राजस्थान मीडिया एक्शन फोरम की कार्यशाला सम्पन्न

जयपुर। राजस्थान मीडिया एक्शन फोरम के तत्वावधान में तथा मध्य प्रदेश शासन के राजकीय अतिथि बाल योगी उमेशनाथ महाराज के सानिध्य में राजस्थान पत्रकार कार्यशाला 2013 का आयोजन जोधपुर में सूचना केन्द्र के मिनी ऑडिटोरियम में किया गया। इसका आयोजन वरिष्ठ पत्रकार एवं साहित्यकार शांतिचंद्र मेहता की स्मृति में किया गया।
आज की कार्यशाला में पत्रकारिता खत्म होता मिशनरी भाव एवं नवीन मीडिया के खतरे विषय पर विचार गोष्ठी रखी गई। आज की कार्यशाला में जयपुर, जोधपुर, कोटा, अजमेर एवं उदयपुर आदि विभिन्न स्थानों से आये पत्रकारों ने भाग लिया।
कार्यशाला में अपने विचार रखते हुए सूर सागर विधायक सूर्यकांता व्यास ने कहा कि पत्रकारिता का स्तर नहीं गिर रहा है, उनकी क्षमता तथा महत्व दिनों दिन बढ़ रहा है। आज के पत्रकार को अधिक परिश्रम करने की आवश्यकता है।
कार्यशाला की अध्यक्षता करते हुए जयनारायण व्यास विश्वविद्यालय के पत्रकारिता विभाग के अध्यक्ष डॉ. सत्यनारायण ने कहा कि नवीन मीडिया एक आभासी दुनिया है। पत्रकारिता के मिशन के बारे में आजादी के पहले भी प्रश्न उठा करते थे। एक बार विजयसिंह पथिक ने भी महात्मा गांधी से यही प्रश्न किया था, तब गांधीजी ने उत्तर दिया था कि आज हमारा एक ही मिशन है और वह है देश की आजादी। आजादी के बाद पत्रकारिता पूंजीपतियों के हाथों में आ गई। फिर भी उनके समय में उनके सामने एक पाठक होता था जिसके लिये पत्रकारिता की जाती थी। बाद में वह पाठक कन्ज्यूमर में बदल गया। आज पत्रकारिता पूूंजी के पीछे हो गई है। पत्रकारिता इस देश में आजादी के बाद भी मिशन था किंतु जब 1975 में आपातकाल लागू हुआ तो यह मिशन एक चुनौती में बदल गया। बड़े-बड़े सम्पादकों ने अखबारों के सम्पादकीय खाली छोड़ने आरम्भ कर दिये। कुछ सम्पादकों ने तो पत्रकार द्वारा लिखी गई पंक्तियों पर सरकारी अधिकारियों द्वारा फेरी गई लकीरों सहित ही समाचार छापने आरम्भ कर दिये। आपातकाल के बाद जो सरकारें बनीं उनके समय में पत्रकारिता ने राजनीति के आगे चलने की बजाय राजनीति के समानांतर चलना आरंभ किया और आज पत्रकारिता राजनीति के पीछे चल रही है। जिस व्यक्ति ने हिन्दी पत्रकारिता में पहली खोजपूर्ण पत्रकारिता आरम्भ की, वह कुछ दिनों बाद सरकार में शामिल हो गया। मिशन भाव को बनाये रखने में भी पत्रकार संगठनों की बड़ी भूमिका होती थी किंतु आज उन संगठनों के कमजोर पड़ जाने से भी पत्रकारिता का मिशन भाव कमजोर पड़ा है। आज की पत्रकारिता से साहित्य के साथ-साथ मानीवय संवेदना का पक्ष भी गायब होता जा रहा है। हमें डर लगता है कि हम कहीं अराजकता की ओर तो नहीं जा रहे हैं। आज समाचार पत्र भावनाओं को उद्वेलित करने का काम करते हैं किंतु तर्क शक्ति नहीं बढ़ाते। मीडिया को आज आत्ममंथन की आवश्यकता है अन्यथा पूंजी के विरुद्ध चलने वाला मीडिया पूंजी के पीछे चलता रहेगा। यही कारण है कि आज मीडिया हर खबर को सनसनी बनाकर प्रस्तुत करता है।
