दीपोत्सव यानि पाँच दिन का पर्व

डा. जे.के.गर्ग
दीवाली कार्तिक महीने में कृष्ण पक्ष की तेरस से कार्तिक क्रष्णा तेरस यानि धनतेरस, नरक चतुर्दशी, अमावस्या (दीपावली), एवं कार्तिक शुक्ला एकम(गोर्वधन पूजा ) और कार्तिक शुक्ला द्वितीया यानि भाई दूज तक हर्षोल्लास के साथ मनाया जाता है। इन सभी दिनों के बारे में कई किंवदंतियॉं और पोराणिक गाथायें प्रचलित है। महाराष्ट्र में दीवाली का पर्व छह दिनों में पूरा होता है यानि वहां वासु बरस या गौवास्ता द्वादशी के साथ शुरू होता है और भय्या दूज के साथ समाप्त होता है ।
1. धनतेरस या धनवंन्तरी तृयोदशी:— धनतेरस को देवताओं के चिकित्सक भगवान धनवंतरी की जयंती के रूप में मनाया जाता है, पोराणिक मान्यताओं के मुताबिक भगवान धनवंतरी समुद्र मंथन के दौरान अवतरित हुए थे | इस दिन को शुभ मानते हुए लोग बर्तन, सोना–चादीं आदि खरीदना शुभ एवं मंगलकारी मानते हैं।

2. नरक चतुर्दशी:— कार्तिक मास के क्रष्णपक्ष की चतुर्दशी को नरक चतुदर्शी के रूप में मनाया जाता है, कुछ जगह इसे छोटी दिवाली भी कहते हैं | कहा जाता है कि ईसी दिन भगवान कृष्ण ने राक्षस नरकासुर को मारा था। नरक चतुदर्शी को बुराई एवं अंधकार पर अच्छाई एवं प्रकाश की विजय के संकेत के रुप में मनाया जाता है। आज के दिन लोग अपने घरों के आसपास बहुत से दीपक जलाते है और घर के बाहर रंगोली बनाते है। नरक चतुदर्शी के दिन सूर्योदय से पहले स्नान करने का महत्व गंगा के पवित्र जल में स्नान करने के बराबर माना जाता है।

3. अमावस्या (दीपावली)—इस दिन सभी घरों,व्यापारिक प्रतिष्टान, कार्यस्थलों,ऑफिसों में धन-सम्पदा की देवी लक्ष्मी माताजी की विधी-विधान से पूजा-अर्चना की जाती है और विपत्ति-कष्ट निवारक भगवान गणेशजी की भी पूजा की जाती है | ऐसी मान्यता है कि माता लक्ष्मी घर-परिवार में सुखसमृद्धि प्रदान कर समस्त परिजनों को आशिर्वाद देकर उन पर धन-धान्य की वर्षा करेंगी | नगर,गलियों, घरों,सार्वजनिक जगहों पर दिये की रोशनी से अमावस्या के अँधेरे को शीतल चांदनी मे बदल दिया जाता है |

4. बाली प्रतिप्रदा और गोवर्धन पूजा यानि अन्नकूट यह उत्तर भारत में गोवर्धन पूजा के रूप में मनाया जाता है | भगवान क्रष्ण ने गोकुल वासियों को इन्द्र के प्रकोप से बचाने के वास्ते अपनी अगुंली पर विशालकाय गोवर्धन पर्वत को उठा लिया था | कुछ लोग इस दिन को वामन पूजन के रूप में भी मनाते है | कुछ स्थानों जैसे महाराष्ट्र में यह दिन पडवा या नव दिवस (अर्थात् नया दिन) के रुप में भी मनाया जाता है और सभी पति अपनी पत्नियों को उपहार देते है। गुजरात में यह विक्रम संवत् नाम से कैलेंडर के पहले दिन के रूप में मनाया जाता है।

5. यम द्वितीया या भाई दूज—– इस पर्व के पीछे यम की कहानी (मृत्यु के देवता) है। आज के दिन यम अपनी बहन यामी (यमुना) से मिलने आये और अपनी बहन द्बारा उनका आरती के साथ स्वागत हुआ और यम एवं यामी ने साथ साथ में खाना भी खाया। यम नें अपनी बहन यामी को अनेकों उपहार भी दिये। लोग यम द्वितीया या भाई दूज को बहन- भाई के पारस्परिक प्रति प्रेम और स्नेह के रूप में मनाते है।

प्रस्तुतिकरण—डॉ. जे. के.गर्ग
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