विभिन्न धर्मों एवं समुदायों में दिवाली Part 2

dr. j k garg
सिक्खधर्म में दिवाली:—-अमृतसरके स्वर्ण मंदिर की स्थापना भी वर्ष 1577 मेंदीवाली के मौके पर की गयी थी। तीसरे गुरु अमरदासजी ने दिवाली को लाल-पत्र दिन के पारंम्परिक रुप में बदल दियाजिस पर सभी सिख अपने गुरुजनों का आशार्वाद पाने के लिये एक साथ मिलते है। सिख धर्ममें इस दिन को बंदी छोड़ दिवस के रुप में जाना जाता है, इसदिन सन् 1619 मेंसिखों के छठे गुरु, गुरु हरगोविंद सिंह 52 अन्यहिंदू राजकुमारों के साथ ग्वालियर के किले से रिहा हुए थे। सिखों की मांग पर जबशहंशाह जहांगीर, गुरुहरगोविंद सिंह को छोड़ने के लिए राजी हुए तो गुरु ने एलान किया कि वह अन्य बंदीराजकुमारों के बिना नहीं जाएंगे। यह जानते हुए कि सारे राजकुमार गुरु को एक साथ एकही समय पर नहीं पकड़ सकते, चालाक जहांगीर ने एलानकिया कि सिर्फ उन्हीं राजकुमारों को गुरु के साथ छोड़ा जाएगा जिन्होंने गुरु कोपकड़ रखा होगा। गुरु ने तब एक ऐसा वस्त्र बनवाया जिसमें 52 डोरियांथी। हर युवराज ने एक डोरी पकड़ी और इस तरह गुरु ने सफलता से सभी को मुक्त करवाया।इस दिन स्वर्ण मंदिर को रोशनी से सजाया जाता है। गुरु हरगोबिंद जी की रिहाई कीस्मृति में दीवाली मनायी जाती है। मारवाड़ीयोंके लिये नया साल दिवाली:––मारवाड़ी कार्तिक की कृष्ण पक्ष केअंतिम दिन पर दीवाली पर अपने नए साल का उत्सव मनाते हैं एवं नये बही खाते प्रारम्भकरते हैं। गुजरातियोंके लिए नया साल दिवाली:––गुजरातीभी कार्तिक के महीने में शुक्ल पक्ष के पहले दिन दीवाली के एक दिन बाद अपने नए सालका उत्सव मनाते है।
प्रस्तुतिकरण—-डा.जे.के. गर्ग

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