स्नेह,विनम्रता,सोहार्द एवँ सच्चाई की विजय का पर्व —दशहरा के पार्ट 2

dr. j k garg
रावण–वध के बाद स्वयं भगवान राम ने अपने छोटे भाई लक्ष्मण को रावण के पास जाकर रावण से राजनीति का गूढ़ ज्ञान प्राप्त करने का आदेश दिया था | रावण ने लक्ष्मणजी को तीन सीख दी यानि (1)शत्रु को कभी छोटा नहीं समझना चाहिए | (2 )शुभ कार्य जितनी जल्दी हो कर डालना चाहिए और (3) अपने जीवन का कोई राज हो तो उसे किसी को भी नहीं बताना चाहिये | रावण ने लक्ष्मणजी को कहा कि यहां पर मैने गलती कर दी क्योंकि मैने अपनी म्रत्यु का राज अपने भाई विभीषण को बता दिया था इसीलिए विभीषण मेरी मृत्यु का राज जानता था |

कई सालों से दशहरे के दिन विशालकाय रावण, मेघनाथ एवं कुंभकर्ण के पुतलों को जलाते हैं | इन पुतलों को जलाते वक्त कुछ पलों के लिये हमारे मन के अंदर भगवान राम के आदर्शों को अपने जीवन में अपनाकर सभी प्रकार दुष्कर्मों एवं तामसी प्रव्रत्तियों यानि काम,क्रोध,लोभ,मद,मोह,मत्सर,अहंकार,आलस्य,हिंसा एवं चोरी को त्यागने का विचार आता है,किन्तु हमारा यह विचार श्मशानी वैराग्य की तरह ही क्षणिक होता है क्योंकि कुछ ही समय बाद हम सभी अपने सांसारिकता के प्रपंचों में तल्लीन हो कर तामसी प्रव्रतियों के चंगुल में फंस जाते हैं | काश ! अगर हम हम इस सात्विक सोच को अमली जामा पहना पाते तो हमारा जीवन एक अलग ही किस्म का बन जाता यानि हमारे समाज में झूठ, फरेब ,धोखाधडी, लूटकचोट ,चोरी-चकारी, हिंसा, मारकूट, अपहरण-बलात्कार की भयावह घटनायें घटित ही नहीं होती |

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