के बनाये गये ।

2. गड्ढे पर 20-30 किलो छनी मिट्टी फैला दे तथा 10 लिटर पानी में मिश्रित 3 किलो गोबर एवं 50 ग्राम सुपर फॉस्फेट से बना घोल, शीट पर डाला जाता है। जलस्तर को लगभग 12 सेमी तक करने के लिए और पानी डाले।

3. क्यारी में मिट्टी तथा पानी के हल्के से हिलाने के बाद लगभग 1 से 2 किलो शुद्ध मातृ एजोला कल्‍चर बीज़ सामग्री पानी पर एक समान फैला दे। संचारण के तुरंत बाद एजोला के पौधों को सीधा करने के लिए एजोला पर ताज़ा पानी छिड़के।

4. दो हफ्ते के अन्दर, एजोला पूरी क्‍यारी में फैल जाती है एवं एक मोटी चादर जैसा बन जाती है।

5. एजोला की तेज वृद्धि व दैनिक पैदावार के लिए, 5 दिनों में एक बार 50 ग्राम सुपर फॉस्फेट तथा लगभग 2 किलो गाय का गोबर मिलाया जाना चाहिए।

उपयोग का तरीका
तेज़ी से बढ़कर 10-15 दिनों में गड्ढे को भर देगा। उसके बाद से २ किलो ग्राम एजोला प्रतिदिन निकाला जा सकता है।
प्लास्टिक की छलनी की सहायता से 15वें दिन के बाद से प्रतिदिन किया जा सकता है।
निकाला हुआ एजोला से, गाय के गोबर की गन्ध हटाने के लिए ताज़े पानी से धोया जाना चाहिए।

इनका कहना
मण्डावर ग्राम पंचायत में सभी जनकल्याणकारी योजनाओं के साथ विभिन्न नवाचारों व सरोकारों को आमजन तक पहुचना लक्ष्य रहा है। इसी तरह अजोला घास के प्रयोग से पशुपालकों को दूध उत्पादन में वृद्धि से सीधा लाभ मिला है। इसके कई लाभ है ।

प्यारी रावत
सरपंच मण्डावर

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