केयर्न एनर्जी के उप महाप्रबंधक ए. पी. गौड़ ने कहा कि व्यवसाय और मिशन एकसाथ नहीं चल सकते। आज सभी लोग अपना-अपना जीवन स्तर ऊपर उठाने में लगे हुए हैं, ऐसी स्थिति में यदि पत्रकार भी अधिक कमाना चाहते हैं और अपना जीवन स्तर ऊपर उठाना चाहते हैं तो इसमें कुछ भी अस्वाभाविक नहीं है। फिर भी अति हर चीज की बुरी होती है। भारत में सांस्कृतिक और राष्ट्रीय गौरव की बात बहुत होती है किंतु मिशन और उसके उद्देश्य बदलते रहते हैं। एक समय हमारा मिशन देश को आजाद करवाना रहा, उसके बाद देश को अखण्ड बनाये रखना हो गया किंतु आज वे मिशन ढह गये हैं। अमीराका में प्रतिदिन अखबार छपने बंद हो गये हैं। वे सप्ताह में दो-तीन बार अथवा वीकएण्ड पर छपते हैं। जब अम्बानी गुजरात में किसी हॉल में भाषण देते हैं तो हॉल में बैठा व्यक्ति अपने मोबाइल फोन से ट्वीट करके पूरी दुनिया को बता देता है कि अम्बानी ने किस के बारे में क्या कहा। ऐसी स्थिति में प्रतिदिन छपने वाले अखबारों की आवाश्यकता क्या रह जाती है। दिल्ली के बलात्कार प्रकरण के बाद हमारे देश में पुरुषों पर किसी तरह का प्रतिबंध लगाने की बात नहीं की गई जबकि लड़कियों के लिये बहुत सारे डू’ज एण्ड डोण्ट्स बताये गये। पत्रकारों को अपने समाचार पत्रों की फ्रण्ट पेज स्टोरी सामाजिक सरोकारों पर केन्द्रित रखकर बनानी चाहिये। आज के युग में व्यवसाय एवं मिशन में समन्वय की अत्यंत आवश्यकता है। अश्वत्थामा की तरह प्रति हिंसा, युयुत्सु की तरह मौन आत्मघात तथा संजय की तरह तटस्थ निर्लिप्तता, तीनों ही स्थितियां पत्रकारिता के लिये उचित नहीं कही जा सकतीं। आज पूरी दुनिया में सोशियल मीडिया का साम्राज्यवाद बढ़ रहा है। इनके उपयोगकर्ताओं की संख्या इतनी बढ़ गई है कि वह चीन तथा भारत के बाद किसी तीसरे देश की आबादी जैसी हो गई है। आज सोशियल मीडिया कुछ लोगों को खलनायक घोषित करता है तथा प्रिण्ट मीडिया अगले दिन उसे फॉलो करता है। बदलाव को स्वीकार करना चाहिये। मडिया को लोगों के भीतर अपने प्रति विश्वसनीयता बनाये रखने की आवश्यकता है।
कार्यशाला में अपने विचार रखते हुए आकाशवाणी के कार्यक्रम अधिकारी डॉ. कालूराम परिहार ने कहा कि मीडिया हमारे जीवन की हकीकत है जैसे धर्म से आंख नहीं चुराई जा सकती वैसे ही मीडिया से भी आंख नहीं चुराई जा सकती। हमारे जीवन में मीडिया की कितनी भूमिका है, इसे हम अच्छी तरह समझते ही नहीं हैं। हम विदेशों से आने वाली प्रौद्योगिकियों के अंतर्निहित स्वार्थाें को समझ ही नहीं पाते। मीडिया समाज की कार्यवाही का एजेण्डा तय कर रहा