भारतीय संविधान के शिल्पकार बाबा साहिब अम्बेडकर पार्ट 2

dr. j k garg
जीवनपर्यन्त वर्ण व्यवस्था एवं हिन्दू समाज में व्याप्त उंच-नीच, जाति व्यवस्था एवं धार्मिक आडम्बरों के विरुद्ध अनवरत् संघर्ष करने वाले बाबासहिब अम्बेडकर को 15 अगस्त 1947 को देश का पहले कानून मंत्री बनाया गया | 29 अगस्त 1947 को उन्हें भारत के संविधान निर्माण के लिए बनी के संविधान मसौदा समिति के अध्यक्ष पद पर नियुक्त किया गया। संविधान के प्रारूप मे धार्मिक स्वतंत्रता, अस्पृश्यता का अंत और सभी प्रकार के भेदभावों को गैर कानूनी करार दिया गया। अम्बेडकर ने महिलाओं के लिए व्यापक आर्थिक और सामाजिक अधिकारों की वकालत की और अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति के लोगों के लिए सिविल सेवाओं, स्कूलों और कॉलेजों की नौकरियों मे आरक्षण प्रणाली शुरू के लिए सभा का समर्थन किया | डा बी.आर. अम्बेडकर ने दीक्षा भूमि, नागपुर, भारत में ऐतिहासिक बौद्ध धर्मं में परिवर्तन के अवसर पर,14 अक्टूबर 1956 को अपने अनुयायियों के लिए 22 प्रतिज्ञाएँ निर्धारित कीं | स्मरणीय है कि बाबासाहिब को भारतीय बौद्ध भिक्षुओं ने बोधिसत्व की उपाधि प्रदान की थी किन्तु उन्होने खुद को कभी भी बोधिसत्व नहीं कहा।

निसंदेह डा. अम्बेडकर विश्व की एक बहुत बड़ी आबादी यानि दलितों के प्रेरणा स्रोत हैं इसीलिए उन्हें विश्व भूषण कहना भी अतिशयोक्ति पूर्ण नहीं है।

प्रस्तुतिकरण डा. जे. के. गर्ग

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