भारत आध्यात्मिक गुरूओं, सूफी-संतो की तपोभूमि है। जिन्होंने अलग-अलग कालखण्ड में इस धरा में जन्म लेकर अपने आध्यात्मिक चिंतन, वाणी और शिक्षाओं से समाज और देश को समृद्ध किया है। राजस्थान की मरूभूमि में भी बिरले व्यक्तित्व के धनी, प्रकृति उपासक संत के रूप में बिश्नोई धर्म के प्रवर्तक जाभोजी का प्रादुर्भाव हुआ। गुरू जभेश्वर द्वारा दिखाये गए मार्ग और सीख आज संपूर्ण मानवता और जीव-जगत कल्याण का आधार बनी है। बीकानेर जिले की नोखा तहसील के गांव मुकाम में गुरू जभेश्वर का समाधि स्थल मुकाम धाम बिश्नोई समाज का तीर्थ स्थल ही नहीं दीन-दुनिया के श्रद्धा का प्रमुख केन्द्र बन गया है।
गांव मुकाम में लगने वाले राष्ट्रीय स्तर के मेले की तैयारियों एक सप्ताह पहले ही शुरू हो जाती है। बड़ी संख्या में पैदल व वाहनों से श्रद्धालु पहुंचे वहीं श्रद्धालुओं के आने का क्रम लगातार जारी है। श्रद्धालुओं ने निज मंदिर में धोक लगाकर हवन में घी खोपरों की आहुतियां दी। अखिल भारतीय बिश्नोई महासभा की ओर से बिश्नोई समाज के खुले अधिवेशन का आयोजन सहित विविध आयोजन संत महात्माओं के सान्निध्य में होता है। अधिवेशन में राजनेता, जन प्रतिनिधि व देश-विदेश के हजारों की तादाद में बिश्नोई समाज के लोग हिस्सा लेकर 29 नियमों के माध्यम से चराचर जीव की रक्षा का संदेश देने वाले, आदर्श समाज की आचार संहिता प्रतिष्ठित करने वाले गुरू जभेश्वर के आदर्शो का स्मरण करते हैं।
महासभा द्वारा : दुकानदारों को को प्रतिबंधित पॉलीथिन का उपयोग करने पर कानूनी कार्रवाई करने की चेतावनी दी गई है। मुख्य मंदिर व आस पास के क्षेत्र को रोशनी से सजाया गया है। मंदिर में लगे सीसीटीवी कैमरों को अधिकारियों के कंप्यूटर से जोड़ दिया गया है। मेला परिसर से बाहर वाहनों की पार्किंग व्यवस्था की गई है। यहां से दो किमी दूर समराथल धोरे पर भी श्रद्धालुओं की चहल पहल बढ़ गई है।मुकाम में विक्रम संवत् 1593 मार्ग शीर्ष एकादशी को 85 वर्ष की आयु में गुरू जभेश्वर ने समाधि ली थी। उनके बनाये 29 नियमों की पालना करने वाले ही बिश्नोई कहलाते है। गुरू जंभेश्वर ने नियमों के साथ मानवीय चेतना, पर्यावरण रक्षा तथा उतम जीवनचर्या का संदेश देने वाली 120 साखियों की भी संरचना की।
मुकाम में प्रतिवर्ष फाल्गुन व आश्विन में प्रतिवर्ष मेले भरते है, मेले में आने वाले श्रद्धालु विशाल गगन चुंबी सफेद संगमरमर से बने गुरू जभेश्वर के मंदिर परिसर में खोपरे व शुद्ध घी से हवन में आहुतियां देने से समूचे मेला स्थल का वातावरण सुगंधमय बन जाता है। मेले में आने वाले श्रद्धालु गुरू जंभेश्वर की जन्म स्थली पीपासर व तपस्या स्थली समराथल धोरों पर स्थित मंदिर में भी धोक लगाएंगे तथा हवन में आहुतियां देने सहित पक्षियों के लिए चुग्गा डालते है, तथा मरू