वर्षा की भविष्यवाणी का केंद्र मण्डावर का केरूण्डा बाबा रामदेव धाम

केरूण्डा में 17 अप्रेल रात्रि को भरेगा मेला
18 अप्रेल सुबह होंगे मण्डावर में रोट दर्शन

राजसमन्द, अजमेर व पाली जिले की सीमा पर राजसमन्द जिले के भीम उपखंड क्षेत्र के हाल ही में मतदान के जरिए शराब मुक्त होने वाली एवं पूरे देश में चर्चित ग्राम पंचायत मण्डावर में सघन वन क्षेत्र तीन किमी पश्चिम में पैदल रास्ते से तीव्र ढाल पर स्तिथ वर्षा की भविष्यवाणी के लिए प्रसिद्ध केरूण्डा बाबा रामदेव मंदिर युगों युगों से मगरा, मारवाड़ मालवा समेत राजस्थान के जनमानस का आस्था का केंद्र रहा है। मेले का आयोजन मेला संयोजक पन्ना सिंह रावत, सरपंच प्यारी रावत व जसवंत सिंह मंडावर के सानिध्य में आयोजित होगा।
केरूण्डा बाबा रामदेव मंदिर पर अक्षय तृतीया के अवसर पर 17 अप्रेल रात्रि को वर्षा की भविष्यवाणी होगी। 18 अप्रेल प्रातः साढ़े छः बजे मण्डावर में रोट दर्शन होंगे।
यहाँ पर दो तरीके रोट शगुन व कुण्ड शगुन से वर्षा की भविष्यवाणी की परम्परागत रूप से वैज्ञनिक युग में चमत्कारिक भविष्यवाणी की जाती है। जो हर वर्ष शत प्रतिशत सटीक बैठती है। इस हेतु विशेष साधु संतों व पूजा संघ की टोली बाबा रामदेव के काका धनराज की समाधि स्थल मियाला से करीब 15 किमी पैदल चल कर केरूण्डा पहुचती है। मियाला से रवाना होते ही चलायमान मेले का आगाज होता है । मगरा विकास मंच राजस्थान के अध्यक्ष जसवंत सिंह मण्डावर बताते है की वर्षा की भविष्यवाणी के मुकाबले में मौसम विज्ञान असफल हो जाता है पर केरूण्डा बाबा का परचा खाली नही गया।

ऐसे होती है भविष्यवाणी
कुण्ड शगुन – केरूण्डा बाबा रामदेव मंदिर परिसर में मगरा , मारवाड़, मालवा व मेवाड़ के निर्धारित चार कुण्ड है। अक्षय तृतीया की पूर्व संध्या पर इन कुंडो की विधिवत पूजा के साथ सफाई की जाती है। रात में भक्ति जागरन के बीच इन कुंडो को वर्षा काल के चार महीनो आषाढ़, श्रावण, भाद्रपद व आसोज के हिसाब से चार बार अवलोकन करते है। इस अवलोकन के तहत उक्त महीने व सूखे कुण्ड में पानी आने , पानी के जलस्तर के कम या अधिक होने की घटना के आधार पर पंडितो की टोली आकलन करती है। सूखे कुण्ड में पानी आने की से शुरूआती अच्छी वर्षा का संकेत होता है व जलस्तर के कम या अधिक होने के अनुरूप ही वर्षा के कम अधिक का सटीक आकलन किया जाता है।
रोट शगुन- इस शगुन में केरूण्डा बाबा रामदेव मंदिर परिसर में सालवी परिवार लाखागुड़ा के सानिध्य में निर्धारित वजन का एक बड़ा रोट बनाया जाता है ।रोट बनाने के बाद पूजा अर्चना के साथ उस पर कच्चा धागा लपेटा जाता है। कच्चा धागा लपेटे रोट को गर्म धधकते अंगारो पर भट्टी में मध्य रात्रि पकाने के लिए छोड़ देते है। इस रोट को अक्षय तृतीया के दिन अलसुबह भट्टी से रोट निकालकर टोकरी ने सजाकर पंडितो के पैदल जत्थे के साथ मण्डावर ग्राम में लाया जाता है। जहा पर मण्डावर ग्रामवासियों द्वारा भव्य स्वागत किया जाता है।मण्डावर के मालातों की गुआर स्तिथ कुमटिया कुए पर हजारो के तादात में उमड़े क्षेत्रवासियो को रोट दर्शन कराये जाते है।रोट दर्शन करने वाले अपने आप को धन्य समझते है। बाद में मण्डावर ग्राम में खजुरिया रोहिड़ा के मध्य बड़वा कुए पर रोट पर लपेटा कच्चा धागा पुनः लपेटा जाता है तथा रोट के सभी समुदायों में बाट दिया जाता है।
धधकते अंगारो की भट्टी में रोट के पकने की स्तिथि के आधार पर आगामी वर्ष की फसलों , देश काल परिस्तिथि का आंकलन किया जाता है। रोट पर लपेटा कच्चा धागा नही जलता है जससे क्षेत्र में सुख सम्पन्नता की आस की जाती है। कभी कभार थोडा भी धागा जल जाये तो अनिष्ट होने की सम्भावना व्यक्त की जाती है।

