आजादी का आसमां छूती आज की औरत

सीमा आरिफ
सीमा आरिफ
वर्तमान समय के परिवेश में अगर हम शहर और थोड़े विकसित कज़्बों में नौकरी पेशा महिलाओं लड़कियों की स्थिति को देखे तो यह स्पष्ट महसूस होता है कि अदद नौकरी महिलाओं, लड़कियों को आत्मनिर्भर बनाने के साथ साथ जो दूसरी खुशी देती है वो है उनकी अपनी आज़ादी, कुछ अपने लिए पा लेने की आज़ादी, कुछ लम्हे खुद के लिए निकाल लेने,जी लेने की आजादी,खुद के लिए वो सब सोचने,समझने की आज़ादी जो उनको अब तक भीक के रूप में टुकड़ो-टुकड़ों में दी जाती रही है.
उनके लिए केवल घर की चार दीवारी ही नहीं बल्कि घर की लाखों कलह.क्लेश से बाहर निकलने के साथ ही साथ एक ज़हनी सकून,आत्मसंतुष्टि का भाव भी जगाती है ये नौकरी।
खुद अपने से चंद पैसे कमा लेने तक ही सीमित नहीं है औरतों दुवारा नौकरी करना,बल्कि यह नौकरी उन्हें अपने विचारों को परिवार,समाज,सोसाइटी के सामने रखने की ताक़त भी प्रदान करती है.
सदियों से जिस समाज का आर्थिक ताना-बाना पूरी तरह से पृतस्तात्मक था और पुरूषों को ही परिवार के प्रत्येक फैसलों से लेकर आर्थिक मामलों से जुड़े मसलों पर निर्णय लेने का अधिकार रहा है, वही पर आज की महिला दुवारा परिवार को आर्थिक सहयोग देने से यह ताना-बाना पूरी तरह से नया रूप ले चूका है.और अब वही औरतें,लड़कियां जिनके लिए रसोई,चूल्हा,बच्चों की ज़िम्मेदारी देकर पुरुषवादी समाज बहुत फ़र्क़ महसूस करता था.
इसका एक पहलू महिलाओंं की स्वयं की आत्मसुरक्षा से जुड़ा भी है, जो औरतें घर से निकलने से पहले किसी पुरुष साथी,पति,पिता,या भाई को साथ लेकर चलने में सुरक्षित महसूस करती थी, उनके लिए अब किसी का साथ का साथ होना उतना मायने नहीं रखता है,क्योंकि वो स्वतंत्र है और उसने अकेले चलना सीख लिया है.
दूसरा यदि वो बेरोज़गार है तो उन्हें घर के दस अलग अलग लोगों को बता कर घर से जाना पड़ता है कि वो कहाँ जा रही है? किस के साथ? क्यों? कहाँ? और कब तक वापस आएँगी?नौकरी उन को इन सब सवालों से हर क़दम पर बचाती है, उन्हें उनके ज़रिये, सोचा गया एक ऐसा आशियाना देती है, जिसके हर ज़र्रे में उनकी अपनी खुशियां,उनकी अपनी सोच,विचार है, जिसकी घर खिड़की से बाहर उदास,थकी आँखें नहीं उनकी खुद से खड़ी की गयी पहचान झाँकती है उन्हें महिलाओं को बाहर भेजने के अपने फैसले पर चाहे पछतावा तो होता होगा पुरुष के लिए ये लकीर जो औरतों को मर्दों के बराबर लाकर खड़ा करती है कहीं न कहीं दुख़दायी तो ज़रूर होगी,पर यह लकीर जो धुंदली है अब और गहरी होकर रहेगी.
और आने वाले वक़्त में उनसे उनकी यह आजादी कोई लाख प्रयास कर के भी नहीं छीन सकता है.
– सीमा आरिफ

error: Content is protected !!