प्रदेश के कल्पवृक्ष खेजडी सहित विभिन्न वृक्षों को लगाने, हरिण आदि वन्य जीवों की रक्षा के संकल्प को दोहराते हैं। मेले के दौरान सेवक दल की ओर से भोजनालय सहित विभिन्न व्यवस्थाओं का संचालन किया जाएगा। हरियाणा, पंजाब, सहित अन्य प्रान्तों से विशेष रेल व विभिन्न वाहनों में आने वाले श्रद्धालुओं के प्रवास व भोजन की व्यवसथा में मेले के एक सप्ताह पूर्व ही स्वयं सेवक दल के सदस्य लग गए है।
अतः समाज में शुद्र -सेवा भाव से सेवा देने वाला अत्यंत आवश्यक है। इसके बिना क्षत्रिय को शुद्र बनना पड़ता है – इसके बिना ब्राह्मण को शुद्र बनना पड़ता है जो के आज देख रहे हो- इसके बिना बनिये को भी नौकरी कर सेवा देनी पडती है। अतः या तो इस वर्ग के गुणों का सम्मान करते हुए – इसे इज्ज़त देते हुए -इससे लाभ उठाते हुए – थोड़ी काम में ऊंच नीच झेलते हुए इस वर्ग को जिन्दा रखो या इसकी अवहेलना निंदा उंच नीच फैला के किसी युग में इसके ही अधीन होने पे विवश होवो।
-प्रकाशचंद बिश्नोई धोरीमन्ना
Nun prnam sa
Jay guru jambho ji ki ashim karpa se ye falgun ki amavshiya ka mukam mela laga he bot achchi bat he ji
Shri guru jambheshwar bhagwan mandir meghawa me bhi aaj mela he
village – dedwa teh – sanchore dist -jalore raj 343041
“उणतीस धर्म की आंकड़ी, हृदय धरियो जोय। जाम्भोजी जी कृपा करी नाम विश्नोई होय ।”
GREAT
BAHUT ACHHA likha hai parkashji
best luck
आज संसार में लोगो का जीवो की हतीयावो पर बहुत जादा जोर हे इन्सान पर भ्क्सी होता जा रहा हे कुछ शरारती लोगो के द्वारा समाज के युवा वर्ग कोदुसरे समाज के लोगो द्वारा बिश्नोई समाज से हटकर दूसरी और लेजाने के ह्त्कंडे इस्तेमाल किये जा रहे हे आप लोगो को जुटा प्रलोभन या किसी अनजान बिशनोई का बियोरा दिया जायेगा की वो मेरा करीबी मित्र हे और उसने मेरे साथ दारू पि हे कुछ नही होता तुम भी पि लो वो आप का कर्चा अपनी पॉकेट से करेगा कुछ दिनों तक लेकिन जब आप समाज के बीच जाने की कोसिस करोगे तो तुमे बदनाम करने की धमकिय मिलेगी और आप उसके गुलाम बनके रहेगे साथियों समाज की गरिमा को बनाये रकना हे तो पहेले अपने आप को सुधारो और समाज के संत समाज को समाज के युवा पीडी को मार्गदर्सन करने की जरूरत हे
बीरमाराम जी, निवण परनाम जी – इस बात पर सहमत हु, यह समाज के यूवाओ पर भारी बोझ हैं इस बात को यूवा लोग अपनी और व् समाज कि ओर दृष्टि में नहीं लेते हैं। नसा युवाओ पर “गुलाम” कम्युनिकेशन बन गया है ??? सही कम्युनिकेशन यह होता है लोगों से मेल-मिलाप भी एक कला है। “गुलाम” को क्यों घोलते हैं। कम्युनिकेशन यही कला जब आपके प्रोफेशन के साथ जुड़ती है तो तरक्की की नयी राहें खुलती हैं।
Jai guru
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