कुपोषण से बच्चों की मृत्यु से निपटने में सफलता नहीं

jaipur-100x100जयपुर। राज्य में अति गंभीर कुपोषण की वजह से 5 वर्ष से छोटे बच्चों की मृत्यु से निपटने के लिए गत 20 वर्षों से किये जा रहे प्रयासों को कोई सफलता नहीं मिली है। 5 वर्ष से कम उम्र के बच्चों की 48 प्रतिशत मृत्यु कुपोषण से होती है। यही कारण है कि हम वर्तमान में कुपोषण के क्षेत्र में सन् 1992 के स्तर की ही स्थितियाँ बनी हुई हैं। उक्त जानकारी राजस्थान बाल अधिकार संरक्षण आयोग द्वारा राज्य में बच्चों के लिए बेहतर पोषण एवं विकास पर महिला अधिकारिता सभागार में आयोजित राज्यस्तरीय कार्यशाला में दी गई। कार्यशाला मंे बताया गया कि राजस्थान 40 प्रतिशत बच्चों का वजन जन्म के समय से ही औसत से कम होता है और यदि प्रारम्भ से ही स्तनपान शुरू कर दिया जाए तो 13 प्रतिशत तक मृत्यु में कमी आ सकती है।
कार्यशाला में राज्य में कार्यरत अन्तर्राष्ट्रीय संस्थान- यूनीसेफ, सेव दी चिल्ड्रन, प्लान इण्डिया, पूरे राज्य से स्वयंसेवी संस्थाओं के प्रतिनिधि एवं विश्वविद्यालयों से होम साईंस विभाग में कार्यरत पोषण विशेषज्ञ, उच्च सरकारी अधिकारियों, मिड-डे मील एवं केन्द्रीकृत, रसोईघर आदि के 70 से अधिक प्रतिनिधियों ने भाग लिया।
राजस्थान यूनीसेफ की पोषण विशेषज्ञ संगीता जैकब ने बताया कि अति कुपोषित बच्चों की पहचान गंभीर सूखा रोग लम्बाई के अनुपात में वजन से की जाती है और राज्य सरकार ने अति कुपोषित बच्चों के उपचार हेतु राज्य में मेडिकल कॉलेजों, राजकीय जिला अस्पतालों, चयनित उपजिला अस्पताल एवं सामुदायिक स्वास्थ्य केन्द्रों पर कुपोषण उपचार केन्द्र खोले हैं जिसमें स्क्रीनिंग कर उपचार शुरू किया है। इसके लिए अतिकुपोषित बच्चों के पिता को मजदूरी हृास के रूप में 135/- रू. प्रतिदिन के हिसाब से दिये जा रहे हैं।
कार्यशाला में उरमूल संस्थान के संस्थापक अरविन्द ओझा ने कार्यशाला मंे बताया कि बीकानेर की कोलायत तहसील के विभिन्न 7 कैम्पों के दौरान 190 अति कुपोषित बच्चे चिन्हित किये गये हैं जो यह दर्शाता है कि कुपोषण से ग्रस्त बच्चांे की संख्या का अनुपात बहुत अधिक है। उन्होंने आग्रह किया कि कुपोषण से ग्रस्त बच्चों के उपचार के लिए बड़े स्तर पर व्यवस्था की जानी चाहिए। वर्तमान में कुपोषण उपचार केन्द्र पर 10 बिस्तरों का प्रावधान है जो बहुत कम है। बाल संरक्षण आयोग अध्यक्ष श्रीमती दीपक कालरा ने बताया कि इस तरह के उपचार केन्द्रों पर 1 लाख बच्चों को लाभान्वित किया जा चुका है। उन्होंने बताया कि बीकानेर जिले में 4000 बच्चे अति कुपोषित श्रेणी में चिन्हित किये जा चुके हैं। उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि बच्चों की स्क्रीनिंग की प्रक्रिया के लिए समुचित प्रशिक्षण प्रदान किया जाना चाहिए।
कार्यशाला में बताया गया कि राज्य में 80,000 स्कूलों में 70 लाख बच्चों को मीड-डे मील के माध्यम से पोषण युक्त भोजन प्रदान किया जा रहा है।

-कल्याण सिंह कोठारी
मीडिया सलाहकार

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