पर्वाधिराज महापर्व पर्युषण का शानदार आगाज
पहला दिन अहिंसा दिवस, सैंकडों श्रावक श्राविकाओं ने किया उपवास, आजीवन शीलव्रत की सोगन्ध
भीलवाडा। पर्वाधिराज महापर्व पर्युषण पर्व का सोमवार से शानदार आगाज रहा। स्थानीय सूर्यमहल प्रांगण में शेरे राजस्थान वरिष्ठ प्रवर्तक रुपचंद मा.सा. के सानिध्य में प्रथम दिन को अहिंसा दिवस के रुप में मनाया गया। इस अवसर पर सैंकडों श्रावक-श्राविकाओं ने उपवास की तपस्या की तो एक जोडे ने आजीवन शीलव्रत लिया। स्थानीय सूर्यमहल में प्रातः 8.30 बजे से पर्यषण प्रवचन प्रारंभ किये गये। हजारों की तादात में श्रावक श्राविकाओं ने उपस्थित हो सोमवार के दिन को अहिंसा दिवस के रुप में मनाया। इस अवसरपर आयोजित धर्मसभा को संबोधित करते हुए शेरे राजस्थान ने कहा कि त्याग बिना मुक्ति नहीं और मेहनत के बिना धन नहीं। अर्थात् व्यक्ति को बिना त्याग किये हुए मुक्ति नहीं मिल सकती है। कितनी ही योनियों में जाने के बाद मानव जन्म मिला है और उसकी मुक्ति तभी संभव हो सकती है जब व्यक्ति त्याग की भावना रखें। जिस प्रकार बिना मेहनत धन की प्राप्ति असंभव है उसी प्रकार बिना त्याग के मुक्ति नहीं हो सकती। उन्होंने कहा कि जैन वो ही है जो जतनों को समझे, अहिंसा को समझे, विचारों से भी हिंसा हो सकती है केवल किसी जीव की हत्या करना ही हिंसा नहीं है। हम बातें तो अहिंसा की करते हैं किन्तु विचारों में अहिंसा भाव लाना आवश्यक है।
उपप्रवर्तक सुकन मुनि ने अनन्तगढ सूत्रा के माध्यम से सुधर्मा स्वामी, जम्बू स्वामी एवं गौतम प्रभू के प्रसंगों का वर्णन करते हुए कहा कि भावों को सुनते हुए सार तत्व जीवन में भरेंगे तो जीवन सार्थक होगा। दया के भाव अगर हममें होंगे तो जीवन का उद्धार होगा। भावना जब जप और तप में मजबूत होगी तो ही पर्व का मनाना सार्थक होगा। त्याग की भावना जब जीवन में आती है तो जीवन धन्य हो जाता है।
ज्योतिषविद् श्री अमृत मुनि ने अहिंसा शब्द की व्याख्या करते हुए कहा कि हिंसा मन, वचन और काया तीनों से हो सकती है। इस मन को वश में करना मुश्किल है। व्यक्ति के मन में कोई न कोई विचार चलते रहते हैं। धर्मसभा में आते हैं प्रवचन सुनने किन्तु मन कहीं ओर भटकता रहता है। पर्युषण पर्व के अवसरपर आलस्य और प्रमाद को जीवन से दूर करलेंगे तो जीवन सार्थक है। अहिंसा को बचाने के लिए यदि थोडी हिंसा हो तो वह हिंसा गलत नहीं है। अहिंसा के लिए शारीरिक बल प्रदर्शन भी आवश्यक है। यह कहना है कवि प्रवक्ता डा0 अमरेश मुनि निराला का। धर्मसभा को संबोधित करते हुए उन्होंने कहा कि हम बातें तो अहिंसा की करते हैं किन्तु अहिंसा के मार्ग पर चलने के लिए कुछ हिंसा हो सकती है। कत्लखानों में कटने के लिए जब गौमाता ले जाइ जाती है तो उसे रोकने के लिए अगर थोडी हिंसा हो भी जाती है तो वह अहिंसा का ही रुप है। हम अहिंसा की बातें करते रहे और गौवध होता रहे तो उससे बडी कोई दूसरी हिंसा नहीं है। उन्होंने कहा कि केवल जीव को सताना या उसे तकलीफ देना ही हिंसा नहीं यदि हमारी सोच में भी हिंसा आ जाती है हम किसी का बुरा कर तो नहीं पाते लेकिन अगर उसका बुरा सोचते हैं तो भी वो हिंसा है। जीवन पानी की बूंद की तरह है जो एक क्षण में समाप्त हो सकता है। जिन्दगी जीने से पहले पाप को समझना होगा और पुण्य को तय करना होगा। ’’ जब मोहरी बांता निकले तब जीव घणो यो पिगले, कोई त्याग धर्म समझावे उपवास की याद दिलावे तो यो जीव मांदो पड जावे ’’ से धर्मसभा को काव्यमय उद्बोधित किया।
युवा तपस्वी हितेश मुनि ने कहा कि प्रवचन हमें खूब सुने हैं लेकिन जरुरत समझने की है। अहिंसा, अहिंसा, अहिंसा हम बातें तो अहिंसा की करते हैं किन्तु समझना होगा कि अहिंसा है क्या। किसी का दिल दुखाना भी हिंसा है। चाहे धर्म हो अथवा व्यापार प्रारंभ में दोनों में समस्यायें आती है और बाद में सब ठीक हो जाता है। दोनों हमें पूरी ईमानदारी के साथ करने चाहिए।
पर्वाधिराज पर्युषण पर्व के अवसर पर सोमवार को सैंकडों श्रावक-श्राविकाओं ने शेरे राजस्थान से उपवास के प्रत्याख्यान लिये। इस अवसर पर सुश्रावक राजेन्द्र मोदी एवं सुश्राविका स्नेहलता मोदी ने आजीवन शील के सौगन्ध लिये। पर्युषण समवरण का लाभ डांगी परिवार द्वारा लिया गया। इस अवसर पर वरिष्ठ श्रावक जतन सिंह, रोशन सिंह एवं बालूलाल डांगी का शाल माला एवं पगडी द्वारा स्वागत किया गया। बाहर से पधारे हुए अतिथियों का रुप सुकन चातुर्मास समिति के पदाधिकारियों द्वारा शाल एवं माल्यार्पण कर स्वागत किया गया।
महापर्व के अवसर पर विविध आयोजन
पर्वाधिराज महापर्व पर्युषण के अवसर पर विविध कार्यक्रमों का आयोजन किया जा रहा है। महापर्व के अवसर पर आठों दिन विविध आयोजन किये जा रहे हैं इसीक्रम में अहिंसा भवन शास्त्राीनगर में महामंत्रा नवकार का 8 दिवसीय अखण्ड जाप का आयोजन किया जा रहा है। साथ ही वहां विराज रही सतियों के सानिध्य में दोपहर 2 से 3 बजे तक कल्पसूत्रा का वाचन किया जारहा है। सायंकालीन सत्रा में प्रतिदिन प्रतिखमण एवं औषध किये जा रहे हैं। इसके साथ ही सूर्यमहल प्रांगण में बच्चे – बच्चियों के लिए विभिन्न धार्मिक प्रतियोगिताओं का चन्दन बाला महिला मण्डल, बहुमण्डल एवं रुपसुकन चातुर्मास महिला मण्डल द्वारा किया जा रहा है। बाहर से पधारे हुए अतिथियों का रुप सुकन चातुर्मास समिति के पदाधिकारियों द्वारा शाल एवं माल्यार्पण कर स्वागत किया गया।
-मूलचंद पेसवानी