घटघटके वासी क्रष्ण-कन्हैया का जन्मोत्सव–जन्माष्टमी पार्ट 1

डा. जे.के.गर्ग
डा. जे.के.गर्ग
जब-जब धरती पर राक्षसों के जुल्म और अत्याचार, सत्य पर असत्य, विनम्रता पर अहंकार,नैतिकता पर अनैतिकता, सहिष्णुता पर असहिष्णुता, न्याय पर अन्याय और धर्म पर अधर्म हावी हो जाता है, तब-तब जगत के पालनहार भगवान विष्णु सत्य और धर्म की पुन: स्थापना करने हेतु अवतार धारण कर पृथ्वीपर आते हैं।इसी कड़ी में भारत की पावन भूमी पर स्वयं भगवान विष्णु अपनी सोलह कलाओं के साथ आठवें अवतार के रूप में भाद्रपदमास की कृष्ण पक्ष की अष्टमी की मध्यरात्रि को रोहिणी नक्षत्र में क्रष्ण के रूप में अवतरित हुए थे | जन्माष्टमी को हम भगवान श्रीकृष्ण के जन्म को उत्सव के रूप में हर्षोल्लास के साथ मनाकर भगवान क्रष्ण की उपासना करते हैं । भगवान कृष्ण ने मानवमात्र को अपने कर्मों को निष्काम भाव से करने की प्ररेणा दी, उल्लेखनीय है गोवर्धन गिरधारी के सम्पूर्ण जीवन काल में कर्म की ही प्रधानता रही थी ।
अपने सगे मामा कंस का वध कर कृष्ण ने यह संदेश दिया है कि मानव जीवन में जीवन के अन्दर रिस्तों से बड़ा कर्तव्य होता है। कर्तव्य परायणता की यही शिक्षा श्रीकृष्ण ने कुरुक्षेत्र की रणभूमि में गीता के माध्यम से अर्जुन को दी थी, जो युद्ध भूमी में अपने स्वजनों की सम्भावित म्रत्यु के भय से आहत होकर अपने क्षत्रिय धर्म एवं कर्तव्य से मुहँ मोड़ कर युद्ध नहीं करना चाह रहें थे।
वे भगवान श्रीकृष्ण ही थे, जिन्होंने अर्जुन को श्रीमदभगवदगीता के माध्यम से कायरता से वीरता, विषाद से प्रसाद की ओर जाने का दिव्य संदेश दिया था। जब-जब धरती पर राक्षसों के जुल्म और अत्याचार बढ जाते हैं, जब जब सत्य पर असत्य, विनम्रता पर अहंकार,नैतिकता पर अराजकता , न्याय पर अन्याय हावी हो जाने से समाज में धर्म पर अधर्म हावी हो जाता है, तब-तब जगत के पालनहार भगवान विष्णु सत्य और धर्म की पुन: स्थापना करने हेतु अवतार धारण कर पृथ्वीपर आते हैं।इसी कड़ी में भारत की पावन भूमी पर स्वयं भगवान विष्णु अपनी सोलह कलाओं के साथ आठवें अवतार के रूप में भाद्रपदमास की कृष्ण पक्ष की अष्टमी की मध्यरात्रि को रोहिणी नक्षत्र में क्रष्ण के रूप में अवतरित हुए थे | जन्माष्टमी को हम भगवान श्रीकृष्ण के जन्म उत्सव के रूप में मनाते हैं | जन्माष्टमी पर्व कृष्ण की उपासना का पर्व है। भगवान कृष्ण ने मानवमात्र को निष्काम भाव से कर्म करने की प्ररेणा दी उनके सम्पूर्ण जीवन काल में कर्म की ही प्रधानता रही थी । अपने सगे मामा कंस का वध कर कृष्ण ने यह संदेश दिया है कि मानव जीवन में जीवन के अन्दर रिस्तों से बड़ा कर्तव्य होता है।
कर्तव्य परायणता की यही शिक्षा श्रीकृष्ण ने कुरुक्षेत्र की रणभूमि में गीता के माध्यम से अर्जुन को दी थी, जो युद्ध भूमी में अपने स्वजनोंकी सम्भावित म्रत्यु के भय से आहत होकर अपने क्षत्रिय धर्म एवं कर्तव्य से मुहँ मोड़ कर युद्ध नहीं करना चाह रहें थे।
वे भगवान श्रीकृष्ण ही थे, जिन्होंने अर्जुन को श्रीमदभगवदगीता के माध्यम से कायरता से वीरता, विषाद से प्रसाद की ओर जाने का दिव्य संदेश दिया था।
प्रस्तुतिकरण—-डा. जे. के. गर्ग
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