सज्जनता सादगी के प्रतिक जननायक शास्त्रीजी की 116 वें जन्मदिन पर जानिये उनके जीवन के प्रेरणादायक क्षण पार्ट 4

ना क्रोध और ना ही शिकायत

dr. j k garg
साधारणतया लोग घर में तोवजह-बेवजह अधिकार एवं डांट-फटकार से काम करवाते हैं किन्तु घर के बाहर सज्जनता तथाउदारता के प्रतीक बने रहने का स्वागं करते हैं, किन्तुशास्त्रीजी इसके अपवाद थे। वे स्वभाव से ही उदार तथा सहिष्णु थे। ताशकंद जाने के एक दिन पूर्व वे भोजन कर रहे थे। ललिताजीने उस दिन उनकी पसंद का खिचडी तथा आलू का भरता बनाया था। ये दोनों वस्तुएँ उन्हेंसर्वाधिक प्रिय थीं। बडे़ प्रेम से खाते रहे। जब खा चुके उसके थोडी़ देर बादउन्होंने वही प्रसंग आने पर बडे़ ही सहज भाव से श्रीमती ललिता जी से पूछा-क्या आजआपने खिचडी़ में नमक डाला था ? ललिता जी को अपनी गलती पर बडा दुःख हुआ किन्तुशास्त्रीजी ने न कोई शिकायत की और ना ही गुस्सा, वेतो फीकी खिचडी़ खाकर भी मुस्कराते रहे । शास्त्रीजीकहते थे कि “ भष्टाचार को गम्भीरता से लेंतो जरुर अपने कर्तव्यों का निर्वाह कर सकेंगें | लोगोंको सच्चा लोकतंत्र और स्वराज कभी भी हिंसा और असत्य से प्राप्त नहीं हो सकता है |जननायक शाष्त्रीजी के 115 वें जन्म दिन पर 132 करोड़ भारतियों काउनके श्री चरणों में नमन| जय जवान, जयकिसान” का नारा भारतवाषियों को हमेशाशास्त्रीजी की याद दिलाता रहेगा |प्रस्तुतिकरण—-डा.जे.के.गर्ग

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