
भारतीय धार्मिक मान्यताओं के अनुसार ईश्वरीय शक्ति की उपासना अलग-अलग रूपों में की जाती है। हिन्दू धर्म में तैंतीस करोड़ देवताओं को उपास्य देव माना गया है व विभिन्न शक्तियों के रूप में उनकी पूजा की जाती है।
आजकल परेशानियों, कठिनाइयों के चलते हम ग्रह शांति के उपायों के रूप में कई देवी-देवताओं की आराधना, मंत्र जाप एक साथ करते जाते हैं। परिणाम यह होता है कि किसी भी देवता को प्रसन्न नहीं कर पाते- जैसा कि कहा गया है – ‘एकै साधै सब सधै, सब साधै सब जाय’ जन्मकुंडली के अनुसार प्रत्येक व्यक्ति के इष्ट देवी या देवता निश्चित होते हैं।
यदि उन्हें जान लिया जाए तो कितने भी प्रतिकूल ग्रह हो, आसानी से उनके दुष्प्रभावों से रक्षा की जा सकती है।हम सब प्रतिदिन विभिन्न देवी -देवताओं का पूजन करते हैं। लगभग सभी सकाम पूजा ही करते हैं। कहने का मतलब यह है कि हम हमारी मनोकामना पूर्ण करने के लिए ही ईश्वर को मानते है। बहुत कम लोग होते हैं निष्काम पूजा करते हैं। बहुत सारे लोगों कि यह शिकायत होती है कि वो पूजा -व्रत आदि बहुत करते हैं फिर भी फल नहीं मिलता।
मैं यहाँ कहना चाहूंग कि हमें काम तो बिजली विभाग में होता है और चले जाते हैं जल-विभाग में ! जब हम गलत कार्यालय में जायेंगे तो काम कैसे होगा। इसी प्रकार हर कुंडली के अनुसार उसके अपने अनुकूल देवता होते हैं।
लग्नानुसार इष्ट देव——
लग्न स्वामी ग्रह इष्ट देव
मेष, वृश्चिक मंगल हनुमान जी, राम जी
वृषभ, तुला शुक्र दुर्गा जी
मिथुन, कन्याबुध गणेश जी, विष्णु
कर्क चंद्र शिव जी
सिंह सूर्य गायत्री, हनुमान जी
धनु/ मीन गुरु विष्णु जी (सभी रूप), लक्ष्मी जी
मकर, कुंभ शनि हनुमान जी, शिव जी
लग्न के अतिरिक्त पंचम व नवम भाव के स्वामी ग्रहों के अनुसार देवी-देवताओं का ध्यान पूजन भी सुख-सौहार्द्र बढ़ाने वाला होता है। इष्ट देव की पूजा करने के साथ रोज एक या दो माला मंत्र जाप करना चमत्कारिक फल दे सकता है और आपकी संकटों से रक्षा कर सकता है।
विशेष : इष्ट का ध्यान-जप का समय निश्चित होना चाहिए अर्थात यदि आप सुबह सात बजे जप ध्यान करते हैं, तो रोज उसी समय ध्यान करें। अपनी सुविधानुसार समय न बदलें।
व्यक्ति यदि अपने लग्र के देवता की पूजा करें तो उनको अपने हर काम में सफलता मिलने लगेगी।
देव मंत्र —-
हनुमान—- ऊँ हं हनुमंताय नम:
शिव—- ऊँ रुद्राय नम:
गणेश —ऊँ गंगणपतयै नम:
दुर्गा— ऊँ दुं दुर्गाय नम:
राम —-ऊँ रां रामाय नम:
विष्णु— विष्णु सहस्त्रनाम का पाठ
लक्ष्मी— लक्ष्मी चालीसा,…ऊँ श्रीं श्रीयै नम:
किसी भी कुंडली के लग्न /प्रथम भाव , पंचम भाव और नवम भाव में स्थित राशि के अनुसार इष्ट देव निर्धारित होते है और इनके अनुसार ही रत्न धारण किये जा सकते हैं।
