भीष्म अष्टमी 20 फरवरी को

राजेन्द्र गुप्ता
माघ मास के शुक्ल पक्ष की अष्टमी तिथि को भीष्म अष्टमी मनाई जाती है। आज यानी 20 फरवरी को भीष्म अष्टमी मनाई जाएगी। यह भीष्म पितामाह की पुण्यतिथि है। शास्त्रों के अनुसार, भीष्म ने ब्रह्मचर्य के लिए प्रणाम किया था। उन्हों जीवनभर इसका पालन भी किया। भीष्म को उनके पिता की मृत्यु के बाद उनकी निष्ठा और भक्ति के कारण उनकी मृत्यु का समय चुनने का वरदान प्राप्त था। ऐसे में जब वो महाभारत के युद्ध में घायल हो गए थे तो उन्होंने अपने वरदान के कारण अपना शरीर नहीं छोड़ दिया। उन्होंने अपना शरीर त्यागने के लिए शुभ क्षण की प्रतीक्षा की। हिंदू मान्यता के अनुसार, भगवान सूर्यदेव दक्षिण दिशा में 6 महीनों के लिए चलते हैं जो कि अशुभ अवधि मानी जाती है। इस दौरान कोई भी शुभ कार्य नहीं किया जाता है। जब तक सूर्यदेव उत्तर दिशा में वापस नहीं जाने लगते हैं तब तक हर शुभ कार्य को स्थगित कर दिया जाता है। ऐसे में पितामह भीष्म ने अपना शरीर त्यागने के लिए माघ शुक्ल अष्टमी को चुना। इस समय सूर्यदेव उत्तर दिशा या उत्तरायण (उत्तरायण) में वापस जाने लगते हैं।

भीष्म अष्टमी का महत्व
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मान्यता के अनुसार, भीष्म अष्टमी का व्रत जो व्यक्ति करता है उसके सभी पाप दूर हो जाते हैं। साथ ही उन्हें पितृ दोष से भी मुक्ति मिलती है। इस दिन भीष्म पितामह का तर्पण जल, कुश और तिल से किया जाता है। श्रीमद्भगवद्गीता में बताया गया है कि किस तरह अर्जुन के तीरों से घायल होकर महाभारत के युद्ध में जख्मी होने के बावजूद भीष्म पितामह 18 दिन तक मृत्यु शैय्या पर लेटे थे। इसके बाद उन्होंने माघ शुक्ल अष्टमी तिथि को चुना और मोक्ष प्राप्त किया।

राजेन्द्र गुप्ता,
ज्योतिषी और हस्तरेखाविद
मो. 9611312076
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