शीतला अष्टमी का राँधा-पोवा आज

राजेन्द्र गुप्ता
हर वर्ष होली के आठवें दिन यानी चैत्र मास में कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को शीतला अष्टमी मनाई जाती है।
इस बार यह व्रत 4 अप्रैल को पड़ रहा है। शीतला अष्टमी को बासौड़ा भी कहा जाता है। अष्टमी तिथि से एक दिन पहले यानी सप्तमी तिथि को ही शीतला अष्टमी के लिए प्रसाद का भोजन बनाया जाता है उसे बासौड़ा कहा जाता है। इस दिन लोग भी बासी भोजन ही खाते हैं। शीतला अष्टमी पर माता शीतला को मुख्य रूप से दही, राबड़ी, चावल, हलवा, पूरी, गुलगुले का भोग लगाया जाता है। इसी को स्वयं भी ग्रहण किया जाता है।

शीतला अष्टमी तिथि और शुभ मुहूर्त:
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4 अप्रैल 2021, रविवार
चैत्र मास में कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि
अष्टमी तिथि आरंभ- 4 अप्रैल 2021 को सुबह 04 बजकर 12 मिनट से
अष्टमी तिथि समाप्त- 05 अप्रैल 2021 को प्रातः 02 बजकर 59 मिनट तक।

पूजा मुहूर्त- सुबह 06 बजकर 08 मिनट से लेकर शाम को 06 बजकर 41 मिनट तक
पूजा की कुल अवधि- 12 घंटे 33 मिनट।

शीतला अष्टमी का महत्व
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मान्यता है कि शीतला अष्टमी से ही ग्रीष्मकाल की शुरुआत हो जाती है। इस दिन से ही मौसम तेजी से गर्म होने लगता है। शीतला माता के स्वरूप को शीतलता प्रदान करने वाला कहा गया है। सिर्फ यही नहीं, कहा जाता है कि माता शीतला का व्रत करने से चेचक, खसरा व नेत्र विकार जैसी समस्याएं ठीक हो जाती हैं। यह व्रत रोगों से मुक्ति दिलाकर आरोग्यता प्रदान करता है।

लोकप्रिय है शीतला सप्तमी पर्व?
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शीतला सप्तमी सबसे लोकप्रिय हिंदू त्योहारों में से एक है जिसे शीतला माता या देवी शीतला के सम्मान में मनाया जाता है। लोग अपने बच्चों और परिवार के सदस्यों को छोटी माता और चेचक जैसी बीमारियों से पीड़ित होने से बचाने के लिए शीतला माता की पूजा करते हैं।
प्रमुख उत्सव ग्रामीण क्षेत्रों और मुख्य रूप से उत्तर प्रदेश, राजस्थान और गुजरात के क्षेत्रों में मनाया जाता है। दक्षिणी भारत के विभिन्न हिस्सों में, देवता को ‘मरियममन’ या ‘देवी पोलरम्मा’ के रूप में पूजा जाता है। शीतला सप्तमी का त्योहार आंध्र प्रदेश और कर्नाटक के क्षेत्रों में ‘पोलला अमावस्या’ के नाम से भी मनाया जाता है।

इस बार शीतला सप्तमी का पूजन कब?
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इस अवसर को दो विशेष समयावधि में मनाया जाता है। सबसे पहले, यह चैत्र के महीने में कृष्ण पक्ष के दौरान सप्तमी (सातवें दिन) में मनाया जाता है। और, फिर यह श्रावण के महीने में दूसरी बार सप्तमी पर शुक्ल पक्ष के दौरान मनाया जाता है। लेकिन दो दिनों में, चैत्र महीने में पड़ने वाली शीतला सप्तमी तिथि को अत्यंत महत्वपूर्ण माना जाता है।

शीतला सप्तमी का महत्व:-
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शीतला सप्तमी पर्व की प्रासंगिकता स्कंद पुराण में स्पष्ट रूप से वर्णित है। शास्त्रों और हिंदू पौराणिक कथाओं के अनुसार, देवी शीतला देवी दुर्गा और मां पार्वती का अवतार हैं। देवी शीतला प्रकृति की उपचार शक्ति का प्रतीक है। इस शुभ दिन पर, भक्त और उनके बच्चे एक साथ पूजा करते हैं और देवता से छोटी माता और चेचक जैसी बीमारियों से सुरक्षित और संरक्षित रहने के लिए प्रार्थना करते हैं। ‘शीतला’ शब्द का शाब्दिक अर्थ है ‘शीतलता’ या ‘शांत’।

