विघ्नहर्ता देवों के देव गणेश

डा. जे.के.गर्ग
सच्चाई तो यही है कि गणेशजी की चार भुजायें चारों दिशाओं में सर्वव्यापकता की प्रतीक हैं। आईये देखें गौरी पुत्र गणेश की मनमोहक शरीर की आकृति छिपे गहन रहस्य | स्मरणीय है कि गणेशोत्सव हिन्दूपंचांगके अनुसार भाद्रपद मास की चतुर्थी से चतुर्दशी तक यानि दस दिनों तक चलता है। इस वर्ष गणेश चतुर्थी 13 सितम्बर 2018 से 23सितम्बर2018तक मनायी जायेगी |

गणेश में गण का अर्थ है “वर्ग और समूह”और ईश का अर्थ है “स्वामी” अर्थात जो समस्त जीव जगत के ईश हैं वहीं गणेश हैं | शिवमानस पूजा में श्री गणेश को प्रणव (ॐ) कहा गया है। इस एकाक्षर “(ॐ ब्रह्म में ऊपर वाला भाग गणेश का मस्तक, नीचे का भाग उदर, चंद्रबिंदु लड्डू और मात्रा सूँड है)। विनायक की चार भुजायें चारों दिशाओं में सर्वव्यापकता की प्रतीक हैं। विघ्नहर्ता गणेशजी की व्याख्या करने से स्पष्ट होता है कि गज दो व्यंजनों से यानि ग एवं ज से बना हैं, यहाँ अक्षर ज जन्म और उद्दगम का परिचायक है वहीं गति औरगन्तव्य का प्रतीक व्यंजन ग है | निसंदेह हमें गज से हमें जीवन की उत्पति और अंत का संदेश मिलता है यानि हमारे नश्वर शरीर को जहाँ से आया है वहीं पर वापस जाना है | याद रक्खें कि जहाँ जन्म है वहां म्रत्यु भी है | सच्चाई तो यही है कि विनायक गणेशजी के शरीर की शारीरिक रचना भोलेशंकर शिवजी की सूक्ष्म सोच निहित है, भगवान शिव ने गणेशजी के अंदर न्यायप्रिय,योग्य, कुशल एवं सशक्त शासक के समस्त गुणों के साथ उनमें देवों के सम्पूर्ण गुण भी समाहित किये हैं | याद रखिये कि गण का मतलब समूह होता है | क्योंकि गणपति गणेश समूह के स्वामी हैं इसीलिए उन्हें गणाध्यक्ष, लोकनायक गणपति के नाम से भी जाना जाता है | गणेशजी की चार भुजायें चारों दिशाओं में सर्वव्यापकता की प्रतीक हैं। आईये देखें गौरी पुत्र गणेश की मनमोहक शरीर की आकृति छिपे गहन रहस्य |

हाथी का सिर—- कहावत है कि “ बड़ा सिर सरदार और बड़ा पांव गवांर का “ गणपति का बड़ा सिर खुशहाल जीवन जीने के लिये इंसान के अन्दर मोजूद असीमित बुद्धीमता का प्रतीक है, वहीं विनायक के| बड़े कान अधिक ग्राह्यशक्ति के प्रतीक हैं | गजानन लंबोदर हैं क्योंकि समस्त चराचर सृष्टि उनके उदर में विचरती है। बड़े कान अधिक ग्राह्यशक्ति व छोटी-पैनी आँखें सूक्ष्म-तीक्ष्ण दृष्टि की सूचक हैं। , गजकर्णक की लंबी नाक (सूंड) महाबुद्धित्व का प्रतीक है। गणेश के पास हाथी का सिर, मोटा पेट और चूहा जैसा छोटा वाहन है किन्तु इन सबके बावजूद गणेशजी विघ्नविनाशक, संकटमोचक एवं गणाध्यक्ष भी कहलाते हैं क्योंकि गणपति ने अपनी कमियों को कभी अपना नकारात्मक पक्ष नहीं बनने दिया बल्कि उनको अपनी ताकत बनाया।