है। अब तो मीडिया को सत्ता और पूंजी के अनुकूल सहमति वाला वातावरण बनाने का काम सौंप दिया गया है। सूचना और मनोरंजन का घालमेल इन्फोटेनमेंट की अवधारणा के रूप में विकसित हो गया है। भारत में मुख्यधारा की पत्रकारिता कभी भी मिशन के रूप में काम नहीं कर रही थी। मिशन की अवधारणा समानान्तर मीडिया के पास थी, वह भी आज समाप्त हो चुकी है। नवीन मीडिया हमारे लिये खतरा नहीं है, अपितु स्थापित मीडिया के लिये चुनौती है।
कार्यशाला में आये मीडिया कर्मियों एवं अतिथियों का स्वागत करते हुए फोरम के अध्यक्ष अनिल सक्सेना ने कहा कि जीवन के हर क्षेत्र में गिरावट आई है। पत्रकारिता के मिशन में गिरावट के लिये केवल पत्रकार दोषी नहीं हैं। सिस्टम भी बराबर दोषी है। इस फोरम के गठन का उद्देश्य किसी यूनियन का निर्माण करना नहीं है अपितु पत्रकारों को वैचारिक मंच प्रदान करना है। हम उदयपुर, अजमेर, कोटा तथा जयपुर इस तरह के आयोजन कर चुके हैं। अगला आयोजन बीकानेर में होगा। उसके बाद भरतपुर एवं दिल्ली में किया जायेगा तथा दौसा से शुरुआत करके समस्त जिला मुख्यालयों पर भी इसका आयोजन किया जायेगा।
कार्यशाला को सम्बोधित करते हुए कवि और लेखक दिनेश सिंदल ने कहा कि साहित्य मनुष्य को संवदेनशील बनाने का काम करता है। अच्छा लिखना अपने आप में अच्छी बात है किंतु जो बुरा लिखा जा रहा है उसके विरुद्ध खड़े होना भी आवश्यक है। आज कोरे कागज का मूल्य छपे हुए अखबार से अधिक होता है। कोरे कागज को अखबार में बदलने का कार्य बाजार ही कर सकता है। इसलिये मीडिया बाजार की अनदेखी नहीं कर सकता। पत्रकारिता लोगों को उनके परिवेश से परिचय करवाती है। पत्रकारिता पांचवा वेद है जिसके द्वारा ज्ञान-विज्ञान को जानकर हम मस्तिष्क के बंधन खोलते हैं। समाचार पत्र जनता की संसद है जिसका अधिवेशन हस समय चलता रहता है। आज देश के 62,438 अखबारों एवं 600 से अधिक मीडिया चैनलों ने पूरी दुनिया में भारतीय पत्रकारिता की पहचान करवाई है। यह हिन्दी जगत की पत्रकारिता का दुर्भाग्य है कि जब अखबार के पास विचार था तब उसके पास समाचार नहीं था और आज जब समाचार है तो विचार गायब है। आज मीडिया रोटी कपड़ा और मकान की तरह आम आदमी की जिंदगी में सम्मिलित हो गया है।
कार्यशाला में विचार रखते हुए अद्वेता शर्मा ने कहा कि सोशियल नेटवर्क साइट्स काल्पनिक दुनिया बन गई है जहां दुनिया भर के लोग एक दूसरे से बात करते हैं तथा विचार व्यक्त करते हैं। यह मानव जाति की सोशियल इंस्टिंक्ट का प्रतीक है। इन साइट्स का सबसे बड़ा खतरा वैयक्तिकता की समाप्ति है। यूथ इस पर सर्वाधिक समय व्यय करता है। इससे सृजनात्मकता के नष्ट होने का भय है। क्योंकि सृजन एवं चिंतन के लिये समय नहीं बचता। इन वैबसाइट्स से क्रिमिनल बिहेवियर में वृद्धि हो रही है। इंस्टाग्राम