मधुमक्खियों, कीट-पतंगों की कमी से संकट में वैश्विक खाद्य उत्पादन

forestजंंगली मधुमक्खियां, मक्खियां, तितलियां, भंवरें और दूसरे छोटे-छोटे कीट-पतंगे उड़ते-झूमते देखने में बहुत आकर्षक लगते हैं, लेकिन इस आकर्षण से इतर इन पर प्रकृति की बेहद अहम जिम्मेदारियां भी हैं। इसमें से एक जिम्मेदारी है, परागण की, जो खाद्य उत्पादन में अत्यन्त महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। जरा सोचिए, यदि यह कीट-पतंगे नहीं रहें तो, कैसे तो फूलों का परागण हो पाएगा और कैसे खाद्यान्न, फल आदि खाद्य सामग्रियों का उत्पादन होगा। हाल ही एक शोध में खुलासा किया गया है कि विश्व में इन कीट पतंगों की संख्या में गिरावट होती जा रही है, जिसका नकारात्मक असर विश्व के समूचे खाद्य उत्पादन पर पड़ रहा है।

दिलचस्प तथ्य
शहद देने वाली पालतू मधुमक्खी की तुलना में जंगली मधुमक्खी/मक्खी और दूसरे कीट-पतंगे परागण के माध्यम से फसलों पर बीज और फल उत्पादन में दो-गुना अधिक प्रभावशाली होते हैं।

फसल बढ़ाने के लिए कीटनाशकों का प्रयोग किया जाता है लेकिन इन्हीं से वे कीट-पतंगें भी खत्म हो जाते हैं, जो फसल के बढ़ने में सहयोगी हो सकते हैं।

विश्व के 19 देशों की 600 क्षेत्रों की 41 फसलों पर किए गए इस शोध में पाया गया है कि कीट-पतंगों की संख्या में लगातार गिरावट हो रही है, जिसका खाद्य उत्पादन पर प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष कुप्रभाव पड़ रहा है। इसका नकारात्मक असर इतना अधिक है कि इसे तेजी से सुधारा नहीं जा सकता। यह शोध 46 सदस्यीय वैज्ञानिक दल की ओर से किया गया।

गुम हुई प्रजातियां
इसी “साइंस” जर्नल में प्रकाशित एक अन्य शोध में भी इसी प्रकार की चेतावनी दी गई है। इसमें कहा गया है कि 20वीं शताब्दी में जंगली मधु मक्खियों की आधी से अधिक प्रजातियां लुप्त हो चुकी हैं। इसके लिए शोधार्थियों ने कीटविज्ञानी चाल्र्स रॉबर्टसन के 1888 से 1891 के बीच एकत्र किए डेटा का 1971-72 के मध्य और 2009-10 के दरम्यान एकत्र किए गए डेटा से तुलनात्मक अध्ययन किया। अध्ययन में प्राकृतिक आश्रय स्थलों में लगातार कमी दर्ज की गई। इसके अलावा फ्लॉवरिंग टाइम और मधुमक्खियों की एक्टिविटी टाइम के बीच असंयोजन दर्ज किया गया, जिसके फलस्वरूप बहुत सी प्रजातियां लुप्त हो गई।

दिलचस्प विरोधाभास है कि उत्पादकता बढ़ाने के लिएकल्टिवेशन और कीटनाशकों का प्रयोग करने का कुप्रभाव जंगली कीट-पतंगों की संख्या और कार्यक्षमता पर पड़ रहा है।
लॉरेन्स हार्डर
शोधकर्ता, यूनिवर्सिटी ऑफ केलगिरी, कनाडा

