संस्कृति की वाहक हैं मातृभाषाएँ-चन्दनानी

जयपुर। हज़ारों वर्ष प्राचीन भारतीय संस्कृति अनेक मातृभाषाओं के ज़रिए आज भी अक्षुणु है। भारतीय संस्कृति की विभिन्न धाराओं को मातृभाषा के ज़रिए सुरक्षित रखा जा सकता है। मातृभाषाएँ संस्कृति का आधार एवं वाहक हैं। इसी के जरिये प्राचीन संस्कृति की धरोहर पीढ़ी दर पीढ़ी अक्षुण रही है। यह विचार राजस्थान सिन्धी अकादमी के अध्यक्ष श्री नरेश कुमार चन्दनानी ने हिन्दी माध्यम से मातृभाषा सिन्धी सिखाने वाले निःशुल्क पत्राचार पाठ्यक्रम की तीसरी किस्त जारी करते हुए प्रकट किये।
अकादमी सचिव दीपचन्द तनवानी ने बताया कि राजस्थान सिन्धी अकादमी द्वारा मातृभाषा सिन्धी के संवर्धन हेतु हिन्दी माध्यम से सिन्धी भाषा सिखाने का निःशुल्क पत्राचार पाठ्यक्रम प्रारम्भ किया गया है। उक्त पाठ्यक्रम साहित्यकार गोबिन्दराम माया द्वारा न्यायमूति आई0एस0ईसराणी जी की प्रेरणा से तैयार किया गया है। सिन्धी भाषा सीखने के इच्छुक व्यक्ति को मात्र सादे कागज़ पर आवेदन करना है। अधिक जानकारी हेतु दूरभाष 0141-2700662 पर सम्पर्क किया जा सकता है।

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