डा. जे.के.गर्गमहाराष्ट्र में यह त्योहार नारियल पूर्णिमा या श्रावणी अथवा ‘कोकोनट-फुलमून’ के नाम से मनाया जाता है। इस दिन लोग नदी या समुद्र के तट पर जाकर अपने जनेऊ बदल कर समुद्र की पूजा करते हैं। श्रावण की पूर्णिमा को समुद्र में तूफ़ान कम उठते हैं इसलिये इस दिन पानी के देवता समुद्र-देव (वरुण) को नारियल चढ़ा कर उनसे प्राथना करते हैं कि समुद्र व्यापारी जहाज़ों को आवागमन की सुविधा दे। कोंकण एवं मलाबार में हिन्दूओ के अलावा मुसलमान एवं पारसी व्यापारी भी समुद्र तट पर जाते हैं और समुद्र को पुष्प एवं नारियल चढ़ाते हैं । वहीं गुजरात, उत्तर प्रदेश एवं अन्य स्थानों में बहिनें एवं महिलायें अपने भाइयों की कलाई पर रक्षा बाँधती हैं और भेंट लेती हैं | मध्यप्रदेश में रक्षाबंधन वाले दिन बहन अपने भाई के अतिरिक्त अपने माता-पिता आदि को राखी बांधती है तथा राखी निद्वारा परिवार एवम् समस्त परिजनों के प्रति अपना अटूट प्रेम, स्नेह प्रकट करती हैं व्रज में हरियाली तीज (श्रावण शुक्ल तृतीया) से श्रावणी पूर्णिमा तक समस्त मन्दिरों एवं घरों में ठाकुर झूले में विराजमान होते हैं। रक्षाबन्धन वाले दिन झूलन-दर्शन समाप्त होते हैं। बुन्देलखण्ड में राखी को ‘कजरी-पूर्णिमा’ भी कहा जाता है। इस दिन कटोरे में जौ व धान बोया जाता है तथा सात दिन तक पानी देते हुए माँ भगवती की वन्दना की जाती है। उत्तरांचल के चम्पावत ज़िले के देवीधूरा मेले में राखी-पर्व पर बाराही देवी को प्रसन्न करने के लिए पाषाणकाल से ही पत्थर युद्ध का आयोजन किया जाता रहा है, जिसे स्थानीय भाषा में ‘बग्वाल’ कहते हैं। राजस्थान में रामराखी और चूड़ाराखी या लूंबा बाँधने का रिवाज़ है। रामराखी सामान्य राखी से भिन्न होती है। इसमें लाल डोरे पर एक पीले छींटों वाला फुँदना लगा होता है। यह केवल भगवान को ही बाँधी जाती है। चूड़ा राखी भाभियों की चूड़ियों में बाँधी जाती है। जोधपुर में राखी के दिन केवल राखी ही नहीं बाँधी जाती, बल्कि दोपहर में पद्मसर और मिनकानाडी पर गोबर, मिट्टी और भस्मी से स्नान कर शरीर को शुद्ध किया जाता है। इसके बाद धर्म तथा वेदों के प्रवचनकर्त्ता अरुंधती, गणपति, दुर्गा, गोभिला तथा सप्तर्षियों के दर्भ के चट (पूजास्थल) बनाकर उनकी मन्त्रोच्चारण के साथ पूजा की जाती हैं। उनका तर्पण कर पितृॠण चुकाया जाता है। धार्मिक अनुष्ठान करने के बाद घर आकर हवन किया जाता है, वहीं रेशमी डोरे से राखी बनायी जाती है। राखी को कच्चे दूध से अभिमन्त्रित करते हैं और इसके बाद ही भोजन करने का प्रावधान है। दक्षिण भारत में राखी ‘अवनि अवित्तम’ के रूप में मनाया जाता है। इस दिन ब्राह्मण नया पवित्र यज्ञोपवीत धारण करते हैं तथा प्राचीन ऋषियों को जल अर्पित करते हैं। यज्ञोपवीतधारी ब्राह्मणों के लिये यह दिन अत्यन्त महत्वपूर्ण है। इस दिन नदी या समुद्र के तट पर स्नान करने के बाद ऋषियों का तर्पण कर नया यज्ञोपवीत धारण किया जाता है। गये वर्ष के पुराने पापों को पुराने यज्ञोपवीत की भाँति त्याग देने और स्वच्छ नवीन यज्ञोपवीत की भाँति नया जीवन प्रारम्भ करने की प्रतिज्ञा ली जाती है।
प्रस्तुतिकरण—–जे. के. गर्ग, सन्दर्भ—विभिन्न पत्र पत्रिकायें,मेरी डायरी के पन्ने आदि, Visit our blog—gargjugalvinod.blogspot.in