हंसते—मुस्कराते जीये जिन्दगी Part 4

हास्य में बाधक सामाजिक मर्यादाएँ——-

डा. जे.के.गर्ग
डा. जे.के.गर्ग
आज के तथाकथित सभ्य समाज में अकारण हँसने वालों को मूर्ख अथवा पागल समझा जाता है। सामाजिक मर्यादाओं के प्रतिकूल होने से बिना बात हँसने से लज्जा आती है। अतः घर में बच्चों के अलावा अन्य परिजन विशेषकर महिलाओं एवं वृद्धों का, धर्म संघ में संतों का, कार्यालय में पदाधिकारियों एवं नेताओं का समूह में ऐसी हँसी हँसना प्रायः असंभव होता है। दुःखी, चिन्तित, तनावग्रस्त, भयभीत, निराश, क्रोधी आदि हँस नहीं सकते |

बिना आवाज से की जाने वाली हँसी का महत्त्व——

मुस्कराहट तभी आकर्षक लगती है, जब वह होठों के साथ-साथ आंखों से भी नजर आये। मुस्कुराहट से अच्छा दूसरा तोहफा और दवा प्रायः हमारे पास नहीं होती। हँसना मानवीय स्वभाव है | मानव ही एक मात्र ऐसा प्राणी है, जिसमें हंसने की अपार क्षमता होती है। जो व्यक्ति अकेले या भीड़ में खुलकर हँसने का साहस न जुटा सकें, उन्हें मुंह बंद कर मन ही मन में जितनी लम्बी देर एक ही श्वास में हँस सकें, बिना आवाज निकाले हँसना चाहिए। जिससे ऐसी हँसी से प्राणायाम का भी लाभ भी उसे स्वतःही मिल जाता है। प्रदूषण रहित स्वच्छ एवं खुले प्राणवायु वाले वातावरण में प्रातःकाल उदित सूर्य के सामने हँसना अपेक्षाकृत अधिक लाभप्रद होता है क्योंकि हास्य क्रिया के साथ-साथ सौर-ऊर्जा एवं आँक्सीजन अधिक मात्रा में सहज प्राप्त हो जाते हैं।

मुस्कराने के विभिन्न तरीके

मोहक मुस्कान आपके चेहरे पर चार चांद लगा सकती है। मुस्कराने का ढंग सबका अलग-अलग होता है। कोई हंसते हुए दांत और मसूड़े दोनों दिखाता है तो कोई सिर्फ दांत।

प्रत्येक व्यक्ति की मुस्कराहट हम तीन भागों में बांट सकते हैं-
हाई लिप लाइन- जो लोग मुस्कराते वक्त अपने सामने के दांत और मसूड़े दोनों दिखाते हैं उन्हें हम इस श्रेणी में डाल सकते हैं।
मीडियम लिप लाइन- मुस्कराते समय जिन लोगों के सामने और नीचे दोनों दांतों की पंक्ति नजर आती हैं उन्हें हम इस श्रेणी में डाल सकते हैं।
लोअर लिप लाइन- मुस्कराने में जिन लोगों के सिर्फ नीचे के दांत ही दिखाई देते हैं, उन्हें हम इस श्रेणी में डाल सकते हैं।

मुस्कराते वक्त्त बरती जाने वाली आवश्यक सावधानियाँ——-

कभी-कभी किसी को देखकर,उसकी असफलता पर,उसकी बात सुनकर अथवा व्यंगात्मक भाषा में हँसते हुए उनका उपहास या मजाक करना क्रूर हास्य होता है। जिससे वैर और द्वेष बढ़ने की संभावना होने से कषाय का कारण बनता है।दूसरों की हँसी उड़ाना या‘उपहास’करना बहुत ही निम्न श्रेणी का हास्य है। इससे भलाई के बदले बुराई ही हाथ आती है। इससे जिसकी हँसी उड़ाई जाती है कई बार बुरा मानकर लड़ाई तक ठान बैठता है। द्रौपदी की दुर्योधन पर हँसी गयी‘हँसी’ने ही महाभारत का ऐतिहासिक युद्ध करवा दिया था।‘उपहास’को स्वस्थ हास्य नहीं कहा जा सकता |

डा.जे.के. गर्ग, सन्दर्भ—– सन्दर्भ—–डॉ टी एस दराल, चंचल मल चोर्डिया, मेरी डायरी के पन्ने, विभिन पत्र- पत्रिकायें आदि | Visit our Blog—-gargjugalvinod.blogspot.in

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