मेष लग्न :– जन्म कुंडली के प्रथम भाव में अगर प्रथम राशि मेष होती है तो वह मेष लग्न की कुंडली कही जायेगी। मेष लग्न में पांचवे भाव में सिंह राशि और नवम भाव में धनु राशि होती है।
मेष राशि का स्वामी मंगल , सिंह राशि का स्वामी है सूर्य और धनु राशि का स्वामी वृहस्पति है। इस कुंडली के लिए अनुकूल देव हनुमान जी , सूर्य देव और विष्णु भगवान है ।
मेष लग्न के लिए हनुमान जी की आराधना , मंगल के व्रत , सूर्य चालीसा , आदित्य – हृदय स्त्रोत , राम रक्षा स्त्रोत , रविवार का व्रत , वृहस्पति वार का व्रत , विष्णु पूजन करना चाहिए। मूंगा , माणिक्य और पुखराज रत्न अनुकूल रहेंगे।
वृषभ लग्न :– जन्म कुंडली के प्रथम भाव में अगर द्वितीय राशि वृषभ होती है तो वह वृषभ लग्न की कुंडली कही जायेगी। वृषभ लग्न में पांचवे भाव में कन्या राशि और नवम भाव में मकर राशि होती है।
वृषभ राशि का स्वामी शुक्र , कन्या राशि का बुध और मकर राशि के स्वामी शनि देव है।
वृषभ लग्न वालों के लिए लक्ष्मी देवी , गणेश जी और दुर्गा देवी की आराधना उचित रहेगी। लक्ष्मी चालीसा , दुर्गा चालीसा और गणेश चालीसा का पाठ करना चाहिए।
मिथुन लग्न :– जन्म कुंडली के प्रथम भाव में अगर तृतीय राशि मिथुन होती है तो वह मिथुन लग्न की कुंडली कही जायेगी। मिथुन लग्न में पांचवे भाव में तुला राशि और नवम भाव में कुम्भ राशि होती है।
मिथुन राशि का स्वामी बुध , तुला राशि का शुक्र और कुंभ राशि का स्वामी शनि देव हैं।
इस लग्न के लिए गणेश जी , लक्ष्मी देवी और काली माता अराध्य होगी। कुम्भ राशि के स्वामी शनि होने के कारण शनि देव को प्रसन्न और शांत रखने के उपाय किये जा सकते हैं।
इस लग्न के लिए पन्ना , हीरा और नीलम अनुकूल रत्न हैं।
कर्क लग्न :– जन्म कुंडली के प्रथम भाव में अगर चतुर्थ राशि कर्क होती है तो वह कर्क लग्न की कुंडली कही जायेगी। कर्क लग्न के पांचवे भाव में वृश्चिक राशि और नवम भाव में मीन राशि होती है।
कर्क राशि के स्वामी चंद्रमा,वृश्चिक राशि के स्वामी मंगल और मीन राशि के स्वामी वृहस्पति होते है। इस लग्न के लिए शिव जी , हनुमान जी और विष्णु जी अराध्य देव होंगे।
इस लग्न के लिए मोती , मूंगा और पुखराज अनुकूल रत्न हैं।
सिंह लग्न :– जन्म कुंडली के प्रथम भाव में अगर पंचम राशि सिंह होती है तो वह सिंह लग्न की कुंडली कही जायेगी। सिंह लग्न के पांचवे भाव में धनु राशि और नवम भाव में मेष राशि होती है।
सिंह राशि का स्वामी सूर्य देव , धनु राशि के स्वामी वृहस्पति और मेष राशि के स्वामी मंगल होता है।
इस लग्न के लिए सूर्य देव , विष्णु जी और हनुमान जी आराध्य देव होंगे।
इस लग्न के लिए माणिक्य , मूंगा और पुखराज रत्न अनुकूल होते हैं।
कन्या लग्न :– जन्म कुंडली के प्रथम भाव में अगर षष्ठ राशि कन्या होती है तो वह कन्या लग्न की कुंडली कही जायेगी। इस लग्न के पांचवे भाव में मकर राशि और नवम भान में वृषभ राशि होती है।
