नरेंद्र (स्वामी विवेकानन्द) का रामकृष्ण परमहंस से सम्पर्क

डा. जे. के. गर्ग
डा. जे. के. गर्ग
जहाँ स्वामी विवेकानंद ज्ञान की रोशनी थे तो वहीं रामकृष्ण परमहंस प्रकाश पुंज थे जिनके ज्ञान की रोशनी ने नरेंद्र को विवेकानंद बना दिया था। अपने कॉलेज के प्रिंसिपल से रामकृष्ण परमहंस के बारे में सुनकर, नवंबर 1881 में वो रामकृष्ण परमहंस से मिलने दक्षिणेश्वर के काली मंदिर पहुंचे थे। रामकृष्ण परमहंस से नरेंद्र ने सवाल किया कि क्या आपने भगवान को देखा है? रामकृष्ण परमहंस ने जवाब दिया-हां मैंने देखा है, मैं भगवान को उतना ही साफ देख रहा हूं जितना कि तुम्हें देख सकता हूं। फर्क सिर्फ इतना है कि मैं उन्हें तुमसे ज्यादा गहराई से महसूस कर सकता हूं। रामकृष्ण परमहंस के जवाब से नरेंद्रनाथ प्रभावित तो हुए लेकिन प्रारम्भ में वो उनकी सोच को समझ नहीं सके, इस मुलाकात के बाद उन्होंने नियम से रामकृष्ण परमहंस के पास जाना शुरू कर दिया। वो रामकृष्ण परमहंस के विचारों से सहमत नहीं थे। निराकार ब्रह्म के साथ एकाकार हो जाने के अद्वैतवाद के सिद्धांत को शुरुआत में उन्होंने धर्मविरोधी तक समझा। तर्क-वितर्क में वो रामकृष्ण परहमंस का विरोध करते थे, तब उन्हें यही जवाब मिलता था कि सत्य को सभी कोण से देखने की कोशिश करो।
1884 में उनके पिता का देहांत हो जाने के बाद नरेंद्र के जीवन में बड़ा बदलाव हुआ। अमीर घर के नरेंद्र एकाएक गरीब हो गए। उनके घर पर उधार चुकाने की मांग करने वालों की भीड़ जमा होने लगी। नरेंद्र ने रोजगार तलाशने की भी कोशिश की लेकिन नाकाम रहने पर वो रामकृष्ण परमहंस के पास लौट आए। उन्होंने परमहंस से कहा कि वो मां काली से उनके परिवार की आर्थिक हालत सुधारने के लिए प्रार्थना करें। रामकृष्ण परमहंस ने कहा कि वो खुद काली मां से प्रार्थना क्यों नहीं करते? कहा जाता है कि नरेंद्र तीन बार काली मंदिर में गए लेकिन हर बार उन्होंने अपने लिए ज्ञान और भक्ति मांगी। इस आध्यात्मिक तजुर्बे के बाद नरेंद्र ने सांसारिक मोह का पूर्ण रूप से त्याग कर दिया और राम कृष्ण परमहंस को अपना गुरु मान लिया। राम कृष्ण परमहंस ने स्वामी विवेकानंद को जीवन का ज्ञान दिया। 16 अगस्त 1886 को रामकृष्ण परमहंस के निधन के दो साल बाद नरेंद्र भारत भ्रमण के लिए निकल पड़े।
विवेकानंदजी ने अपने गुरु से किए थे कुछ सवाल, सवाल जबाव में छिपा है जिंदगी का रहस्य
विवेकानन्द——-जीवन आपा धापी से भर गया है, मैं अब समय नहीं निकाल पाता
परमहंस रामकृष्ण—ऐसा जरूरी नहीं है,मुझे लगता है कि गतिविधियां तुम्हें घेरे रखती है, जब कि उत्पादकता आजाद करती है |
विवेकानन्द——-में समझ नहीं पा रहा कि जीवन इतना जटिल क्यों हो गया है?
परमहंस रामकृष्ण——मुझे लगता है कि तुम्हें जीवन का विश्लेषण बंद कर इसे जीना शुरू कर देना चाहिए | विश्लेषण जीवन को जटिल बना देता है| जीवन को सिर्फ जीओ |
विवेकानन्द—हमारे हमेशा दुखी रहने का कारण क्या है?
परमहंस रामक्रष्ण—जीवन की जटिलता से परेशान होना लोगों की आदत बन गई है,यही प्रमुख वजह है लोग खुश नहीं रह पाते हैं |
विवेकानन्द——अच्छे लोग हमेशा दुःख क्यों पाते हैं ?
परमहंस रामकृष्ण———-जिसे तुम दुःख कह रहे हो दरअसल वह एक परीक्षा है,परीक्षा से प्राप्त अनुभव से उनका जीवन बेहतर होता है, बेकार नहीं| रगड़े जाने पर ही हीरे में चमक आती है | आग में तपने के बाद ही सोना शुद्ध होता है |
विवेकानन्द——आपका मतलब है कि दुःख से प्राप्त अनुभव उपयोगी होता है ?
परमहंस रामकृष्ण——- बिल्कुल ठीक समझ रहे हो, अनुभव एक कठोर शिक्षक की तरह है | पहले वह परीक्षा लेता है और फिर सीख देता है |
विवेकानन्द—-जीवन की जटिलता में कोई अपना उत्साह कैसे बनाये रक्खे ?
परमहंस रामकृष्ण——–इसका सबसे अच्छा उपाय है कि उसे गिनो,जो तुमने पाया है,जो हासिल नहीं हो सका उसे नहीं | तुम्हें कहाँ पहुचना कि बजाय की तुम कहाँ पहुंच गये हो |
विवेकानन्द—–लोगों की कौन –सी बात जो आपको चकित करती है ?
परमहंस रामकृष्ण—–जब लोग परेशान होते हैं तो पूछते हैं- मै ही क्यों | पर जब उनके जीवन में खुशियाँ आती हैं तो वो कभी नहीं सोचते—मै ही क्यों ?
विवेकानन्द—– मै अपने जीवन मैं सर्वोतम कैसे बन सकता हूँ ?
परमहंस रामकृष्ण—-पूरे आत्मविश्वास के साथ अपने वर्तमान का सामना करो, बिना भय के अपना भविष्य सुंदर बनाने की तैयारी करो और अपने अतीत पर कभी भी अफ़सोस मत करो
विवेकानन्द——कई बार मुझे लगता है कि मै बेकार मे प्राथनाएं कर रहा हूँ, इसका कोई अर्थ नहीं है |
परमहंस रामक्रष्ण—– शायद तुम डर गये हो, इससे बचो | जीवन कोई समस्या नहीं है, जिसे तुम्हें सुलझाना है | मुझे लगता है कि तुम यह जान जाओ कि जीना कैसे है, तो जीवन बेहद आश्चर्यजनक और सुंदर है
प्रस्तुतिकरण एवं सकलंकर्ता—डा.जे. के. गर्ग
सन्दर्भ एवं सोजन्य—गूगल सर्च, विकीपीडिया,मुक्त ज्ञान कोष, भारत ज्ञान कोष, विभिन्न पत्रिकायें, भास्कर आदि
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