भाई चारा स्नेह प्रेम सद्दभाव एवं विनम्रता की विजय का पर्व —-दीपावली Part 1

dr. j k garg
“असतो मा सद्गमय, तमसो मा ज्योतिर्गमय, मृत्योमा अमृतंगमय, दारिद्र्यात्समृद्धिंगमय “ ही दीपावली का महामंत्र है | हम सभी सूर्य को जीवन के लिये प्रकाश एवं उर्जा के लोकिक दाता के रूप में जानतेहैं | दीपक को स्कन्द पुराण मे सूर्य के हिस्सों का प्रतिनिधित्व करने वाला माना गया है | हिन्दू केलेंडर के मुताबिक सूर्य कार्तिक मास में अपनी स्तिथी बदलता है |

सातवीं शदी के संस्क्रत नाटक “ नागनन्द” में सम्राट हर्ष ने दीपावली को दीपप्रतिपादुत्स्व कहा है, जिसमें घरों में दीपक जलाये जाते थे और नवविवाहित दम्पतियों को उपहार दिये जाते थे | 9वीं शदी में राजशेखर दुवारा रचित “ काव्यमीमांसा “ इसे दीपमालिका कहा गया था वहीं 11वीं शदीने फ़ारसी इतिहासकार अलबेरुनी ने अपने संस्मरणों मेंदीपावली को कार्तिक महिने में नये चन्द्रमा के दिन हिन्दुओं की तरफ से मनाया जाना महत्वपूर्ण पर्व कहा गया था | हमारे देश मै हिन्दू,सिख, जैन और अन्य धर्मावलम्बीदीपोत्सव को हर्षोल्लास और धूमधाम से मनाते हैं वहीं सभी बच्चें दीपावली का बेसब्री से इंतजार करते हैं | दीपावली का पर्व प्रतिवर्ष कार्तिक मास की अमावस्या के दिन उल्लास और उमगं के साथ मनायी जाती है | उल्लेखनीय है कि अमावस्या का अँधेरा अज्ञानता और विकारों का प्रतीक है, इसी अंधकार को दूर करने के लिए घर-घर में अंदर और बाहर अधिकाधिक दीपमालाएं आदि लगाने की होड़ लग जाती हैं |

डा.जे.के गर्ग

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