शीतला सप्तमी के अनुष्ठान:-
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इस विशेष दिन पर, भक्त शीतला माता की पूजा और अनुष्ठान करते हैं।

लोग सूर्योदय से पहले उठते हैं और ठंडे पानी से स्नान करते हैं।

इसके बाद, वे देवी शीतला के मंदिर में जाते हैं और विभिन्न अनुष्ठान और पूजा करते हैं और एक खुशहाल, स्वस्थ और शांतिपूर्ण जीवन प्राप्त करने के लिए देवता को प्रार्थना करते हैं।

पूजा संपन्न करने के लिए, भक्त शीतला माता व्रत कथा पढ़ते और सुनते हैं।

देश के कुछ हिस्सों में, लोग देवी को प्रसन्न करने के लिए अपने सिर के मुंडन की रस्म भी करते हैं।

शीतला सप्तमी के दिन, भक्त खुद खाना नहीं पकाते हैं और वे केवल उस सामान या भोजन को खाते हैं जो एक दिन पहले तैयार किया गया था। इस विशेष दिन में गर्म और ताजा पके हुए भोजन का सेवन पूरी तरह से निषिद्ध है।

लोग शीतला सप्तमी का व्रत भी रखते हैं और महिलाएं मुख्य रूप से अपने बच्चों की भलाई और अच्छे स्वास्थ्य के लिए उपवास करती हैं।

शीतला सप्तमी व्रत कथा
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शीतला सप्तमी व्रत से जुड़ी कई किंवदंतियां और कहानियां हैं। त्योहार से जुड़े सबसे महत्वपूर्ण किंवदंतियों में से एक के अनुसार, इंद्रायुम्ना नामक एक राजा था। वह एक उदार और गुणी राजा था जिसकी एक पत्नी थी जिसका नाम प्रमिला और पुत्री का नाम शुभकारी था। बेटी की शादी राजकुमार गुणवान से हुई थी। इंद्रायुम्ना के राज्य में, हर कोई हर साल उत्सुकता के साथ शीतला सप्तमी का व्रत रखता था। एक बार इस उत्सव के दौरान शुभकारी अपने पिता के राज्य में भी मौजूद थे। इस प्रकार, उसने शीतला सप्तमी का व्रत भी रखा, जो शाही घराने के अनुष्ठान के रूप में मनाया जाता है।
अनुष्ठान करने के लिए, शुभकारी अपने मित्रों के साथ झील के लिए रवाना हुए। इस बीच, वे झील की तरफ जाते वक़्त अपना रास्ता भटक गए और सहायता मांग रहे थे। उस समय, एक बूढ़ी महिला ने उनकी मदद की और झील के रास्ते का मार्गदर्शन किया। उन्होंने अनुष्ठान करने और व्रत का पालन करने में उनकी मदद की। सब कुछ इतना अच्छा हो गया कि शीतला देवी भी प्रसन्न हो गईं और शुभकारी को वरदान दे दिया। लेकिन, शुभकारी ने देवी से कहा कि वह वरदान का उपयोग तब करेंगी जब उसको आवश्यकता होगी या वह कुछ चाहेगी।
जब वे वापस राज्य में लौट रहे थे, शुभकारी ने एक गरीब ब्राह्मण परिवार को देखा जो अपने परिवार के सदस्यों में से एक की सांप के काटने की वजह से हुई मृत्यु का शोक मना रहे थे। इसके लिए, शुभकारी को उस वरदान की याद आई, जो शीतला देवी ने उसे प्रदान किया था और शुभकारी ने देवी शीतला से मृत ब्राह्मण को जीवन देने की प्रार्थना की। ब्राह्मण ने अपने जीवन को फिर से पा लिया। यह देखकर और सुनकर, सभी लोग शीतला सप्तमी व्रत का पालन करने और पूजा करने के महत्व और शुभता को समझा। इस प्रकार, उस समय से सभी ने हर साल व्रत का पालन दृढ़ता और समर्पण के साथ करना शुरू कर दिया।

राजेन्द्र गुप्ता,
ज्योतिषी और हस्तरेखाविद
मो. 9611312076
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