विश्व किडनी दिवस (10 मार्च) पर विशेष
अजमेर जिले में करीब 10 से 15 हजार ‘क्रोनिक किडनी डिसिजÓ से पीडि़त
नेफ्रोलॉजिस्ट के पास पहुंचते हैं इनमें से सिर्फ 5 प्रतिशत रोगी
अजमेर 9 मार्च। किडनी रोग से ग्रसित होने से बचाव को यदि एक लाइन में समझना हो तो वह है खून और पेशाब की नियमित जांच कराते रहना। विविध स्तरों पर गहन अध्ययन के बाद यह बात स्पष्ट हुई कि लोग अपने शरीर की नियमित जांचों के प्रति गंभीर नहीं हो पाते। उन्हें जब अपने रोगों के बारे में पता चलता है तो काफी देर हो चुकी होती है। ऐसा इसलिए नहीं कि वह अपने जीवन के प्रति लापरवाह हंै बल्कि इसलिए कि वह रोग के कारणों से अनजान हंै। आज के दौर में भागमभाग की जिंदगी, अनियंत्रित खान-पान की आदत, घर-परिवार और ऑफिस का तनाव जाने कब उन्हें ऐसे रोगों की दुनियां में धकेल देता है जिसके लक्षणों का पता काफी ‘एडवांस स्टेजÓ में ही चलता है। तब सिर्फ न रोग गंभीर हो चुका होता है बल्कि उसका उपचार भी जटिल हो जाता है। वल्र्ड किडनी दिवस (10 मार्च ) के अवसर पर हमने किडनी (गुर्दा) रोग के कारण और निवारण पर पाठकों के लिए खास जानकारी जुटाई है, साथ ही गुर्दारोग विशेषज्ञ की राय जानी है।
जानकारी के अनुसार गुर्दे खराब होने पर उन्हें ठीक किया जा सकता है बशर्त है बहुत ही प्रारंभिक चरण में ही नेफ्रोलॉजिस्ट के जरिए उसका उपचार शुरू हो जाए। मेडिकल भाषा में इसे ‘एक्यूटÓ किडनी इंजरी कहा जाता है। ‘क्रोनिकÓ किडनी डिसिज होने पर उसे ठीक किया जाना मुश्किल है। ‘क्रोनिकÓ किडनी डिसिज की पांच स्टेज होती है। स्टेज एक से चार तक केवल दवाइयों से इलाज होता है। स्टेज पांच में डायलिसिस या गुर्दा प्रत्यारोपण करना पड़ता है। अगर डायबिटीज व उच्च रक्तचाप से अपने आप को बचा सके तो 60 प्रतिशत तक किडनी डिसिज से बचाव संभव है। अन्य कारणों में जैसे संक्रमण(इंफेक्शन), दर्द की दवाइंयां, नेफ्रोटिक सिंड्रोम, नेफ्रोइटिक सिंड्रोम, गुर्दे में पथरी, जन्मजात विकृतियां इत्यादि होती हैं।
यहां यह समझना जरूरी है कि डायबिटीज और ब्लडप्रेशर से ग्रसित व्यक्ति की किडनी क्यों खराब हो जाती है? दरअसल ये दोनों ही रोग सीधे तौर पर शरीर में स्थित गुर्दों की कार्य प्रक्रिया को बाधित करते हैं। हमारे शरीर में दो गुर्दे होते हैं। इनके तीन काम होते हैं। शरीर में बनने वाले अपशिष्ट को पेशाब के द्वारा शरीर से बाहर निकालना गुर्दों का पहला काम होता है। दूसरा कार्य ब्लड प्रेशर को नियंत्रित बनाए रखना है तथा तीसरा खास काम खून बनाने में सहायता करना है।