परागण में मधुमक्खियों से अधिक प्रभावी दूसरे कीट
रिपोर्ट में कहा गया है कि सामान्य धारणा यह है कि मधुमक्खी, जो कि एक घरेलू मक्खी है, की संख्या में कमी आती जा रही है। लेकिन वैज्ञानिक जर्नल “साइंस” में प्रकाशित ताजा शोध रिपोर्ट ने वैज्ञानिकों को स्पष्टत: दिखाया है कि जंगली मधुमक्खियों के साथ दूसरे बहुत से ऎसे कीट-पतंगे जो बड़ी मात्रा में परागण करते हैं, वे भी संख्या में गिरावट का सामना कर रहे हैं। शोध में पाया गया कि ये जंगली परागणकर्ता तिलहन, कॉफी, प्याज, बादाम, टमाटर और स्ट्रॉबैरी जैसे पौधों पर मधुमक्खियों की तुलना में दोगुने प्रभाव से परागण करते हैं। गौरतलब है कि किसी भी पादप पर फल या बीज परागण की प्रक्रिया के फलस्वरूप ही उत्पादित होता है। इस शोध में स्पष्ट कहा गया है कि इन कीट पतंगों के लिए होने वाला नुकसान ऎसा है कि इसे मधुमक्खियां भी पूरा नहीं कर सकती।

उत्पादन परागण पर आधारित
विश्व के खाद्य उत्पादन का तीन चौथाई हिस्सा ऎसा है, जो परागण की प्रक्रिया पर आधारित होने के कारण कीट-पतंगों पर निर्भर है। मक्खियों और खेतों में पाए जाने वाले पक्षियों की संख्या में लगातार हो रही गिरावट से परागण प्रभावित हो रहा है।

खतरनाक होगी एक ही प्रजाति पर निर्भरता
गरीबल्डी ने चेतावनी दी है कि मधुमक्खी जैसी केवल एकमात्र प्रजाति पर निर्भर रहना “बेहद खतरनाक रणनीति” के रूप में माना जा सकता है। यह इसलिए भी खतरनाक है, क्योंकि यदि कोई बीमारी इस प्रजाति को लगती है तो एक साथ यह नष्ट हो सकती है, जिसका असर परागण की प्रक्रिया पर पड़ेगा। वर्तमान में मधुमक्खी को “वैरोआ माइट” से भी खतरा है, जो अकेले ही मधुमक्खियों को मारने के लिए उत्तरदायी है। इतना ही नहीं एकमात्र प्रजाति सभी प्रकार की जलवायु के साथ अनुकूलन बैठाने में भी सक्षम नहीं हो सकती। इसके लिए जंगली कीट-पतंगों की दूसरी प्रजातियां कहीं अधिक कारगर हैं।

कृषि के लिए इनका बचना जरूरी
जंगली कीट-पतंगे अधिक प्रभावी तरीके से परागण करने में सक्षम होते हैं।क्योंकि वे परागण के लिए बहुत सी विधियों और तरीकों का प्रयोग करते हैं। साथ ही वह कई सारे पादपों पर भ्रमण करते हैं और सामूहिक रूप से अधिक प्रभावशाली साबित होते हैं।

यह चौंकाने वाला है। परिणाम काफी तर्कसंगत और स्पष्ट है। जिन स्थानों पर जंगली कीटों की कम विविधता और कम बहुतायत पाई गई है, वहां की गई फसलों में कम बीज और अपेक्षाकृत कम फलों का उत्पादन हुआ है। वहीं हम जानते हैं कि जंगली कीट-पतंगों की संख्या में कमी आती चली जा रही है। समय रहते बदलाव नहीं हुए तो वैश्विक कृषि क्षेत्र में भारी नुकसान को भुगतना पड़ेगा।
लुकास गरीबल्डी
नेशनल यूनिवर्सिटी रियो नीर्गो, अर्जेन्टीना

इस सिक्के के भी दो पहलू हैं। ये परागण सिस्टम आश्चर्यजनक रूप से पर्यावरण परिवर्तन के प्रति मजबूत हो रहे हैं। यह दिलचस्प है कि ये लगातार ऎसी भूमि के लिए परागण कर रहा है जो बदलाव से गुजर रही है, लेकिन यह सिस्टम अविश्वसनीय ढंग से समझौता भी कर रहा है और आगे होने वाली गिरावट एक गंभीर प्रभाव है।

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