एक दंत: अच्छाई और अच्छों को अपने पास रक्खो वहीं बुराई और बुरों का साथ तुरंत छोडो | गणेशजी के बाई तरफ का दांत टूटा है | इसका एक अर्थ यह भी है कि मनुष्य का दिल बाई और होता है, इसलिए बाई और भावनओं का उफान अधिक होता है, जबकि दाई और बुद्धीपरक होता है | बाई और का टूटा दांत इस बात का प्रतीक है कि मनुष्य को अपनी भावनओं पर बुद्धी और विवेक से नियन्त्रण रखना चाहिए |

छोटी आँखें: गणेशजी की छोटी-पैनी आँखें हमें सिखाती है कि हमें सूक्ष्म एवं तीक्ष्ण दृष्टि वाला बनना चाहिये। सफलता प्राप्ति के लिये आदमी को एकाग्र चित्त बन कर अपना ध्यान हमेशा अपने लक्ष्य पर केंद्रित रखते हुए अपने मन पर नियन्त्रण रखना चाहिये और मन को इधर उधर भटकने से रोकना चाहिये |

बड़ा पेट: विघ्ननाशक गणेशजी का बड़ा पेट हमें सिखाता है कि मनुष्य को अच्छी बुरी सभी बातों-भावों को समान भाव से ग्रहण करना चाहिये, उन्हें समान भाव से लेना चाहिये | दुसरे शब्दों में गणेशजी का बड़ा पेट मनुष्य को उदार आदतों का धनी बनने की सीख देता है | जीवन में कुछ बातों को पेट में पचा लेना चाहिये | धीर और गम्भीर पुरुषों का समाज में सम्मान होता है |

हाथ में अंकुश: गणेशजी का अंकुश हमें अपने लक्ष्य की और केन्द्रित रहते हुए हमेशा आगे बड़ने की सीख देता है | लक्ष्य की और आगे बड़ते रहने के लिये हर संभव प्रयास करना | भोतिकता से आध्यात्मिकता की तरफ मुड़ने के लिये प्रेरित करता है |

आशीर्वाद की मुद्रा में हाथ: उच्च कार्यक्षमता और अनुकूलन क्षमता | गणेशजी के आशीर्वाद की मुद्रा में हाथ हमें परिस्थतीयों के अनुसार खुद को ढालने की क्षमता विकसीत करने की सीख देता है क्योंकि जीवन में हमेशा जीत उन व्यक्तियों की होती है जो परिस्थतियों के अनुसार अपने आप को परिवर्तित करके आगे बड़ते हैं |

चूहे की सवारी: इच्छाओं का प्रतीक है | जैसे चूहे की इच्छा कभी पुरी नहीं होती, उसे कितना मिले हमेशा खाता रहता है वैसे ही मनुष्य की इच्छायें भी कितना भी मिले कभी पुरी नहीं होती | गणेश हमेशा चूहे की सवारी करते हैं इसका अर्थ है कि बेकाबू इच्छायें हमेशा विध्वंस का कारण बनती है | इनको काबू में रखते हुए इन पर राज करो, न कि इन इच्छाओं के मुताबिक खुद को बहाओ क्योंकि मनुष्य की इच्छायें और कामनाएं कभी भी पुरी नहीं होती है वरन आदमी इच्छाओं के मकड जाल में फसं कर असंतुष्ट और तनावग्रस्त रह कर जीवन को बर्बादी के कगार पर ले आता है |

खड़े होने का भाव: गणेशजी की यह अवस्था बताती है कि हालाँकि दुनियाँ में रहते हुए मुनष्य को सांसारिक कर्म भी करने जरूरी है | वस्तुतः इन सबमें एक संतुलन बनाये रखते हुए उसे अपने सभी अनुभवों कोपरे रखते हुए अपनी आत्मा से जुडाव रखना चाहिए और आध्यात्मिक होना चाहिए |

उपरोक्त तथ्यों से स्पष्ट है कि देवों के देव गणेश पूज्यनीय तो है ही किन्तु वर्तमान परिपेक्ष में उन्हें मेनेजमेंट गुरु भी कहा जा सकता है क्यों कि अपनी आक्रति और अगं अंग से जीवन को सुखमय बनाने का मन्त्र भी देते हैं |

सकंलन कर्ता एवं प्रस्तुतिकरण—————-डा.जे.के.गर्ग

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