आमतौर पर व्यक्ति को शुरुआती अवस्था में गुर्दो की कार्य प्रक्रिया के बाधित होने का पता खून व पेशाब की जांच से ही चलता है। खून की जांच में क्रिएटिनिन की मात्रा 1.4 से ज्यादा व पेशाब की जांच में प्रोटीन, शर्करा, खून या मवाद पॉजिटिव आए तो ये गुर्दों के ठीक से काम नहीं करने या कहें तो किडनी डेमेज होने की शुरुआती अवस्था होती है। किडनी यदि 70 प्रतिशत से ज्यादा खराब हो जाती है तो व्यक्ति को भूख कम लगती है, शरीर पर सूजन आने लगती है, खून की कमी महसूस होती है, पेशाब कम आने लगता है, उल्टी होने का मन होता है, सांस तेज चलने लगती है, व्यक्ति जल्दी थकावट महसूस करता है। इस अवस्था में किडनी को या कहें बीमारी को वापिस ठीक करना बहुत ही मुश्किल होता है। किडनी की कार्यक्षमता 10 प्रतिशत से कम होने पर ही मरीज को डायलिसिस या गुर्दा प्रत्यारोपण की सलाह दी जाती है। यदि समय पर डायलिसिस ना हो तो जान जोखिम में पड़ सकती है, क्यों कि डायलिसिस किडनी रोग का सम्पूर्ण उपचार नहीं है। पीडि़त को डायलिसिस के बाद आगे जितना जल्दी हो गुर्दा प्रत्यारोपण करवाना ही श्रेष्ठ होता है, लेकिन हर पीडि़त के लिए गुर्दा प्रत्यारोपण करा पाना संभव नहीं होता।
एक सर्वे के अनुसार अकेले अजमेर जिले में ही न्यूनतम करीब 10 से 15 हजार व्यक्ति ‘क्रोनिक किडनी डिसिजÓ के रोगी हैं। इनमें से सिर्फ 5 प्रतिशत लोग ही ‘नेफ्रोलॉजिस्टÓ की सलाह से रोग का उपचार कराते हैं। शेष सभी इसकी गंभीरता से अनजान ही रह जाते हैं। परिणाम होता है कि उन्हें इसकी गंभीरता का पता ‘क्रोनिक किडनी डिसिजÓ की आखिरी अवस्था (स्टेज 5) ‘किडनी फेलियरÓ होने पर ही चलता हैं। रोगी का उपचार इस अवस्था में ना केवल महंगा और काफी कष्टदायक भी होता है। समय रहते ‘एक्यूट किडनी डिसिजÓ अवस्था में ही इसका निदान हो जाए तो जीवन भर दवादयां खाते रहने से छुटकारा मिल सकता है। एक सर्वे के अनुसार देश में हर 10 लाख की जनसंख्या पर 200 लोग हर साल ‘किडनी फेलियरÓ की अवस्था में पहुंच रहे हैं, इनमें से मात्र 20 प्रतिशत को ही डायलिसिस या गुर्दा प्रत्यारोपण की सुविधा मुहैया हो पाती है। यही वजह है कि केंद्र सरकार ने हाल ही में जारी सालाना बजट में देशभर में अनेक जिलों में ‘डायलिसिसÓ सुविधा मुहैया कराने पर खास ध्यान दिया है।
नेफ्रोलॉजिस्ट की राय में यह है इसका बचाव
हर दो-चार माह में व्यक्ति खून और पेशाब की जांच कराता रहे, शरीर की जांचों से संबंधित डाक्टर की सलाह को नजर अंदाज ना करे, किडनी डेमेज की शुरुआती अवस्था में ही नेफ्रोलॉजिस्ट से इलाज शुरू कराएं, खूब पानी पिएं, किसी भी तरह के संक्रमण से बचे यानी साफ-सफाई और स्वच्छता का पूरा ध्यान रखें, आवश्यकता से ज्यादा मीठा ना खाएं, तनाव से मुक्त रहें, नियमित व्यायाम करंे या कम से कम 30 मिनट नियमित रूप से वॉक करें।
-डॉ. रणवीरसिंह चौधरी, नेफ्रोलॉजिस्ट, मित्तल हॉस्पिटल एण्ड रिसर्च सेंटर, अजमेर
संतोष गुप्ता
मैनेजर जनसंपर्क(प्रशासन)
मित्तल हॉस्पिटल एण्ड रिसर्च सेंटर, अजमेर
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