कन्या राशि का स्वामी बुध , मकर राशि का स्वामी शनि और वृषभ राशि का स्वामी शुक्र होता है।
इस लग्न के लिए गणेश जी , दुर्गा देवी ,लक्ष्मी देवी आराध्य देव होते हैं और पन्ना, नीलम और हीरा अनुकूल रत्न होते हैं।
तुला लग्न :– जन्म कुंडली के प्रथम भाव में अगर सप्तम राशि तुला हो तो वह तुला लग्न की कुंडली कही जायेगी। तुला लग्न में पांचवे भाव में कुम्भ राशि और नवम भाव में मिथुन राशि होती है। तुला राशि का स्वामी शुक्र , कुम्भ राशि का स्वामी शनि और मिथुन राशि का स्वामी बुध होता है। इस लग्न के लिए लक्ष्मी देवी , काली देवी , दुर्गा देवी और गणेश जी आराध्य देव हैं और हीरा , नीलम और पन्ना अनुकूल रत्न है।
वृश्चिक लग्न :– जन्म कुंडली के प्रथम भाव में अगर अष्ठम राशि वृश्चिक हो तो वह वृश्चिक लग्न की कुंडली कही जायेगी। वृश्चिक लग्न में पांचवे भाव में मीन राशि और नवम भाव में कर्क राशि होती है। वृश्चिक राशि का स्वामी मंगल , मीन राशि का स्वामी वृहस्पति और कर्क राशि का स्वामी चन्द्रमा होता है। इस लग्न के लिए हनुमान जी , विष्णु जी और शिव जी अराध्य देव होते है और मूंगा , पुखराज और मोती अनुकूल रत्न है।
धनु लग्न :– जन्म कुंडली के प्रथम भाव में अगर नवम राशि धनु हो तो वह धनुलग्न की कुंडली कही जायेगी। धनु लग्न में पांचवे भाव में मेष राशि और नवम भाव में सिंह राशि होती है। धनु राशि का स्वामी वृहस्पति , मेष राशि का स्वामी मंगल और सिंह राशि का स्वामी सूर्य होता है। इस लग्न के लिए विष्णु जी ,हनुमान जी और सूर्य देव आराध्य देव हैं और पुखराज , मूंगा और माणिक्य अनुकूल रत्न है।
मकर लग्न :– जन्म कुंडली के प्रथम भाव में अगर दशम राशि मकर हो तो वह मकर लग्न की कुंडली कही जायेगी। मकर लग्न में पांचवे भाव में वृषभ राशि और नवम भाव में कन्या राशि होती है। मकर राशि का स्वामी शनि , वृषभ राशि का स्वामी शुक्र और कन्या राशि का स्वामी बुध होता है। इस लग्न के लिए शनि देव , हनुमान जी , दुर्गा देवी , लक्ष्मी देवी और गणेश जी आराध्य देव है और नीलम , हीरा और पन्ना अनुकूल रत्न है।
कुम्भ लग्न :– जन्म कुंडली के प्रथम भाव में अगर एकादश राशि कुम्भ हो तो वह कुम्भ लग्न की कुंडली कही जायेगी। कुम्भ लग्न में पांचवे भाव में मिथुन राशि और नवम भाव में तुला राशि होती है।कुम्भ राशि का स्वामी शनि , मिथुन राशि का स्वामी बुध और तुला राशि का स्वामी शुक्र होता है। इस लगन के लिए शनि देव , काली देवी , गणेश जी , दुर्गा देवी और लक्ष्मी देवी आराध्य देव है और नीलम , पन्ना और हीरा अनुकूल रत्न है।
