विद्यार्थियों के लिए आवश्यक वास्तु टिप्स

शैलेन्द्र माथुर
शैलेन्द्र माथुर
*बच्चों को दर्पण के सामने बैठ कर अध्ययन नहीं करना चाहिए |
* अध्ययन कक्ष में पूर्व दिशा या उत्तर दिशा में खिडकी होना उत्तम होता है |
* पूर्व दिशा में मुख कर अध्ययन करना उत्तम रहता है।
*बच्चों के अध्ययन के लिए वायव्य/उत्तर/पूर्व दिशाएं उपुक्त है।
*बच्चों की पीठ के पीछे दिवार अवश्य हो अथवा चेयर का बैक ऊँचा होना चाहिए।
*अध्ययन के समय लोहे के फर्नीचर को काम ना लेवें।
*अध्ययन के समय विद्यार्थी के शरीर का कोई अंग भूसम्पर्कित यानि अर्थ ना हो अन्यथा एकारगचितता नहीं रहेगी।
*विद्यार्थी को उपयुक्त मात्रा में समय समय पर पानी बर्तन को मुंह लगाकर पीते रहना चाहिए।
*अध्ययन कक्ष सदैव स्वच्छ व हवा-रोशनिदार होना चाहिए।
*अध्ययन कक्ष का रंग हल्का होना उपयुक्त रहता है।
*किसी बीम या टांड या गर्डर के नीचे बैठ कर अध्ययन नहीं करना चाहिए।
*बिस्तर पर बैठ कर अध्ययन नहीं करना चाहिए।
*अध्ययन कक्ष में बहते हुए पानी की तस्वीर नहीं होनी चाहिए।
*अध्ययन कक्ष में ऊँचे पहाड़ या लंबे पेड़ों की तस्वीर दक्षिण या पश्चिम में लगाना अच्छा रहता है।
*माता-पिता का ईशान्य में सोना बच्चों की उन्नति में बाधक होता है।
*बच्चों का वायव्य में या पूर्वी कक्ष में सोना उन्नति के दृष्टीकोण से उत्तम होता है।
*सोते समय सिर दक्षिण दिशा में होना श्रेष्ठ होता है।

_इंजी.शैलेन्द्र माथुर; वास्तुविशेषज्ञ, अजमेर।

error: Content is protected !!