ईंट भट्टों पर गरीब परिवार के बाल श्रमिकों की भरमार

DSC00353DSC00320DSC00340_(1)Dr_Yogesh_Dube-NCPCR-_Bhilwara_Bric_clinराजस्थान में बाल श्रमिकों की पहचान, मुक्ति, संरक्षण एवं पुनर्वास की किस कदर अवहेलना की जा रही है, इसका अहसास राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग के सदस्य डॉ0 योगेष दुबे ने इस माह राज्य की यात्रा करके भीलवाड़ा के ईंट भट्टों पर हजारों की संख्या में काम कर रहे हजारों बाल मजदूरों की चौंकाने वाली स्थिति का खुलासा किया कि राज्य के ही नहीं बल्कि अन्य राज्यों बिहार, उत्तरप्रदेष छतीसगढ़ के 30-40 हजार मजदूर सिर्फ भीलवाड़ा में 300 से अधिक ईंट भट्टों पर काम कर रहे हैं। ईंट भट्टों की भरमार वाला जिला भीलवाड़ा ऐसे गरीब परिवारों के बच्चों के लिए नरक साबित हो रहा है, क्योंकि यहां पर कोई भी मानवीय सुलभ सुविधाएं उपलब्ध नहीं है।
स्थानीय क्षेत्र में इतने बाल मजदूर होने के बावजूद षिक्षा से मुख्य धारा व आवासीय विद्यालयों से जोड़ने के प्रावधानों के बावजूद इस ओर कोई ध्यान नहीं दिया गया। ऐसा निर्णय किया जा चुका है कि प्रत्येक पखवाड़े में टास्क फोर्स की बैठक आयोजित की जायेगी लेकिन इस क्षेत्र में कोई कार्यवाही नहीं हुई अतः बच्चों के संरक्षण सुनिष्चित करने के लिए जिला अधिकारियों को उत्तरदायी व जवाबदेह बनाने के लिए राज्य सरकार को कदम उठाने चाहिये। उक्त निर्देष राष्ट्रीय आयोग ने दिये।
केन्द्र और राज्य दोनों ही सरकारों ने चाइल्ड लेबर फ्री करने के लिए कई सख्त कानून बना रहे हैं, परन्तु इससे हटकर इन कानूनी प्रावधानों की अवहेना की जा रही है। जिला प्रषासन भी ऐसी स्थिति की ओर आंखें मूंदे बैठा है। राष्ट्रीय बाल संरक्षण आयोग के सदस्य डॉ0 योगेष दुबे ने भीलवाड़ा जिले में मिल रही बाल मजदूरी की षिकायतों पर औचक निरीक्षण किया तो चौंकाने वाली स्थिति सामने आई। जिला प्रषासन द्वारा 188 निरीक्षण में मात्र 30-35 मजदूर ही बताना शर्मनाक है। उन्होंने जिला प्रषासन की इस अनदेखी पर गहरी नाराज़गी बताते हुए जिला अधिकारियों को बाल मजदूरों की सही संख्या पता लगाने, टास्क फोर्स गठित कर बाल मजदूरों को मुक्त कराकर पुर्नवास कराने के निर्देष दिये हैं, परन्तु इसकी पालना एवं निगरानी कैसे होती है – ये हमसे छिपी नहीं है।
इस तरह के मामलों में किषोर न्याय (बालकों की देखरेख एवं सरक्षण) अधिनियम 2000 एवं राजस्थान किषोर न्याय (बालकों की देखरेख एवं सरक्षण) नियम 2011 के तहत पुलिस विषेषकर किषोर पुलिस ईकाई बाल कल्याण अधिकारी एवं बाल कल्याण समिति को आगे आना चाहिये। सरकार ने पुलिस अधिकारियों को हितैषी बनाने के उद्देष्य से पृथक से किषोर न्याय व्यवस्था लागू की है। इसके बावजूद राजस्थान में विगत कुछ वर्षों में स्थापित विधि का उल्लंघन करने वालों की संख्या में तेजी से वृद्धि हुई है। राज्य सरकार द्वारा उक्त अधिनियम के तहत प्रत्येक जिले में विभिन्न संस्थाओं तथा बाल गृहों की स्थापना को प्रोत्साहित किया है लेकिन उचित निगरानी के अभाव से वांछित परिणाम नहीं मिल रहे हैं। संभवतः इसके समुचित प्रचार-प्रसार की कमी से वातावरण नहीं बन रहा है। पंचायत एवं ब्लाक स्तर पर गठित होने वाली बाल संरक्षण समितियों का प्रावधान तो कर दिया गया है, परन्तु अभी वास्तविक रूप से इस दिषा में सक्रिय प्रयास शुरू नहीं होने से भी बाल मजदूरों की दषा में फर्क