NCPSL हाथी है ये दफ्तर…

NCPSL हाथी है ये दफ्तर। इसे एक भी स्टार देने का कोई औचित्य नहीं है। टिप्पणी लिखने के लिए स्टार पर क्लिक करना जरूरी हो गया। अपनी बात के साथ दो पत्र भी रखने हैं किंतु यहांं आप्शन नहीं देख पा रहा हूं। एक पत्र में हैं 40 के साइज के फोंट में स्वीकृत रचना भेने की बात और वह फोंट बाजार में प्रचलन में ही नहीं है। यह सिंधी भाषा के प्रचार प्रसार के लिए बना लेकिन अफसोस, न तो यह समय के साथ है और न ही सिंधी लेखकों के साथ। उदासीन और खर्चीले विभाग का दर्जा इसे देता हूं क्योंकि इसकी अपनी प्रकाशन क्षमता तक नहीं है। कार्यालय में 20 बार फोन करने पर भी मुश्किल से वांछित से बात हो सकी। इसकी अपनी पुस्तकें /पत्रिका प्रकाशित होती है मगर सामग्री टंकण का दायित्व भी ये लेखक पर डाल देता है। वह भी 40 के साइज के बाजार में अप्रचलित फोंट में। फिर साइज के लिए संशोधित पत्र काफी दिनों बाद जारी कर इतिश्री मान लेता है। सवाल है कि ऐसे में जो ठेकेदार पत्रिका छापता है एनसीपीएसएल उसे क्या जिम्मेदारी देता है ? केवल छापने की… वह भी ऐसे फोंट में जो स्वयं NCPSL के पास नहीं है !!! हे राम । सरकार को इसे सुधारने के कदम उठाने चाहिएं । नि:संदेह सिंधी भाषा संरक्षण संवर्धन के इससे अधिक प्रभावी कार्य तो स्वतंत्र इकाई / लेखक ही कर रहे हैं, एनसीपीएसएल उनका भी सहयोग नहीं लेती। संभव है, नियमों का हवाला उसे रोकता हो । एनसीपीएसएल के अल्पकालीन पदाधिकारियों को स्व विवेक से इसे पूर्णतः सरकारी अमले के जिम्मे कर किनारा करते हुए सरकार को चेताना चाहिए कि हमसे तो कुछ नहीं हो रहा, जनता की गाढ़ी कमाई को यूं फिजूल में बर्बाद करने की बजाय सरकारी स्टाफ को किसी और सकारात्मक और उत्पादक विभाग में समन्वित करना ही श्रेयस्कर रहेगा ।
– ✍️ मोहन थानवी,
सिंधी उपन्यासकार, कहानीकार, नाटककार, सिंधी पत्रकार,
बीकानेर

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