मीन लग्न :– जन्म कुंडली के प्रथम भाव में अगर द्वादश राशि मीन हो तो वह मीन लग्न की कुंडली कही जायेगी। मीन लग्न में पांचवे भाव में कर्क राशि और नवम भाव में वृश्चिक राशि होती है। मीन राशि का स्वामी वृहस्पति , कर्क राशि का स्वामी चन्द्र और वृश्चिक राशि का स्वामी मंगल होता है। इस लग्न के लिए विष्णु जी , शिव जी और हनुमान जी आराध्य देव है और पुखराज , मोती और मूंगा अनुकूल रत्न है।
==========
शास्त्रों की मान्यतानुसार अपने इष्ट देव की आराधना करने से मनोवांछित फल प्राप्त होते हैं। आपके आराघ्य इष्ट देव कौन से होंगे इसे आप अपनी जन्म तारीख, जन्मदिन, बोलते नाम की राशि या अपनी जन्म कुंडली की लग्न राशि के अनुसार जान सकते हैं।
जन्म माह :—
जिन्हें केवल जन्म का माह ज्ञात है, उनके लिए इष्ट देव इस प्रकार होंगे-
-जिनका जन्म जनवरी या नवंबर माह में हुआ हो वे शिव या गणेश की पूजा करें।
-फरवरी में जन्मे शिव की उपासना करें।
-मार्च , अगस्त व दिसंबर में जन्मे व्यक्ति विष्णु की साधना करें।
-अप्रेल, सितंबर, अक्टूबर में जन्मे व्यक्ति गणेशजी की पूजा करें।
-मई व जून माह में जन्मे व्यक्ति मां भगवती की पूजा करें।
-जुलाई माह में जन्मे व्यक्ति विष्णु व गणेश का घ्यान करें।
जन्म वार से :—-
जिनको वार का पता हो, परंतु समय का पता न हो, तो वार के अनुसार इष्ट देव इस प्रकार होंगे-
रविवार- विष्णु।
सोमवार- शिवजी।
मंगलवार- हनुमानजी
बुधवार- गणेशजी।
गुरूवार- शिवजी
शुक्रवार- देवी।
शनिवार- भैरवजी।
==============
जन्म कुंडली से :—-
जिनको जन्म समय ज्ञात हो उनके लिए जन्म कुंडली के पंचम स्थान से पूर्व जन्म के संचित कर्म, ज्ञान, बुद्धि, शिक्षा, धर्म व इष्ट का बोध होता है। अरूण संहिता के अनुसार व्यक्ति के पूर्व जन्म में किए गए कर्म के आधार पर ग्रह या देवता भाव विशेष में स्थित होकर अपना शुभाशुभ फल देते हैं।
राशि के आधार पर :—–
पंचम स्थान में स्थित राशि के आधार पर आपके इष्ट देव इस प्रकार होंगे—–
मेष: सूर्य या विष्णुजी की आराधना करें।
वृष: गणेशजी।
मिथुन: सरस्वती, तारा, लक्ष्मी।
कर्क: हनुमानजी।
सिंह: शिवजी।
कन्या: भैरव, हनुमानजी, काली।
तुला: भैरव, हनुमानजी, काली।
वृश्चिक: शिवजी।
धनु: हनुमानजी।
मकर: सरस्वती, तारा, लक्ष्मी।
कुंभ: गणेशजी।
मीन: दुर्गा, राधा, सीता या कोई देवी।
==========
ग्रह के आधार पर इष्ट: पंचम स्थान में स्थित ग्रहों या ग्रह की दृष्टि के आधार पर जानिए आपके इष्ट देव—
सूर्य: विष्णु।
चंद्रमा- राधा, पार्वती, शिव, दुर्गा।
मंगल- हनुमानजी, कार्तिकेय।
बुध- गणेश, विष्णु।
गुरू- शिव।
शुक्र- लक्ष्मी, तारा, सरस्वती।
शनि- भैरव, काली।
===============
इष्ट देव की उपासना—–
नीचे सभी राशियों के देवता दिए जा रहे हैं। अपनी राशि के अनुसार देवता की आराधना करे—–
मेष : हनुमान जी
वृषभ : दुर्गा माँ
मिथुन : गणपति जी
कर्क: शिव जी
