होली के सम्बन्ध में विभिन्न कहानियाँ

डा. जे.के.गर्ग
प्राचीन काल मेंहिरण्यकशिपु नाम का एक अत्यंत बलशाली दानव था। अपने बल के अंहकार से वशीभूत हो कर वह खुद को ही ईश्वर मानने लगा था। उसने अपने राज्य में भगवान विष्णु का नाम लेने पर पूर्ण पाबंदी लगा दी थी। हिरण्यकशिपु का पुत्र प्रह्लाद परमात्मा का परमभक्त था। प्रह्लाद की ईश्वर भक्ति से क्रुद्ध होकर उसके पिता हिरण्यकशिपु ने उसे अनेक तरह की यातनायें एवं अमानवीय कठोर दंड दिए किन्तु अपने पिता के अत्याचारों के बावजूद भक्तप्रहलाद ने ईश्वर की भक्ति का मार्ग नहीं छोड़ा। हिरण्यकशिपु की बहन होलिकाको वरदान प्राप्त था कि वह आग में भस्म नहीं हो सकती। हिरण्यकशिपु ने होलिकाको आदेश दिया कि होलिका प्रह्लाद को गोद में लेकर आग में बैठे जिससे प्रहलाद आग में जल कर भष्म हो जाये | आग में बैठने पर होलिका तो जल गई किन्तु प्रह्लाद बच गया। ईश्वर भक्त प्रह्लाद की याद में इस दिन होलिका दहन किया जाता है। प्रह्लाद की कथा के अतिरिक्त होली का पर्व राक्षसी ढुंढी,राधाकृष्ण के रास और कामदेव के पुनर्जन्म से भी जुड़ा हुआ है। कुछ लोगों का मानना है कि होली में रंग लगाकर,नाच-गाकर लोग शिवके गणों का वेश धारण करते हैं तथा शिव की बारात का दृश्य बनाते हैं। कुछ लोगों का यह भी मानना है कि भगवान श्रीकृष्णने इस दिन पूतना राक्षसी का वध किया था। इसी खु़शी में गोपियों और ग्वालों ने रासलीला की और रंग खेला था।

प्रस्तुतिकरण—-डा.जे.के.गर्ग

error: Content is protected !!