महाशिवरात्रि भोले शंकर की पूजा अर्चना का पर्व

फाल्गुन मास के कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी को ही शिवरात्रि क्यों मनायी जाती है ?

dr. j k garg
जनसाधारण के मन में सवाल उत्पन्न होता है कि क्यों फाल्गुन मास के कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी को शिवरात्रि का त्योहार मनाया जाता है ? ऐसा माना जाता है कि सृष्टि की रचना इसी दिन हुई थी । मध्यरात्रि में भगवान् शंकर का ब्रह्मा से रुद्र के रूप में अवतरण हुआ था । ईशान सहिंता के अनुसार फाल्गुन चतुर्दशी की अर्द्धरात्रि में भगवान शंकर लिंग के रूप में अवतरित हुए । चतुर्दशी तिथि के महानिशीथ काल में महेश्वर के निराकार ब्रहम स्वरूप प्रतीक शिवलिंग का अविभार्व होने से भी यह तिथि महाशिवरात्रि के नाम से जानी जाती है |इसी दिन, भगवान विष्णु व ब्रह्मा के समक्ष सबसे पहले शिव का अत्यंत प्रकाशवान स्वरूप प्रकट हुआ था । कहा जाता है कि शिवरात्री के दिन भगवान शिव और आदि शक्ति का विवाह हुआ था। ऐसी मान्यता है कि महाशिवरात्रि के दिन ही समुद्र मंथन के दौरान कालकेतु विष निकला था।भगवान शिव ने संपूर्ण ब्राह्मांड की रक्षा के लिए स्वंय ही सारा विष पी लिया था। इससे उनका गला नीला पड़ गया और तभी से शिवजी को नीलकंठ के नाम से जाना जाता है।

आईये जाने शिवलिंग क्या है ?
शिवलिंग का अर्थ होता है शुभ प्रतीक का बीज | शिव की स्थापना लिंग रूप में की जाती है,वही बीज क्रमश: विकसित होता हुआ सारे जीवन को आवृत्त कर लेता है | सच्चाई तो यही है कि वातावरण सहित घूमती धरती या सारे अनंत ब्रह्माण्ड की अक्स ही लिंग है। इसीलिए इसका आदि और अन्त को जानने का सामर्थ्य साधारण जनों में नहीं है यहाँ तक कि देवताओं के लिए भी यह अज्ञात ही है । सौरमण्डल के ग्रहों के घूमने की कक्ष ही शिवजी के तन पर लिपटे सांप हैं।

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