दशहरे को मनाये स्नेह,विनम्रता,सोहार्द के संकल्प पर्व के रूप में पार्ट 1

dr. j k garg
निसंदेह दशहरा जीवन में काम,क्रोध,लोभ,मद,मोह,मत्सर,अहंकार,आलस्य,हिंसा, अधर्म एवं चोरी को त्याग कर स्नेह,विनम्रता,सोहार्द को अपनाने का संकल्प लेने का पर्व है |’दश’ व’ हरा’ से मिलकर दशहरा बना है | निसंदेह दशहरा का अर्थ भगवान राम के द्वारा रावण के दसों सिरों यानि दसों पापों यथा काम, क्रोध, लोभ, मोह मद, मत्सर, अहंकार, आलस्य, हिंसा और चोरी को नष्ट करने एवं तथा राक्षस राज रावण के आंतक से मुक्ति दिलाने से है। भगवान श्रीराम ने रावण से युद्ध करके आश्विन शुक्ला दशमी के दिन रावण का वध किया था, इसीलिए प्रतिवर्ष सनातन धर्म के अनुयायी आश्विन शुक्ला दशमीं को विजयादशमी के रूप में मनाते हैं। ध्यान रक्खें कि विजयदशमी मात्र इस बात का प्रतीक नहीं है कि अन्याय पर न्याय अथवा बुराई पर अच्छाई की विजय हुई थी किन्तु वास्तविकता में विजया दशमी बुराई में भी अच्छाई ढूँढने का अवसर होता है। रावण–वध के बाद स्वयं भगवान राम ने अपने छोटे भाई लक्ष्मण को रावण के पास जाकर रावण से राजनीति का गूढ़ ज्ञान प्राप्त करने का आदेश दिया था | रावण ने लक्ष्मणजी को तीन सीख दी यानि

(1)शत्रु को कभी छोटा नहीं समझना चाहिए |

(2 )शुभ कार्य जितनी जल्दी हो कर डालना चाहिए और

(3) अपने जीवन का कोई राज हो तो उसे किसी को भी नहीं बताना चाहिये | रावण ने लक्ष्मणजी को कहा कि यहां पर मैने गलती कर दी क्योंकि मैने अपनी म्रत्यु का राज अपने भाई विभीषण को बता दिया था इसीलिए विभीषण मेरी मृत्यु का राज जानता था |

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