तथा फेसबुक का कोलोबरेशन होने के बाद फेसबुक पर अपलोड की गई तस्वीर का उपयोग दुनिया के किसी भी हिस्से में किसी भी रूप में हो सकता है तथा उसके लिये किसी भी तरह की सूचना देने की आवश्यकता नहीं है। व्यक्ति की फोटो किसी भी रूप में प्रयुक्त हो सकती है। खतरों के साथ-साथ इन साइट्स के लाभ भी हैं। करोड़ों लोगों तक एक साथ विचारों को पहुंचाया जा सकता है। इनमें समाज में क्रांति उत्पन्न करने की क्षमता है। चायना में ट्विटर एवं फेसबुक पर इसलिये रोक लगा दी गई है कि वहां के लोगों ने इनका प्रयोग एक दूसरे के विरुद्ध एकजुट होने के लिये करना आरम्भ कर दिया।
कार्यशाला को सम्बोधित करते हुए डॉ. रमाकांत ने कहा कि यह लगातार कहा जाता रहा है कि आज का जमाना विमर्श का जमाना है किंतु केवल विमर्श से कब तक काम चलेगा। आज तो विकल्प की आवश्यकता है। लोकतंत्र के चारों खंभों को विकल्प चाहिये और यह विकल्प हमारा आज का युवा दे सकता है। पूंजीपतियों के हाथों में बिका हुआ मीडिया समाज को कुछ नहीं दे सकता। छोटा कहा जाने वाला पत्रकार आधे पेट भूखा रहकर ही समाज की बात कह सकता है। पहले के पत्रकार अधिकांशतः साहित्यकार भी होते थे। यही कारण था कि वे जब सम्पादकीय लिखते थे तो लोग उन्हें पढ़ते थे किंतु आज बड़े से बड़े समाचार पत्र का सम्पादकीय नहीं पढ़ा जाता। खरी बात कहना साहस का काम है। पत्रकारों में इतना साहस तो होना ही चाहिये कि वे सत्य को सामने ला सकें। सच्चे पत्रकार को बडे़ घरानों की पत्रिका की बजाय लघु पत्रिकाओं के आंदोलन से जुड़ना चाहिये।
आज की कार्यशाला में वरिष्ठ पत्रकार अरुण हर्ष, गुरुदत्त अवस्थी, देवीसिंह बड़गूजर, घनश्याम डी रामावत, पद्मजा शर्मा, अशोक लोढ़ा तथा सूचना एवं जनसम्पर्क अधिकारी मोहनलाल गुप्ता को शॉल ओढ़ा कर सम्मानित किया गया। इस अवसर पर यवतमाल की महापौर तथा बूंदी के जिला प्रमुख, जैसलमेर के साहित्यकार डॉ. आईदानसिंह भाटी, जोधपुर की साहित्यकार दीप्ति कुलश्रेष्ठ, डॉ. तारालक्ष्मण गहल कुलश्रेष्ठ, डॉ. तारालक्ष्मण गहलोत, मरुधरा पत्रकार संघ के अध्यक्ष डॉ. महेन्द्र भंसाली सहित विभिन्न साहित्यकार एवं पत्रकार उपस्थित थे। कार्यक्रम का संचालन उदयपुर से आईं शकंुतला सरूपरिया ने किया। अंत में कार्यशाला के सहप्रभारी शेख रईस अहमद ने आभार जताया।
-अशोक लोढा 

1 thought on “राजस्थान मीडिया एक्शन फोरम की कार्यशाला सम्पन्न”

  1. विषय अच्छा था। शकुंतला जी के सञ्चालन में प्रस्तुति भी बहुत अच्छी रही होगी। सोशल मीडिया से घबराना नहीं चाहिए। चुकता ख़बरों (Paid News) के विरोध में देखें तो यह ‘सटीक’ माध्यम है जहाँ से आप अपनी आवाज़ और विचार को विस्तार दे सकते हैं। आयोजन के लिए साधुवाद!

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