नहीं पड़ रहा है। बाल मजदूरों को काम से हटाने के साथ ही उनके पुनर्वास पर ध्यान देना जरूरी है। श्रम मंत्रालय के अनुसार राष्ट्रीय बाल श्रम परियोजना के तहत चलाये जा रहे विषेष बाल श्रमिक विद्यालय ऐसे बच्चों के लिए ही हैं। बाल संरक्षण आयोग के सदस्य डॉ0 दुबे ने अपनी यात्रा के दौरान पाया कि इस तरह के स्कूल बंद हैं। उन्होंने बताया कि जिले में ईंट भट्टों के आस-पास दो स्कूलों का निरीक्षण किया गया, जिसमें षिक्षक नदारद थे। वहीं आंगनबाड़ी केन्द्र भी नहीं चल रहे थे और बच्चों के लिए मिड-डे मील की कोई व्यवस्था नहीं थी। बाल श्रमिकों के पुनर्वास के साथ-साथ उनके परिवारों को आर्थिक प्रोत्साहन देने की दिषा में भी कार्य करना होगा। मालिक से वसूला गया जुर्माना बच्चे और उसके परिवार के आर्थिक पुनर्वास पर खर्च होना चाहिये, पर ऐसा नहीं हो रहा है।
बाल श्रम प्रतिषेध व विनियमन अधिनियम 1986 के अनुसार 18 व्यवसायों और 65 प्रक्रियाओं में बच्चांे से काम करवाना पूर्णतः प्रतिबंधित है।
भारत सरकार के एन0एस0एस0ओ0 के 61वें राउण्ड के आंकड़ों के अनुसार राजस्थान में 5 से 14 वर्ष के 34.88 लाख (22.8 प्रतिषत) बच्चों को बाल श्रमिक की श्रेणी में रखा गया है। इसका मतलब यह हुआ कि हर चार में से एक बच्चा या तो बाल श्रमिक बन चुका है या बनने की प्रक्रिया में है। बाल श्रम में सबसे ज्यादा दलित या मुस्लिम समुदाय के बच्चे सम्मिलित हैं। राजस्थान में सर्वाधिक बाल श्रमिक ईंट भट्टों, नगीना पालिषिंग, गलीचा उद्योग, कृषि व्यवसाय, खदान, घरेलू श्रमिक, कचरा बीनने, ढ़ाबों आदि में मौजूद हैं। इसी तरह दक्षिणी राजस्थान से बी टी कपास के बीज उत्पादन काम के लिए लगभग 50 हजार बाल श्रमिक तस्करी कर गुजरात ले जाये जाते हैं। इसी तरह ईंट भट्टों पर कार्य करने के लिए राज्य के जिलों व पड़ौसी राज्यों में कार्य हेतु ले जाये जाते हैं। बाल श्रम की गंभीर समस्या को बच्चों की बेहतर षिक्षा, सामाजिक सुरक्षा, स्वास्थ्य एवं भोजन की सुरक्षा एवं बाल अधिकारों के संरक्षण में देखने की जरूरत है।
बाल श्रम रोकने के लिए ग्राम पंचायतों, एन0जी0ओ0, नागर समाज संगठनों एवं सामाजिक कार्यकर्त्ताओं के साथ ही सरकार द्वारा कानूनों की प्रभावी पालना से सक्रिय एवं सकारात्मक परिणाम आ सकते हैं। राज्य में बाल अधिकार संरक्षण आयोग, जिलों में बाल कल्याण समितियांे को अधिक सक्रिय बनाने में सरकार की अहम भूमिका है। इसी तरह चाईल्ड लाइन का भी फैलाव किया जाना चाहिए ताकि संकटग्रस्त बच्चों को राहत मिलने की प्रक्रिया में तेजी आ सके। इसी तरह प्रत्येक थाने में चाईल्ड हैल्थ डेस्क की स्थापना का सुझाव भी गृह विभाग के पास विचाराधीन है, जिस पर कार्यवाही की जानी चाहिये। राज्य में 18 साल उम्र वालों की आबादी के अनुपात में राज्य बजट को भी इसके अनुरूप प्राथमिकता देने की जरूरत है। इसके साथ ही संबंधित विभिन्न विभागांे जैसे पुलिस, श्रम विभाग, षिक्षा विभाग में समन्वय आदि होना भी जरूरी है। राजस्थान राज्य बाल अधिकार संरक्षण आयोग ने अधिनियम के अंतर्गत राज्य स्तर पर राजस्थान स्टेट चाईल्ड प्रोटेक्षन सोसायटी एवं प्रत्येक जिला स्तर पर जिला बाल संरक्षण इकाईयां गठित करने का दावा किया है, परन्तु अभी भी इस बारे में जानकारी का अभाव है।

-कल्याण सिंह कोठारी
2/633, जवाहर नगर, जयपुर-302004
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