ग्रामीण भारत के लोकप्रिय देवता तेजाजी पार्ट 3

डा. जे.के.गर्ग
तेजाजी गायों को लाने केअपने पांचों हथियार लेकर अपनी घोडी लीलण के साथ चल दिये | रास्ते में वे जब चोरों का पीछा कर रहे थे, उसी समय उन्हें एक काला नाग आग में झुलजता दिखाई दिया तब तेजाजी ने फूर्ती से भाले की नोक के द्वारा नाग को आग से बाहर निकाला , संयोगवश वह इच्छाधारी बासक नाग था | बासग नाग ने उन्हें शाबासी देने बजाय यह कहा कि मैं तुझे डसूंगा | तेजाजी ने कहा मैंने तुम्हारा जीवन बचाया है, कोई बुरा काम नहीं किया भलाई का बदला बुराई से क्यों देना चाहते हो ? नागराज ने फुंफकार कर कहा कि वे उसकी नाग की योनी से मुक्ति में बाधक बने हैं | शूरवीर तुमने मुझे आग में जलने से रोककर तुमने अनर्थ किया है | मैं तुझे डसूंगा तभी मुझे मोक्ष मिलेगा | तेजाजी ने प्रायश्चित स्वरूप नागराज की बात मान ली और नागराज को वापिस लौट आने का वचन देकर सुरसुरा की घाटी में पहुंचें गये जहाँ मंदावारिया की पहाडियों में डाकुओं के साथ उनका भंयकर संघर्ष जिसमें तेजाजी का पूरा शरीर लहूलुहान हो गया | तेजाजी सारी गायों को लेकर उन्हें लाछां गूजरी को सौंप दिया | लाछां गूजरी ने उन गायों में काणां केरडा को नहीं दिखा तो वह उदास हो गई और तेजा को वापिस जाकर काणांकेरडा को लाने के लिए प्राथना की जिसके फलस्वरूप वे वापस पहाड़ी में छुपे हुए डाकुओं को मार कर लाछा का केवड़ा ले आये |

विजयी होकर तेजाजी नागराज के पास पहुंच कर उन्हें डसंने को कहा | लहूलुहान तेजाजी देख कर नागराज बोले तेजा तुम्हारे रोम रोम से तो खून टपक रहा है, में तुम्हें कहाँ डसू |तेजाजी बोले कि मेरे हाथ की हथेली वह जीभ पर कोई घाव नहीं है इसलिए आप यहाँ डसं लें |

प्रस्तुतिकरण ——– डा.जे. के. गर्ग, सन्दर्भ—-विभिन्न पत्र पत्रिकाएँ, ग्रामीणों एवं तेजा भक्तो और भोपओं से बात चित,मेरी डायरी के पन्ने आदि | Visit our Bog—gargjugalvinod.blogspot.in

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