हंसते—मुस्कराते जीये जिन्दगी Part 2

मुस्कराना हमारा जन्म सिद्ध मोलिक अधिकार है

डा. जे.के.गर्ग
डा. जे.के.गर्ग
मुस्कराना हम सब का जन्म सिद्ध अधिकार है, जो हमको हमारे जन्म के साथ ही प्राप्त हो जाता है | नवजात शिशु अपने जन्म के एक सप्ताह बाद ही मुस्काना शुरू कर देता है एवं एक महिने का होने तक तो खिलखिला कर मुस्कुराता भी है | शोधकर्ताओं ने बताया है कि नवजात बालक दिन भर में लगभग 200 बार मुस्कराता है वहीं एक युवा और प्रोढ़ ओसतन दिन मे मात्र मुश्किल से सिर्फ 12 बार ही मुस्करातें हैं | शायद बालक मुस्कराते हुए अपने से बड़ों को देख कर सोचता है कि ये मुस्कराते क्यों नहीं हैं |

हँसना क्यों जरुरी है —- ऐसा लगता है कि आजकल की भाग दौड़—जल्दबाजी एवं तनावपूर्ण दिनचर्या की वजह से जीवन में लोग हँसना ही भूल गए हैं। तभी तो आजकल अधिकतर लोगों के माथे पर भ्रकुटी तनी हुई रहती है और चेहरा गंभीर वह ग़मगीन नज़र आता है। ऐसा देखा जा रहा कि विशेष रूप से जो आदमी व्यावासिक जीवन में जो जितना ज्यादा सफल होता है,वह उतना ही ज्यादा गंभीरता का मुखोटा ओढे रहता है। इसीलिए आजकल भारत जैसे विकासशील देश में भी हृदयरोग, मधुमेह वह उच्चरक्तचाप जैसी भयंकर बीमारियाँ पनपने लगी हैं। बेन जानसन के अनुसार हास्य जीवन में‘टॉनिक का काम करता है । जिस प्रकार‘टॉनिक’से शरीर में स्फूर्ति आती है व रक्त संचार होता है उसी प्रकार हास्य से जीवन में स्फूर्ति आती है व रक्त-संचार होता है, मुस्कराने से विषाद की कालिमा छँट कर जीवन स्फूर्तिमय तथा आनंददायी हो उठता है। ठहाका लगाकर हँसना एक ऐसी प्रक्रिया है जिससे न सिर्फ़ शरीर का प्रत्येक अंग आनंद विभोर होकर कम्पन करने लगता है, बल्कि दिमाग भी कुछ देर के लिए सभी अवांछित विचारों से शून्य हो जाता है। इसीलिए हंसने को एक अच्छा मैडिटेशन भी माना जा सकता है।

क्या मुस्कराना और दूसरों को मुस्कराहट देना एक परोपकारिक कार्य है ?

दोस्तों याद रक्खें, हंसने के लिए स्वाभाविक होना अति आवश्यक है, साथ ही जिंदगी के प्रति अपना रवैया बदलना भी जरुरी है। जीवन की छोटी छोटी बातों से,घटनाओं से,कुछ न कुछ हास्य निकल आता है,जिसे फ़ौरन पकड़ लेना चाहिए और उसे हँसी में तब्दील कर देना चाहिए। ऐसा करके न सिर्फ आप हंस सकते हैं बल्कि दूसरों को भी हंसा सकते हैं। याद रखिये जो लोग हँसते हैं,वो अपना तनाव तों हटाते ही हैं, लेकिन जो लोग दूसरों को हंसाते हैं वो दूसरों का तनाव भी दूर करते हैं। यानी हँसाना एक परोपकारिक कार्य है। तो क्या आप यह यह पवित्र परोपकार को नही करना चाहेंगे? मनोवैज्ञानिकों के अनुसार ऐसे कई मानसिक रोग हैं जिनका इलाज केवल हास्य द्वारा ही किया जा सकता है |

डा.जे.के. गर्ग, सन्दर्भ—– सन्दर्भ—–डॉ टी एस दराल, चंचल मल चोर्डिया, मेरी डायरी के पन्ने, विभिन पत्र- पत्रिकायें आदि | Visit our Blog—-gargjugalvinod.blogspot.in

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