सिंह : विष्णु जी (श्रीराम )
कन्या : गणेश जी
तुला : देवी माँ
वृश्चिक : हनुमान जी
धनु : विष्णु जी
मकर : शिव जी
कुम्भ : शिव का रूद्र रूप
मीन : विष्णु जी (सत्यनारायण भगवान)
===========
प्रतिनिधि ग्रह– इष्ट देव—- रत्न दान —–सामग्री
गुरु————— विष्णु—–पुखराज- —पीली वस्तुएँ
शुक्र————- देवी के रूप— हीरा —–सफेद मिठाई
शनि————- शिव जी—– नीलम —-काली वस्तुएँ
सूर्य——— गायत्री, विष्णु—- माणिक— सफेद वस्तुएँ, नारंगी
बुध————- गणेश——– पन्ना——– हरी वस्तु
मंगल ———हनुमानजी ——मूँगा——- लाल वस्तुएँ
चंद्र————- शिवजी——– मोती——- सफेद वस्तु
विशेष : राहु और केतु पर्वतों के खराब होने पर क्रमश:—
सरस्वती और गणेश जी की आराधना करना लाभ देता है।
‘ऊँ रां राहवे नम:’ और ‘ऊँ कें केतवे नम:’ के जाप से भी ये ग्रह शांत होते हैं।
पंडित “विशाल” दयानन्द शास्त्री,(ज्योतिष-वास्तु सलाहकार)
राष्ट्रिय महासचिव-भगवान परशुराम राष्ट्रिय पंडित परिषद्
मोब. 09669290067 (मध्य प्रदेश) एवं 09024390067 (राजस्थान)
DOB 19 sep. 1981 time 9.20 Am place mau uttar pradesh sir mere est dev kaun hai please reply
Thanks & regard
tiwari
Mera jannm 25/08/1990 mere est dew and arady ki ja nkari
Dusmano ke liye achha kiye bujdil 25 ench ka shina le ke hare hihustan ki tarf njar udda rhe the likin kutto ko yah nhi pta tha ki bhart ma ne 50ench ke ser ko janm de chuki he agar es ser ko pakiestni khuredege to es ser ki dusri dhar me pakistan ka namo nihan khatm ho jayega jay hind jay bhart ma ke rkhwale modi ji ham app ko naman pranaam karte he
9597731880
sir meri d.o.b- 18 June 1992
day -thursday
place Dehradun
time- 8:30 To 9:00 Am hai mera est devi kaun hai plz reply me guruji
Meri date of birth 9/1/1990… Day-mangalvar, time -4.15am h….Sir.plz Meri rasifal or mere devta k bare me batao….plz
Pranaam Panditji…Mera naam- Shivam Mishra…dob- 19/12/1993…time- 7:30AM
Place- Basti up…me hua h..Panditji Kya mai sarkari naukari paunga…Meri life bhut kharab ja rhi hai ..atamyahatya ka man bnta hai
mera naam vikas hai m bhaut persaan hu meri zindingi kharb ho chuki hai.meri saadi kab hogi.
गुरुजी नमस्कार मेरी जन्मतिथि 21 जून 1963 समय 8.35 सांय जन्म स्थान दिल्ली है। मुझे अपने ईष्टदेव के बारे में संंशय है कृपया मेरे ईष्टदेव के विषय में बताएंग कि मैं किस देव की उपासना करुं। मैं शिव, लक्ष्मी और भगवती की पूजा करता हूं। आपका आभारी रहूंगा। मुझे शेयर मार्केट में बहुत नुकसान हो रहा है। क्या यह काम मुझे छोड़ देना चाहिए।
जन्मतारीखः3/3/1981, जन्मवेळः 8.30सकाळी ईस्टदेव कोण आहेत