सद्दभाव न्याय भाईचारा स्नेह प्रेम एवं विनम्रता की विजय का पर्व —-दीपावली Part 2

dr. j k garg
सातवीं शदी के संस्क्रत नाटक “ नागनन्द” में सम्राट हर्ष ने दीपावली को दीपप्रतिपादुत्स्व कहा है, जिसमें घरों में दीपक जलाये जाते थे और नवविवाहित दम्पतियों को उपहार दिये जाते थे | 9वीं शदी में राजशेखर दुवारा रचित “ काव्यमीमांसा “ इसे दीपमालिका कहा गया था वहीं 11वीं शदी ने फ़ारसी इतिहासकार अलबेरुनी ने अपने संस्मरणों में दीपावली को कार्तिक महिने में नये चन्द्रमा के दिन हिन्दुओं की तरफ से मनाया जाना महत्वपूर्ण पर्व कहा गया था | हमारे देश मै हिन्दू,सिख, जैन और अन्य धर्मावलम्बी दीपोत्सव को हर्षोल्लास और धूमधाम से मनाते हैं वहीं सभी बच्चें दीपावली का बेसब्री से इंतजार करते हैं | दीपावली का पर्व प्रति वर्ष कार्तिक मास की अमावस्या के दिन उल्लास और उमगं के साथ मनायी जाती है | उल्लेखनीय है कि अमावस्या का अँधेरा अज्ञानता और विकारों का प्रतीक है, इसी अंधकार को दूर करने के लिए घर-घर में अंदर और बाहर अधिकाधिक दीपमालाएं आदि लगाने की होड़ लग जाती हैं | सच्चाई तो यही है कि इन्सान की आत्मा ही सच्चा और अविनाशी निरंतर प्रकाशित होने वाला दीपक है | इसलिए सच्ची दीपावली मनाने के लिए घरों में मिट्टी के दिये जलाने के साथ मन के दीप को जलाना और उसके प्रकाश को चारों ओर फैलाना ज्यादा जरूरी है | आईये हम सभी को प्रकाश के पर्व दीपावली को बाहरी रोशनी करने के वनिस्पत हमारे भीतर के अंधेरे और तामसी प्रव्रत्तियों यानि राग देवेष, ईर्ष्या, अहंकार, स्वार्थ, अविश्वाश, असहिष्णुता, हिंसा, क्रोध को नष्ट करें और अपने मन के अंदर पुनः न्याय, विनम्रता,सहयोग,पारस्परिक विश्वास,सहिष्णुता, अहिंसा स्नेह प्रेम के प्रकाश से आलोकित करें |

प्रस्तुतिकरण—डा. जे. के. गर्ग

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