वैज्ञानिक युग में गजब चमत्कार
वर्तमान 21 वीं सदी वैज्ञानिक युग है पर धधकते अंगारो पर कच्चे धागे के नही जलने, सुखे कुण्ड में पानी आने, वर्षा की सटीक व शत प्रतिशत सही भविष्यवाणी के हर वर्ष सत्य साबित होने से परम्परागत रूप से हजारो वर्षो से लोगों का श्रदा का केंद्र बना हुआ है

क्या है इतिहास
केरूण्डा बाबा राम देव का यह मंदिर बहुत पुराना है। बाबा रामदेव के चाचा धनराज महाराणा मोकल के यहा कुंभ महोत्सव संत समागम कार्यक्रम में रामदेव के प्रतिनिधि के तौर पर अश्वरोह होकर रूणेचा से मदारिया जा रहे थे। तब केरूण्डा की नाल में प्यास लगी। अपनी प्यास बूझाने के लिए रामदेवजी से परचा माँगा और केरूण्डा वर्तमान मंदिर के पास जलधारा फुट पड़ी । जो आज तक अविरल रूप से बाह रही है। भयंकर अकाल में भी नही सूखती।
इसके बाद रामदेव जी दूसरा परचा केरूण्डा से मण्डावर (घटावड़) आते वक्त विशाल शिला अवरोध बनी तो उसे भाले से तोड़ दिया जो आज प्राकृतिक केरूण्डा द्वार है जिसे कमाड भाटा कहते है। उसके बाद मदारिया संत समागम में भाग लिया। इसी संत समागम में महाराणा कुम्भा के घड़ा (कुम्भ) से अवतरन की घटना हुई। मदारिया से लौटते वक्त मियाला आने पर बाबा रामदेव जी की रूणेचा में समाधि की सुचना पर तुरन्त धनराज जी ने समाधि ले ली। मियाला में भव्य मंदिर बना है जिसे छोटा रूणेचा भी कहते है। केरूण्डा में भी प्राचीन समय का मंदिर बना है। और कमाडभाटा में हाल ही में घोड़े की खुर व धनराज जी के पगलिये पर भी मंदिर बना है। मेला संयोजक व केरूण्डा मंदिर समिति अध्यक्ष पन्ना सिंह रावत ने बताया की मन्दिर के विकास के साथ आवागमन की सुविधा विस्तार के लिए निरन्तर प्रयासरत है। मेले की तैयारियों को लेकर पटवार संघ जिला अध्यक्ष मिठू सिंह चौहान, भाजपा ओबीसी मौर्चा जिला उपाध्यक्ष लूम्ब सिंह चौहान नारायण सिंह काछबली तैयारियों में जुटे हुए है।

यह अवस्थिति
मंडावर का केरूंडा बाबा रामदेव मंदिर भीम से टॉडगढ़ मार्ग से 23 किमी, नेशनल हाइवे सांगावास से 8 किमी, टोल नाका बग्गड से 8 किमी तथा देवगढ़ कामलीघाट से 15 किलोमीटर सड़क मार्ग से जुड़ा हुआ है तथा मंडावर से 3 किलोमीटर पैदल पगडंडी मार्ग से मंदिर परिसर तक पहुंचा जा सकता है । इसी तरह पाली मारवाड़ क्षेत्र के सारण बोरीमादा होकरकर केरूण्डा की नाल मंदिर परिसर से 1 किलोमीटर दूर तक वाहन द्वारा पहुंचा जा सकता है।

jaswant singh mandawar

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